लखीमपुर खीरी ; अनियमित दिनचर्या और खानपान से लगातार हृदय संबंधी रोगों में हो रही वृद्धि को लेकर जागरुकता फैलाने के उद्देश से स्वास्थ्य विभाग एनसीडी सेल द्वारा एक जागरुकता कार्यक्रम जिला अस्पताल में आयोजित किया गया। जिसके अंतर्गत पहले प्रांगण में मानव श्रृंखला बनाई गई और उसके बाद सभागार में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया
बैठक को संबोधित करते हुए कार्यक्रम के नोडल अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ रविंद्र शर्मा ने बताया कि सन 1999 में वर्ड हार्ड फेडरेशन एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने संयुक्त रुप से हृदय दिवस का प्रारंभ किया था, तब से अब तक हर वर्ष 29 सितंबर को हृदय दिवस मनाया जा रहा है। इसे मनाए जाने के पीछे सबसे बड़ा कारण हृदय रोगों से बढ़ती मृत्यु दर है। 2016 के एक सर्वे के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लगभग 545 लाख व्यक्ति किसी न किसी रूप में हृदय संबंधी रोग से पीड़ित हैं। जिसमें से लगभग 17 लाख व्यक्ति प्रतिवर्ष इस बीमारी के चलते काल कवलित हो जाते हैं जबकि विश्व में इससे होने वाली प्रतिवर्ष मौत लगभग 179 लाख है जोकि विश्व में कुल मृत्यु का 31 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि इस का मूल कारण हमारी तेजी से बदलती हुई जीवन शैली है।
स्वस्थ भोजन, शरीर को क्रियाशील रखकर नियमित व्यायाम करके, मानसिक तनाव को कम करके, धूम्रपान से बचकर तथा हरी साग, सब्जियों का सेवन करके इस बीमारी को कम किया जा सकता है। इस दौरान जिला चिकित्सालय के फिजिशियन व कार्यक्रम के नोडल चिकित्सक डॉ. आरएस मधोरिया ने बताया कि शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने रक्तचाप बढ़ने तथा मानसिक तनाव आदि बढ़ने से हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसीलिए आवश्यक है कि हम बाजार की तली हुई चीजें जैसे फास्ट फूड, डिब्बा बंद फूड, पिज्जा, पेस्टी, आदि के सेवन से बचें। इस दौरान डॉक्टर मधोरिया ने उपस्थित व्यक्तियों से सीधे संवाद करते हुए उनकी तकलीफें सुनकर समाधान हेतु बताया कि अगर किसी को हार्टअटैक आदि की संभावना लगती है तो उसे हिलने डुलने न दें, लंबी सांस लेने को कहें और शीघ्र अस्पताल पहुचाएं। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि आने वाली शीत ऋतु में रक्तचाप की बीमारी बढ़ने की संभावना अधिक होती है। जिसमें जनमानस को सचेत रहने की जरूरत है
रक्तचाप बढ़ना हार्टअटैक नहीं होता यह हार्टअटैक को आमंत्रित जरूर करता है। इसके बाद पुनः डॉ शर्मा ने बताया कि उपरोक्त रिस्क फैक्टर को कम करके वह जनमानस को जागरुक करके लगभग 80% सीवीडी से होने वाली बीमारी को रोका जा सकता है जो कि सामान्यता 30 से 50 वर्ष की आयु वर्ग के होते हैं। महिलाओं की तुलना में यह रोग पुरुषों में अधिक होता है। 1990 में सीवीडी से होने वाली मृत्यु दर 15.2 प्रतिशत थी जबकि 2016 तक में यह बढ़कर 28.1 प्रतिशत हो गई है। जिसके बाद मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर आरसी अग्रवाल ने कहा कि इस बीमारी को लापरवाही से न लें और संभावना प्रतीत होते ही रोगी की जुबान के नीचे सारबीट्रेट टैबलेट रखकर तुरंत ही है रोग विशेषज्ञ को दिखाएं। इस समय में मरीज को तत्काल उपचार की जरूरत होती है जिसके लिए उसे नजदीकी अस्पताल में तुरंत लेकर जाए। इस मौके पर ईएनटी डॉ हर्षिता अवस्थी, मनोरोग विशेषज्ञ डॉ अखिलेश शुक्ला, फिजिशियन डॉ शिखर बाजपेई, डॉ राकेश गुप्ता, विजय वर्मा, देवनंदन श्रीवास्तव इत्यादि उपस्थित रहे।