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21वीं सदी में भी बदहाली पर आंसू बहाता एक गांव

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फतेहपुर : सरकार के लाख दावों के बाद भी आज गांव की सूरत बदहाल है। ऐसा ही एक गांव है अशोथर विकासखंड का सरकंडी गांव जहां आवागमन के लिए एक साफ सुथरा रास्ता भी नहीं है वाहन गुजर ना तो सबसे बड़ी टेढ़ी खीर है यही वजह है कि जब कोई बीमार होता है तो वाहन की जगह चारपाई के सहारे उसे सुदूर अस्पताल में पहुंचाना पड़ता है सरकंडी गांव के सभी आम रास्ते बदहाल हैं। दलदल और कीचड़ से भरे हुए हैं। 21वीं सदी में भी यह गांव अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है इसी बदहाल गांव का तेरी कुंआ  का एक निवासी धर्मपाल जब बीमार हुआ तो उसके परिजन चारपाई के सहारे खाटू का डेरा बोलके बदलेगा का डेरा पहुंचाया गया जहां उसे बमुश्किल स्वस्थ्य सेवाएं मिल सकी। यह वाक्या तो एक नमूना मात्र है ऐसी समस्याओं से तो यहां के निवासियों को हर दिन गुजारना पड़ता है। बरसात के मौसम में तो यहां की तस्वीर और भी बदहाल हो जाती है।

सरकारों द्वारा गांवों की तस्बीर बदलने की अनेक योजनाएं चलाई जा रही है इसके बावजूद भी इस सरकंडी गांव का कोई पुरसाहाल नहीं है। गांव के विकास के लिए आने वाली मनरेगा जैसी योजनाएं भी यहां के लिए बेमानी साबित हो रही हैं। आखिर सरकार की योजनाओं के बावजूद गांव की बदहाली क्यों है और प्रशासनिक अमला इस बदहाल गांव से क्यों आंख फेरे है चिंता का विषय है।आखिर वे कौन से लोग हैं जो इस गांव की बदहाली के लिए जिम्मेदार हैं? और क्यों गांव को बदहाली से बचाने के लिए सरकारी योजनाओं को  क्यों लाभ नहीं मिल पा रहा है प्रशासनिक लापरवाही पर प्रश्न खड़े करता है।

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