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उत्तर कोरिया को लेकर यूं ही एक्टिव नहीं भारत

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उत्तर कोरिया ; प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दुनिया में चल रही हर घटना पर नजर रहती है. वह हर बड़ी घटना और देश की चालों से वाकिफ रहते हैं. वह अन्य देशों की चाल पर नजर रखते हैं और उसी हिसाब से अपनी नीति तय करते हैं. इसकी बानगी हर बार देखने को मिलती है और इस बार फिर देखने को मिली है. जबकि दुनिया का ध्यान मध्य और पश्चिम एशिया तथा मध्य पूर्व और यूरोप में युद्धों के संबंध में पश्चिम की कार्रवाइयों पर केंद्रित है, भारत अपनी एक्ट ईस्ट नीति के साथ पूर्व की ओर देख रहा है और काम कर रहा है. एक और साल बीत गया और फिर अचानक, इस महीने की शुरुआत में भारत ने प्योंगयांग में अपने दूतावास में सामान्य कामकाज फिर से शुरू करने का फैसला किया. कुछ ही दिनों में तकनीकी कर्मचारियों और राजनयिक कर्मियों वाली एक टीम उत्तर कोरिया के लिए रवाना कर दी गई.

 

द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार, कर्मचारी पहले ही प्योंगयांग पहुंच चुके हैं और मिशन को पूरी तरह से चालू करने की प्रक्रिया में हैं. वहीं भारत का पहले से ही रूस के साथ बहुत मजबूत संबंध हैं, यह तेहरान के साथ भी अच्छे राजनयिक संबंध साझा करता है. पड़ोसी देश भारत और चीन – दो सबसे अधिक आबादी वाले देश भी एशिया में स्थायी शांति के लिए मतभेदों को दूर करने के लिए काम कर रहे हैं. इससे प्योंगयांग बच जाता है – एक ऐसा रिश्ता जिसके बारे में भारत ने अब तक बहुत सावधानी से काम किया है उत्तर कोरिया का सामरिक महत्व आज चार साल पहले की तुलना में काफी अधिक है – न केवल भारत और एशिया के लिए, बल्कि पश्चिम के लिए भी. सैन्य रूप से, उत्तर कोरिया लगातार अपने परमाणु हथियारों को बढ़ा रहा है. साथ ही हाइपरसोनिक मिसाइलों, सामरिक हथियारों, छोटी, मध्यम और लंबी दूरी की मिसाइलों जैसी तकनीक पर भी तेजी से काम कर रहा है. भारत के लिए, प्योंगयांग में मौजूद रहना और ऐसे संबंध स्थापित करना महत्वपूर्ण है, जिससे ऐसी तकनीक पाकिस्तान या उसके दुष्ट तत्वों तक न पहुंचे.

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