लखनऊ: राजधानी स्थित विश्व की अग्रणी हर्बल डाई उत्पादक एएमए हर्बल ने अमेजिंगफार्म्स के माध्यम से नील यानि इंडिगो की खेती को बढ़ावा देने की घोषणा की है। इसके तहत एएमए हर्बल सतत विकास के क्षेत्र में अपना योगदान देने के लिए डाई इंडस्ट्री में प्रयोग किये जाने वाले कृषि उत्पादों का उत्पादन करेगी। एएमए हर्बल ने हाल ही डेनिम इंडस्ट्री में रंगाई के लिए प्रयोग की जाने वाली इंडिगो डाई के लिए नील की खेती की शुरुआत की। नील की फसल की किसानों के एक समूह ने राजधानी लखनऊ के बाहरी इलाके के प्रयोग के तौर पर बुवाई की थी। नील की फसल के परिणाम बेहद उत्साहजनक रहे और किसानों ने इसे नियमित तौर पर उगाने का फैसला लिया है।
हम्ज़ा ज़ैदी, वाईस प्रेसिडेंट, सस्टेनेबल बिजनेस अपॉर्चुनिटीज, एएमए हर्बल ने बताया, &https://www.youtube.com/channel/UCcj8JxdUrXPVdAxW-blFheA8220;इंडिगो या नील का वैज्ञानिक नाम इंडिगोफेरा टिंक्टोरिया है। इस फसल की खास बात यह है कि इसकी एक वर्ष में दो बार कटाई की जा सकती है। साथ ही इस फसल के लगाने से खेत की मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है।&https://www.youtube.com/channel/UCcj8JxdUrXPVdAxW-blFheA8221;
जैदी ने बताया ,&https://www.youtube.com/channel/UCcj8JxdUrXPVdAxW-blFheA8221;अमरसंडा और आसपास के इलाके में किसान परंपरागत तरीके से पिपरमेंट की खेती करते आए हैं, जिसकी लागत अधिक पड़ती है। जबकि नील या इंडिगो की खेती से उन्हें पहले से लगभग 30 फीसदी अधिक का लाभ प्राप्त हुआ, जो उनके लिए काफी उत्साहवर्धक रहा। इससे पहले हम तमिलनाडु से नील मंगाकर डाई का उत्पादन करते थे, जो कि डाई की उत्पादन लागत बढ़ा देता था। अब लखनऊ के पास ही इसकी सफल खेती होने से किसानों और हमारी कंपनी दोनों को लाभ प्राप्त होगा। हमने इसकी खेती के लिए किसी तरह के रासायनिक खाद या कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया है। साथ ही सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर्स का प्रयोग किया जिससे परम्परागत सिंचाई के मुकाबले 70 फीसदी तक पानी की बचत हुई।&https://www.youtube.com/channel/UCcj8JxdUrXPVdAxW-blFheA8221;
एएमए हर्बल के को-फाउंडर व सीईओ, यावर अली शाह ने बताया, &https://www.youtube.com/channel/UCcj8JxdUrXPVdAxW-blFheA8220;हमने लागत को कम करने और मुनाफे में सुधार के उद्देश्य से लखनऊ के बाहरी इलाके में नील की खेती शुरू की थी। अब उसके बेहद उत्साहजनक परिणाम सामने आ रहे हैं। हम दुनिया में प्राकृतिक नील रंग के प्रमुख निर्यातकों में से एक हैं। वस्त्र उद्योग में इसके लिए जोर देने के बाद बायो इंडिगो डाई की मांग काफी बढ़ गई है।’’
शाह ने बायो इंडिगो के डेनिम रंगाई में होने वाले लाभ के बारे में बताते हुए कहा, &https://www.youtube.com/channel/UCcj8JxdUrXPVdAxW-blFheA8220;एक किलोग्राम सिंथेटिक इंडिगो की जगह बायो इंडिगो प्रयोग किया जाए तो कम खर्च और प्रयास में 10 किलोग्राम तक कार्बन फुटप्रिंट को कम किया जा सकता है। बायो इंडिगो उन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए बनाया गया है, जिनके चलते कपड़ा उद्योग लगातार प्रदूषण के बढ़ते स्तर की समस्या का सामना कर रहा है। लाइफ साइकल एनालिसिस (एलसीए) रिपोर्ट में भी इस तथ्य की पुष्टि हुई है। यदि हमें सतत विकास के उद्देश्य को प्राप्त करना है तो इसके लिए आज से ही प्रयास करने होंगे।&https://www.youtube.com/channel/UCcj8JxdUrXPVdAxW-blFheA8221;
कृषि वैज्ञानिक जिया नील की फसल की खासियत बताती हैं, &https://www.youtube.com/channel/UCcj8JxdUrXPVdAxW-blFheA8220;नील की फसल भी अन्य दलहनों और फली वाली फसलों की तरह ही फलीदार फसल है, इसकी जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले बैक्टेरिया होते हैं, जो वायुमंडल से नाइट्रोजन सोखकर जमीन की उर्वरा क्षमता को बढ़ाते हैं।&https://www.youtube.com/channel/UCcj8JxdUrXPVdAxW-blFheA8221;
इलाके में नील की खेती शुरू करने वाले किसान राम खिलावन, इस फसल की पैदावार देखकर काफी उत्साहित हैं और कहते हैं, &https://www.youtube.com/channel/UCcj8JxdUrXPVdAxW-blFheA8220;किसी भी फसल को इसे आवारा मवेशियों से बचाना एक किसान के लिए बड़ी चुनौतियों में से एक है। नील की फसल के साथ सबसे बड़ा फायदा यह है कि आवारा पशु नहीं खाते हैं। इससे फसल के नुकसान की संभावना कम हो जाती है और पैदावार की कीमत बढ़ जाती है।&https://www.youtube.com/channel/UCcj8JxdUrXPVdAxW-blFheA8221;