एट (जालौन): अभिमानी रावण और उसके महान बलशाली बेटे मेघनाद का बुधवार को राम और लक्ष्मण ने संहार करके धर्म की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। कोंच की ऐतिहासिक रामलीला के 170वें महोत्सव में धनुताल के विशाल मैदान में हजारों की भीड़ राम-रावण तथा लक्ष्मण-मेघनाद के बीच हुए घनघोर युद्घ की गवाह बनी। रामलीला के अंतिम मैदानी आयाम दशहरा मेला में युद्घ क्षेत्र पूरे विस्तार में दर्शाया गया जिसमें राम और रावण के सैन्य शिविर दिखाए गए थे। कोविड की छाया हटने के बाद रावण और मेघनाद के पुतलों की ऊंचाई परंपरागत रूप से चालीस फीट रखी गई थी। पुतलों ने मैदान में दौड़ दौड़ कर युद्घ को सजीवता प्रदान की। पिछले कई दिनों से हो रही बारिश ने अभी भी पीछा नहीं छोड़ा है। बुधवार को हुई बारिश ने दशहरा मेला की रौनक बिगाड़ कर रख दी और पिछले सालों की तुलना में अपेक्षाकृत कम भीड़ रही। मेला अभी आधा ही निपट पाया था कि एक बार फिर मूसलाधार बारिश शुरू हो गई जिसके चलते मेला खत्म हो गया और लोग भीगते हुए घरों को लौटे।
नगर के दक्षिण में अवस्थित धनुताल के मैदान में बुधवार को दशहरा मेला का आयोजन परंपरागत रूप से किया गया। मैदान के पूर्वी छोर पर पचास फीट ऊंची पक्की लंका दृष्टव्य थी जिसके सबसे ऊपरी झरोखे में जनकनंदिनी सीता विराजमान थीं। वहीं सामने रावण और मेघनाद के पुतले गाड़ियों पर कसे युद्घ के लिए तैयार खड़े थे। मैदान के पश्चिमी छोर पर लंका विजय हनुमान मंदिर पर राम का सैन्य शिविर दर्शाया गया था, जबकि मैदान के दक्षिणी तरफ धनुताल के तट पर नंदीग्राम एक मचान के रूप में दर्शाया गया था जहां भरत और शत्रुघ्न विराजमान थे। मैदान में भीड़ जुटती रही और युद्घ के नगाड़े बजते रहे। सायंकाल युद्घ प्रारंभ होता है और सबसे पहले मेघनाद का पुतला युद्घ के लिए प्रस्तुत होता है। हाथी पर सवार लक्ष्मण और हनुमान उससे युद्घ करने आते हैं। दोनों ओर से वाणों की बर्षा और हनुमान की गदा के प्रहार दर्शकों को रोमांचित कर रहे थे। तकरीबन एक घंटे तक चले इस युद्घ में मेघनाद की अमोघ शक्ति से लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं और युद्घ भेरियां थोड़ी देर के लिये बंद हो जाती हैं। हनुमान संजीवनी बूटी लेने जाते हैं और भरत के वाण प्रहार से आहत हो गिर पड़ते हैं तब भरत उन्हें वाण से लंका भेजते हैं। इसके बाद एक बार फिर मेघनाद-लक्ष्मण युद्घ शुरू होता है और अंतत: मेघनाद धराशाई हो जाता है और उसके पुतले को आग लगा दी जाती है। पालकी में बैठी सुलोचना दर्शकों पर टूटी चूड़ियां फेंक कर अपने पति की मृत्यु पर आक्रोश प्रकट करती है।
इसके बाद रावण स्वयं युद्घ के लिए उपस्थित होता है और तीन दर्जन कहारों से युक्त विमान में बैठ कर राम लक्ष्मण उससे युद्घ करने के लिए आते हैं। इनके पीछे विमान में ही बैठे अतुल चतुर्वेदी दोनों मूर्तियों को चंवर डुला रहे थे और उन्हें वाणों की आपूर्ति का गुरुतर भार भी निभा रहे थे। राम-रावण के बीच भयानक युद्घ होता है हनुमान भी हाथी पर बैठ कर युद्घ क्षेत्र में भ्रमण करते दिख रहे हैं। बड़ा ही अनुपम दृश्य वहां उपस्थित था। अंत में राम के वाणों में बिंध कर रावण डोलता हुआ धरती पर आ गिरता है और पुतले में आग लगा दी जाती है। इस पूरे घटनाक्रम में दौड़ते पुतले कौतूहल तो पैदा कर ही रहे थे, बार बार पुतलों का गिरना और फिर युद्घ के लिए खड़े हो जाना युद्घ को जीवंतता प्रदान कर रहे थे। हनुमान की भूमिका हरिश्चंद्र तिवारी निभा रहे थे जबकि रावण की भूमिका अभिषेक रिछारिया व मेघनाद ठाकुर लोकेंद्रसिंह निभा रहे थे। विधायक मूलचंद्र निरंजन ने वहां भाजपा के शिविर में मौजूद रहकर लोगों को दशहरा की शुभकामनाएं दी। रामलीला संचालन करने वाली मातृ संस्था धर्मादा रक्षिणी सभा के अध्यक्ष गंगाचरण वाजपेयी, मंत्री मिथलेश गुप्ता, कोषाध्यक्ष नवनीत गुप्ता, रामलीला समिति के संरक्षक विजय गुप्ता भोले, पीडी रिछारिया, केशव बबेले, प्रतीक मिश्रा, अध्यक्ष राजकुमार अग्रवाल मोंठ वाले, मंत्री संजय सोनी, कोषाध्यक्ष सुधीर सोनी खूजा वाले, अभिनय विभाग के अध्यक्ष रमेश तिवारी, मंत्री सुधीर सोनी, राममोहन रिछारिया, शिवम बबेले, राजीव पटेल, हरीश तिवारी, अखिलेश बबेले, अभिषेक रिछारिया पुन्नी, पवन अग्रवाल, अतुल शर्मा, छुन्ना धनौरा, अरविंद मिश्रा, राजू मिश्रा, अखिलेश चचौंदिया, अजय गोयल, सीनरी विभाग के संतोष तिवारी, भोले अग्रवाल, छोटे अग्रवाल आदि रहे। मेला ग्राउंड को सजाने संवारने में पालिकाध्यक्षा डॉ. सरिता वर्मा, ईओ पवन किशोर मौर्य, सेनेटरी इंस्पेक्टर हरिशंकर निरंजन, आरआई सुनील कुमार के निर्देशन में पालिका की टीम लगी रही, मेला में पालिका ने तंबू भी लगाया था। मेला में सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किए गए थे। एसडीएम कृष्ण कुमार सिंह व सीओ शैलेंद्र कुमार वाजपेयी के निर्देशन में कोतवाल बलिराज शाही, अतिरिक्त निरीक्षक वीरेंद्र सिंह, एसएसआई आनंदकुमार सिंह, दरोगा नरेंद्र सिंह, सचिन शुक्ला, सर्वेश कुमार, खेमचंद्र आरके सिंह आदि भारी पुलिस बल के साथ मैदान में डटे रहे। भीड़भाड़ को देखते हुए सर्किल के अन्य थानों से अतिरिक्त फोर्स बुलाया गया था। किसी भी बिषम परिस्थित से निपटने के लिए फायर सर्विस और एंबुलेंस की गाड़ियां भी मैदान में रखी गई थीं।