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 सीजेआई की नियुक्ति के खिलाफ 2017 में जनहित याचिका दायर करना पड़ा महंगा

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दिल्ली : राष्ट्रपति को भारत के मुख्य न्यायाधीश  के उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करने की प्रथा पर सवाल उठाते हुए स्वामी ओम (अब मृतक) और मुकेश जैन ने 2017 में एक याचिका दायर की थी। जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दिया है। पीठ ने कहा कि सक्षम प्राधिकारी जैन की भूमि से जुर्माने की रकम की वसूली कर सकते हैं। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि रकम की वसूली तक उन्हें शीर्ष अदालत में कोई जनहित याचिका दायर करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने जैन की ओर से लगाई गई याचिका दायर करने के लिए जुर्माने  को कम करने के आवेदन पर भी गौर किया।  वह अभी एक दूसरे केस के सिलसिले में ओडिशा के बालासोर जेल में है।  शीर्ष अदालत ने जुर्माने की राशि में कमी के उनके आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि 2017 में जैन पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था लेकिन पिछले साल इसे घटाकर 5 लाख रुपये कर दिया गया था। पीठ ने कहा कि वह मामले को स्थगित नहीं रख सकती और अधिकारियों को जुर्माना वसूल करने का निर्देश दिया जा सकता है।

जैन की ओर से पेश उनके अधिवक्ता एपी सिंह ने कहा कि उनके पास कोई जमीन नहीं है और दूसरे मामले में जमानत मिलने के बाद उन्हें अदालत में पेश होने के लिए कहा जाना चाहिए। जैन को एक मामले में जमानत मिल गई थी लेकिन ओडिशा में दो अन्य मामले लंबित हैं। अधिवक्ता ने कहा कि राज्य में पुरी रथ यात्रा से संबंधित पिछले साल प्रसारित एक कथित व्हाट्सएप संदेश के आधार पर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था और उनके खिलाफ तीन और मामले दर्ज किए गए थे। केंद्र की ओर से पेश होने वाली अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि लागत में और कमी के लिए जैन के आवेदन को खारिज कर दिया गया है और अधिकारियों को जैन की संपत्तियों को कुर्क करने और कानून के अनुसार रकम वसूलने का निर्देश दिया गया है। शीर्ष अदालत ने नौ जुलाई को कहा था कि वह उनकी किसी जनहित याचिका पर तब तक सुनवाई नहीं करेगी जब तक कि अपने ऊपर लगाए गए जुर्माने को जमा नहीं करा देते। अदालत को पहले बताया गया था कि उनमें से एक स्वामी ओम की पिछले साल कोरोना के कारण मौत हो गई थी, जबकि मुकेश जैन पिछले एक साल से बालासोर जेल में हैं।

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