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दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी पैठ और अधिक बढ़ाने की रणनीति अपनाई

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रूस : ने दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी पैठ और अधिक बढ़ाने की रणनीति अपनाई है। इस बात का संकेत पिछले दिनों मिला, जब म्यांमार के सैनिक शासक आंग हलायंग ने रूस की यात्रा की। जनरल हलायंग ने इस यात्रा के दौरान रूस की हथियार बनाने वाली कंपनियों के अधिकारियों से बातचीत की। साथ ही, उन्होंने जहाज और हेलीकॉप्टर बनाने वाली कंपनियों का दौरा भी किया। रूस के रक्षा मंत्रालय ने इस दौरान उन्हें मानद प्रोफेसर का खिताब दिया। यात्रा की समाप्ति पर हलायंग ने कहा- रूस की मदद के कारण हमारी सेना अपने क्षेत्र की सबसे शक्तिशाली सेना बन गई है।

वेबसाइट एशिया टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी यात्रा करने वाले जनरल हलांयग अकेले नेता नहीं है। इस रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए रूस हथियारों की सप्लाई के साथ-साथ कोविड-19 के अपनी वैक्सीन सप्लाई का भी इस्तेमाल कर रहा है। मास्को स्थित रशियन एकेडेमी ऑफ साइसेंज में दक्षिण पूर्व एशिया के विशेषज्ञ दिमित्री मोसियाकोव के मुताबिक सोवियत संघ के बिखराव के बाद पहले दशक में रूस ने दक्षिण पूर्व एशिया की अनदेखी की। लेकिन जब पश्चिमी देशों से उसके संबंध बिगड़ने लगे, तब उसने इस क्षेत्र पर ध्यान दिया। इस क्षेत्र में तीव्र आर्थिक वृद्धि और प्रशांत और हिंद महासागरों के बीच इसकी महत्त्वपूर्ण रणनीतिक मौजूदगी के कारण भी अब रूस इस इलाके पर अधिक ध्यान दे रहा है।

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के आंकड़ों के मुताबिक साल 2000 से 2019 तक रूस दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को हथियारों की आपूर्ति करने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है। जहां अमेरिका ने इस क्षेत्र को 7.9 अरब डॉलर और चीन 2.6 अरब के हथियार बेचे, वहीं रूस ने 10.7 अरब डॉलर के हथियारों की सप्लाई यहां की। सिंगापुर स्थित नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के समुद्री सुरक्षा विभाग में सीनियर फेलो कोलिन कोह के मुताबिक हथियार बिक्री के मामले में रूस के इस क्षेत्र में सबसे आगे रहने की कई वजहें हैं।

कोह के मुताबिक रूस हथियारों की बिक्री करते समय अमेरिका या यूरोपीय देशों की तरह संबंधित हथियार के सबसे उन्नत रूप को बेचने में हिचक नहीं दिखाता है। फिर उसके हथियार सस्ते भी पड़ते हैं। रूस कोई राजनीतिक शर्त भी नहीं थोपता। इसके अलावा वह हथियारों के बदले संबंधित देश में उत्पादित होने वाली वस्तुओं को भी स्वीकार कर लेता है। इससे उन देशों की विदेशी मुद्रा बचती है।

आंकड़ों के मुताबिक इस क्षेत्र में रूस के हथियारों का बड़ा ग्राहक वियतनाम है। पिछले दो दशक में रूस ने इस क्षेत्र में जितने हथियारों की सप्लाई की उसका 61 फीसदी इसी देश को गया। उसके बाद म्यांमार का नंबर आता है। जहां पश्चिमी देशों ने म्यांमार पर सैनिक तख्ता पलट के बाद प्रतिबंध लगा दिए, वहीं रूस ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। बीते जनवरी में वह म्यांमार को जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों, निगरानी करने वाले ड्रोन और रडार उपकरणों की बिक्री पर राजी हुआ था। फरवरी में सैनिक तख्ता के बावजूद ये सारे सौदे अपने जगह पर कायम हैं।

दरअसल, दक्षिण पूर्वी एशिया के कई देश इस समय हथियारों के साथ-साथ रूस में बनी कोरोना वैक्सीन स्पुतनिक वी के लिए भी आश्रित हैं। इन देशों में वियतनाम, लाओस, म्यांमार, और फिलीपन्स शामिल हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस वैक्सीन की तारीफ करते हुए उसे कोरोना के खिलाफ भरोसेमंद कलाशिनिकोव असॉल्ट राइफल कहा था। विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह उन्होंने हथियार और वैक्सीन की सप्लाई को एक दूसरे से जोड़ दिया। इस क्षेत्र के जिन देशों ने इस वैक्सीन के लिए ऑर्डर दिए हैं, उनमें इंडोनेशिया और मलेशिया भी शामिल हैं।

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