
लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मऊ जिला प्रशासन द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ 16 दिसंबर 2019 को कथित रूप से एक हिंसक प्रदर्शन में शामिल होने के कारण छह लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका या एनएसए) के तहत जारी किए गए हिरासत आदेश को रद्द कर दिया है
जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस साधना रानी (ठाकुर) की खंडपीठ ने कहा कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की धारा 10 के अनुसार, सरकार को सभी प्रासंगिक सामग्री तीन सप्ताह के भीतर भेजने की आवश्यकता होती है, लेकिन इस मामले में यह 28 सितंबर को सलाहकार बोर्ड के पास भेजा गया था, तब तक तीन सप्ताह की अवधि पहले ही बीत चुकी थी
इस देरी पर संज्ञान लेते हुए अदालत ने हिरासत को अवैध करार दिया
कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 22(5) के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की धारा 10 पर विचार करने के दौरान यह पाया गया कि इस मामले में सरकार द्वारा सलाहकार बोर्ड के सामने सभी दस्तावेज जैसे कि हिरासत का आधार हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की रिपोर्ट इत्यादि समयसीमा के भीतर पेश नहीं किया गया था. इसलिए यह हिरासत आदेश अवैध है
छह याचिकाकर्ताओं ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर मऊ के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी हिरासत आदेश को रद्द करने की मांग की थी उन्होंने राज्य सरकार के उस आदेश को भी रद्द करने की मांग की थी जिसमें उनके हिरासत की अवधि तीन महीने और बढ़ा दी गई थी अदालत के समक्ष यह प्रस्तुत किया गया था कि 16 दिसंबर 2019 को एनआरसी और सीएए कानून के खिलाफ एक हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ था जिसके बाद याचिकाकर्ताओं सहित कई लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी
मऊ शहर के सर्किल ऑफिसर ने थाने के प्रभारी निरीक्षक की रिपोर्ट का अध्ययन कर इसे उच्च अधिकारी के पास भेजने की सिफारिश की थी इसके बाद याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एनएसए के तहत कार्रवाई करने की सिफारिश के साथ पुलिस अधीक्षक द्वारा रिपोर्ट को मऊ के जिला मजिस्ट्रेट को भेज दिया गया था
याचिकाकर्ताओं द्वारा अगले दिन 14 सितंबर, 2020 को डीएम को एक अभ्यावेदन दिया गया था और इनके संबंध में पैरा वार टिप्पणियां 14 सितंबर, 2020 को संबंधित प्राधिकारी को भेजी गई थीं इसके बाद एनएसए की धारा 10 के अनुसार 28 सितंबर को हिरासत आदेश सलाहकार बोर्ड के पास भेजा गया था