बाराबंकी(सिटीजन वॉयस संवाददाता) : मजलिस वही कामयाब होती है जो क़ुबूलियत रखती है , क़ुबूलियत उसे ही मिलती है जिसमें बन्दगी शामिल होती है । मजलिसों में बराबर आते रहने से इल्म में इजाफ़ा होता है । फ़जीलतें किरदार की बुनियाद पर मिलती हैं रिश्तेदारी की बुनियाद पर नहीं ।दीन सिर्फ़ दीनदारी का नाम है दीन ख़ुद पसन्दी का नाम नहीं । दीन के मामले में कभी कम्प्रोमाइज़ न करो ज़ाती मामले को खुदा पर छोड़ दो । जब हक़ परस्ती बशरीयत अपनाती है तो सर परस्ती सर नहीं उठा पाती है । यह बात करबला सिविल लाइन में मजलिसे तरहीम बराए ईसाल ए सवाब मरहूम मौलाना सैयद सना अब्बास ज़ैदी इब्ने सैयद ज़ुहैर अब्बास जैदी को ख़िताब करते हुए दिल्ली से आये मौलाना सैयद नामदार अब्बास साहब क़िबला ने कही । मौलाना ने यह भी कहा कि बन्दगी दुनियां से बेनियाज़ बनाती है ख़ुदा से नहीं । बला व मुसीबत से अच्छी कोई नेअमत नहीं बगैर बला के ज़िन्दगी मुमकिन नहीं । मुसीबत अगर इन्तेहा से आगे भी निकल जाए तब भी शुक्र का दामन छुटने न पाए ।जो ख़ुदा के लिए ज़िन्दा रहते हैं वो मर कर भी ज़िन्दा रहते हैं । बन्दगी पर बाअमल ज़िन्दगी गुज़ारने वाले थे सना अब्बास ।हक़ीक़त में ख़ुदा पर भरोसा रखने वाले को ख़ुदा कभी रूसवा नहीं करता । आखिर में करबला वालों के मसायब पेश किए जिसे सुनकर सभी ज़ार ज़ार रोने लगे ।
मजलिस से पहले डा 0 रज़ा मौरानवी ने पढ़ा उसका लहू रगो में असग़र की मोअज़्ज़म है जो लाफ़ता है रन मेंकाबे में बुत शिकन है ।अज़मल किन्तूरी ने पढ़ा अली को जिस किसी ने भी ब उनवाने गुमां देखा , पसे मंज़र धुआं देखा सरे मंज़र धुआं देखा । डा0 मुहिब मौरानवी ने पढा क्यूं न ढल जाए अरीज़ा दर्द की तफ़्सीर में, रख दिया हमने लहू आंखों का हर तहरीर में । मेहदी नक़वी ने पढा अली की शक्ल में जब नूर का इंसान आया है ,सरे साहिल पे लेके कश्तिये ईमान आया है । हाजी सरवर अली करबलाई ने पढ़ा मक़्सदे कर्बोबला को जानिये फिर बोलिये औरों को आने से रोके बातें ऐसी रोकिये। मजलिसों से मक़सदे सरवर को पूरा कीजिये, मिम्बरों पे गुमरही की जुमले बाज़ी रोकिये ।ज़ईम काज़मी ने पढ़ा कैसे तस्लीम मैं करलूं तेरे मरने की खबर, आशिके आले मोहम्मद कभी मरता ही नहीं । मजलिस का आग़ाज तिलावत ए कलाम ए पाक से मौलाना अली मेहदी ने किया।निज़ामत के फ़रायज भी मौलाना अली मेहदी ने अंज़ाम दिए। बानिये मजलिस ने सभी का शुक्रिया अदा किया ।