अफगानिस्तान : में तालिबान का शासन आते ही अब तक लाखों लोगों ने देश छोड़ दिया है। इनमें पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी से लेकर दर्जनों सांसद, महिलाएं और अमेरिकी सेना की मदद करने वाले लोग भी शामिल हैं। इस बीच तालिबान जहां अपनी छवि पेश करने के लिए लगातार इंटरव्यू दे रहा है, वहीं जमीन पर कुछ और ही हालात बयां किए जा रहे हैं। इस बीच तालिबान से करीब से बात करने वाली अफगानिस्तान की पहली महिला पत्रकार ने जान के खतरे के बीच देश छोड़ दिया है। इसी महीने की शुरुआत में टोलो न्यूज की पत्रकार बेहेश्ता अर्गंद ने इतिहास रच दिया था। वे तालिबान के किसी बड़े प्रतिनिधि का आमने-सामने इंटरव्यू लेने वाली पहली महिला बनी थीं। इस इंटरव्यू की चर्चा उस दौरान पूरी दुनिया में हुई थीं। तब जहां एक पक्ष ने दावा किया था कि तालिबान अफगान नागरिकों के बीच अपनी छवि बदलने की कोशिश में है, तो वहीं दूसरे पक्ष ने इसे तालिबान का प्रोपेगंडा करार दिया था।
24 साल की अर्गंद ने इसके बाद टोलो न्यूज के लिए मलाला यूसुफजई का इंटरव्यू किया था। मौजूदा समय में महिलाओं के अधिकारों के लिए काम कर रहीं मलाला 2015 में तालिबान के जानलेवा हमले में बाल-बाल बच गई थीं। तब टोलो न्यूज ने कहा था कि यह मलाला का अफगान टीवी पर पहला इंटरव्यू है। तालिबान के अफगानिस्तान में घुसने के बावजूद इस इंटरव्यू के प्रसारित होने की घटना को ऐतिहासिक बताया गया था। हालांकि, अमेरिकी सेना और बाकी देशों के नागरिकों की निकासी जैसे जैसे पूरी हुई है। तालिबान के जुल्मों की नई दास्तानें भी सामने आ रही हैं। अर्गंद ने भी पिछले एक महीने में जो हिम्मत दिखाई, तालिबान के बढ़ते डर की वजह से उसे रोकने का फैसला किया और अपने परिवार के साथ अफगानिस्तान छोड़ दिया। उन्होंने इसके पीछे आम अफगान लोगों और पत्रकारों के लिए पैदा हुए खतरे को वजह बताया।
अर्गंद का कहना है कि वे एक दिन देश लौटना चाहती हैं। अगर तालिबान जो कह रहा है, वादे के मुताबिक वही करता है और स्थितियां फिर बेहतर होती हैं और मुझे जब लगने लगेगा कि मैं सुरक्षित हूं और कोई खतरा नहीं है, तो मैं अपने देश वापस लौटना चाहूंगी और अपने देश के लोगों के लिए काम करना चाहूंगी। अमेरिकी मीडिया समूह सीएनएन से बातचीत के दौरान अर्गंद ने कहा, मैंने देश इसलिए छोड़ा, क्योंकि करोड़ों लोगों की तरह मैं भी तालिबान से डरती हूं। काबुल यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाली अर्गंद की ने पहले कई न्यूज एजेंसी और रेडियो स्टेशन के लिए काम किया। इसी साल उन्होंने टोलो न्यूज जॉइन किया। उन्होंने बताया कि टोलो न्यूज में एक महीने 20 दिन काम करने के बाद ही तालिबान का शासन आ गया।
महिला पत्रकार ने कहा, तालिबान के आने के बाद उसके किसी प्रतिनिधि का इंटरव्यू करना कठिन था। लेकिन मैंने ये अफगान महिलाओं के लिए किया। मैंने अपने आपको समझाया कि किसी को तो शुरुआत करनी ही होगी अगर हम अपने घरों में बैठे रहे और दफ्तर न जाते, तो वे कहते कि महिलाएं काम ही नहीं करना चाहतीं। इसलिए मैंने अपने आप से कहा कि काम शुरू करना चाहिए। अर्गंद के मुताबिक, मैंने तालिबान के लड़ाके से कहा, हमें अपने अधिकार चाहिए। हम काम करना चाहते हैं। हमें अपने समाज में रहने का पूरा अधिकार है। अफगानिस्तान छोड़ने के फैसले पर अर्गंद कहती है कि तालिबान के जो वादे थे, वह उस पर कायम नहीं रहा। हर दिन गुजरने के साथ तालिबान के न्यूज मीडिया को डराने और पत्रकारों पर निशाना साधने के नए-नए विवरण आने लगे। उन्होंने कहा कि मैंने देश छोड़ दिया, क्योंकि मुझे भी तालिबान से डर लगता है। इसलिए मलाला का इंटरव्यू करने के दो दिन बाद ही एक कार्यकर्ता की मदद से उन्होंने कतारी एयरफोर्स की फ्लाइट पर सवार होकर परिवार के साथ देश छोड़ दिया।