कृषि विज्ञान केंद्र पर एक दिवसीय प्रशिक्षण प्राकृतिक खेती विषय पर ऑनलाइन जागरूकता अभियान कार्यक्रम का हुआ आयोजन
संतकबीरनगर। कृषि विज्ञान केंद्र अचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या के प्रसार निदेशालय द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, बगही के वैज्ञानिकों द्वारा केंद्र पर एक दिवसीय प्रशिक्षण प्राकृतिक खेती विषय पर ऑनलाइन जागरूकता अभियान कार्यक्रम जो कि उप कृषि निदेशक संत कबीर नगर के अनुरोध पर कृषि विज्ञान केंद्र बगही में कृषि विज्ञान केन्द्र के अध्यक्ष डॉ अरविंद कुमार सिंह के नेतृत्व में संपन्न हुआ।
इस जागरूकता कार्यक्रम में वैज्ञानिक (कृषि प्रसार) राघवेंद्र सिंह, एवं डॉ संदीप सिंह कश्यप ने इस प्राकृतिक खेती जागरूकता अभियान पर ध्यान केंद्रित किया गया और किसानों को प्राकृतिक खेती के तरीके अपनाने के लाभ के बारे में बताया और सभी प्राकृतिक खेती से जुडी आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी। इसी क्रम मे डॉ देवेश कुमार ने वेस्टडीकंपोजर के बारे मे विस्तृत जानकारी दी गईं तथा कृषि क्षेत्र में तकनीक का बड़ा रोल है। कृषि सेक्टर खेती किसानी के लिए आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। डॉ कश्यप ने किसानों की आय बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा है कि साथ पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन, और ऊर्जा बायो फ्यूल जैसे आय के अनेक वैकल्पिक साधनों से किसानों को निरंतर जोड़ा जा रहा है। डॉ तरुण कुमार ने गांव में भंडारण कोल्ड चयन और फूड प्रोसेसिंग को बल देने के लिए लाखों करोड़ों के सरकार ने प्रावधान किया है। बीज़ से लेकर बाजार तक किसानों की आय को बढ़ाने के लिए एक के बाद एक अनेक कदम उठाए गए है तथा मिट्टी की जांच के लिए भी सैंपल जरूरी है। नेचुरल फार्मिंग का जिक्र करके हुए पीएम मोदी ने कहा कि ये सही है कि केमिकल और फर्टिलाइज़र ने हरित क्रांति में अहम रोल निभाया है लेकिन ये भी उतना ही सच है कि हमें इसके विकल्पों पर भी साथ ही साथ काम करते रहना होगा। बीज से लेकर मिट्टी तक सबका इलाज आप प्राकृतिक तरीके से कर सकते है, प्राकृतिक खेती में न तो खाद पर खर्च करना है और न ही कीटनाशक पर इसमें सिंचाई की आवश्यकता भी कम होती है और बाढ़-सूखे से निपटने में ये सक्षम होती है कम सिंचाई वाली जमीन हो या फिर अधिक पानी वाली भूमि, प्राकृतिक खेती से किसान साल में कई फसलें ले सकता है यही नहीं, जो गेहूं, धान, दाल की खेती में जो भी खेत से कचरा निकलता है, जो पराली निकलती है, इसमें उसका भी सदउपयोग किया जाता है यानि, कम लागत ज्यादा मुनाफा कृषि से जुड़े हमारे प्राचीन ज्ञान को हमें न सिर्फ फिर से सीखने की जरूरत है, बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब में तराशने की भी जरूरत है। इस दिशा में हमें नए सिरे से शोध करने होंगे, प्राचीन ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक फ्रेम में डालना होगा। नया सीखने के साथ हमें उन गलतियों को भुलाना भी पड़ेगा जो खेती के तौर-तरीकों में आ गई है।
उन्होंने बताया कि खेत में आग लगाने से धरती अपनी उपजाऊ क्षमता खोती जाती है तथा एक भ्रम ये भी पैदा हो गया है कि बिना केमिकल के फसल अच्छी नहीं होगी। जबकि सच्चाई इसके बिलकुल उलट है पहले केमिकल नहीं होते थे, लेकिन फसल अच्छी होती थी। नेचुरल फार्मिंग से देश के े 80 प्रतिशत किसानों को सर्वाधिक फायदा होगा। जिनका काफी खर्च, केमिकल फर्टिलाइजर पर होता है। अगर वो प्राकृतिक खेती की तरफ मुड़ेंगे तो उनकी आर्थिक स्थिति और फसल दोनों बेहतर होगी। एक दिवसीय प्रशिक्षण प्राकृतिक खेती विषय पर ऑनलाइन जागरूकता अभियान कार्यक्रम मै राज्य ओर जिले के ओर कई कृषि विज्ञान केंद्रों के किसानो ने 155 से अधिक किसानो ने आपनी ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराई। इस कार्यक्रमको सफल बनाने मे केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ देवेश, डॉ तरुण, डॉ रत्नाकर पाण्डेय एवं सभी सपोर्टिंग कर्मचारी उपस्थित रहे।