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कॉर्पोरेट मित्रों का कर्ज माफ़ी के बाद सूदखोरी और महाजनों पर निर्भरता बढेगी बाकी का विनाश पूजीपतियो का साथ

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दिल्ली : बैंक निजीकरण का मतलब है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सरकार पूँजीपतियों के हाथ में बेचेगी। पूँजीपति सेवा के भाव से नहीं बल्कि मुनाफा कमाने के लिए बैंकों को सेवा नहीं व्यवसाय बना देंगे। आम जनता का पैसा पूंजीपतियों के हाथ में जायेगा इतिहास गवाह है कि आजादी के बाद से आज तक हज़ारों निजी बैंक डूब चुके, जमाकर्ताओं को खुद के जमा पैसे आज तक नही मिले। लोगों को आत्महत्या तक करनी पड़ी। लेकिन फिर भी सरकार निजी बैंको की वकालत कर रही है। यह तो अधर्म है, अन्याय है बढती हुई महंगाई, बढ़ती हुई बेरोजगारी जैसी समस्याओं से निपटने में पूरी तरह से विफल केन्द्रीय सरकार इन मूलभूत समस्याओं से जनता का घ्यान भटकाने के लिए कुछ ऐसे प्रस्तावों की घोषणा कर रही है जो सुनने में बड़े क्रांतिकारी लगते हैं लेकिन वास्तव में यदि ये निर्णय लागू हो गये तो न सिर्फ देश की आम जनता की परेशानीयां बढ़ेंगी बल्कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था इतनी बुरी तरह विफल होगी कि आने वाले अनेकों दशकों तक बेरोजगारी, मंहगाई और आर्थिक दासता से निपटना संभव नहीं होगा

picture source social media Facebook Aman Numbardar

सरकार बगैर झिझके और शर्माए यह घोषणा करती है कि देश के सार्वजनिक क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं – सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक सभी का निजीकरण किया जाएगा। अरे ये कैसा निर्णय है, सरकार राष्ट्रीय सम्पत्ति को क्यों बेचना चाहती है ? मंशा क्या है सरकार की यह जानना आवश्यक है

नवंबर 2016 को जब खबर आयी अडाणी की कंपनियों को दिए कर्ज के रिकॉर्ड की जानकारी नहीं दी जा सकती

प्रस्तुत एक लाइन से आप समझ सकते है कि सरकार कौन चला रहा है और सरकार किसकी वफादारी के लिए कार्य करती है। बैंकों से लाखों करोड़ों का ऋण लेने वाले पूंजीपतियों को यह मौका दिया जाता है कि कर्ज चुकाने की मंशा नहीं रहने पर उन्हें विदेश भागने का मौका दिया जाता है धन आम जनता का लेकिन इसका इस्तेमाल करने कि छूट चंद पूंजीपतियों को दिलवाना फिर वैसे ही चंद औद्योगिक घराने के पास सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने का निर्णय। यह निर्णय पूरी तरह से गलत, अनुचित और राष्ट्रहित के विरुद्ध है

मतलब साफ है (सरकारी बैंक + जनता का पैसा = मित्र कार्पोरेट की मौत )

बैंक जब हमारा है,हमारे देश के करोड़ों आम लोगों का है तब तो बैंक से दिए गये कर्ज़ों को नहीं बता रहे हो? चुपचाप ‘लाखों-लाख करोड़ कर्ज़” माफ कर उसके पॉकेट में डाल देते हो? आम जनता तो “NPA & राइट ऑफ” जैसे वित्तीय प्रबंधन के इन कठिन शब्दों को कभी समझ ही नहीं पाती। जबकि इसका सीधा ठेंठ मतलब होता है अरबों रुपये की कर्ज़-माफी

पहले 5 लाख की सुरक्षा अब पूरी जिम्मेदारी से नकारना

सरकार के अधीन ही नियम है की आपकी जमापूंजी सुरक्षित रहे लेकिन केंद्र सरकार के नए नियमों में 5 लाख तक की गारंटी मतलब की यदि किसी ने जमीन खरीदी और बैंक में 5 लाख से ऊपर का आरटीजीएस कराया और उसी समय बैंक में अप्रिय स्थिति घटती है तो आपका पैसा मिलने की कोई उम्मीद नहीं व्यक्ति को तभी समझ लेना चाहिए था कि सरकार क्या करना चाहती है ? सरकार खुद कथित राष्ट्रीय स्तर के गिरकाटों के साथ मिलकर ऐसे कानून बना रही है कि अगर आपकी जेब कट जाए तो उसकी जिम्मेदारी नहीं है निजीकरण पर जो लोग खुश वैसे ही भेल के निजीकरण पर एयर इंडिया खुश था, एयर इंडिया के निजीकरण पर रेलवे खुश था, रेलवे के निजीकरण पर एलआईसी खुश था, एलआईसी के निजीकरण पर बैंक खुश था, बैंक के निजीकरण पर आप खुश है और आपके निजीकरण पर कोई और खुश होगा और यही प्रक्रिया निरंतर चलती रहेगी और पूरा देश ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह कुछ चंद कारपोरेट के हांथों में होगा।

भाइयों और बहिनो गरीबो का बेटा कहकर अब गरीबों को मिटाने की ठान लिया है

सरकार भूल रही है कि गरीबों, कामगारों, मध्यम वर्ग के लोगों का बैंक सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक ही है। गांवो में, दुर्गम क्षेत्रों में बैंकींग सेवा देने वाला बैंक सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक ही है। सस्ती बैकिंग सेवा देने वाला, आम आदमी और मध्यम वर्गीय जनता का, किसानों का बैंक यही सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक है निजी बैंक का उद्देश्य तो मुनाफा कमाना होगा, गावों और दुर्गम क्षेत्र की बैंक शाखाएं कभी भी बैंक निजीकरण के बाद नही बचेंगे। बैंकिंग सुविधा मंहगी होगी। किसानों को, रिक्शा वाले को, और तो और चायवाले और पकौड़े वालों को भी ऋण सुविधा निजी बैंको से नही मिल सकेगी

सूदखोरी और महाजनों पर निर्भरता बढेगी, शोषण बढेगा

इतना ही नहीं आज जब नौजवान बेरोजगारी से लड़ रहे हैं तब क्षेत्र के बैंको में रोजगार के व्यापक अवसर है। हजारों लाखों नौजवान पढाई लिखाई कर नौकरी के आस में रहते हैं। बैंको के निजीकरण के बाद उन नौजवानों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा, बेरोजगारी बढेगी। क्या यही है सरकार का सबका साथ सबका विकास सरकार ने तो अघोषित रूप से फार्मूला बना लिया है।पूजीपतियो का साथ, बाकी का विनाश यदि हम विरोध करने से चुकते है तो यह हमारा अपराध होगा कि राष्ट्रीय संसाधन का, जनता के धन की सुनियोजित लूट हुई और हम खामोश रहे। आइये एक साथ आइये .

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