New Ad

ग्लाइडल वेफर्स: ब्रेन ट्यूमर के इलाज में काफी कारगर

0

सोनीपत: ब्रेन ट्यूमर एक ऐसी बीमारी है, जिससे भारत के लोग भी बड़ी संख्या में पीड़ित पाए जाते हैं. इंसान का ब्रेन अगर सही तरीके से काम करना बंद कर देता है, तो मानो उसका जीवन समाप्त हो जाता है. ऐसे में इस बीमारी को शुरुआती स्टेज में समझकर इसका सही वक्त पर इलाज कराने की आवश्यता है, ताकि इस घातक रोग से बचा जा सके. प्राइमरी स्टेज के ब्रेन ट्यमूर के इलाज को लेकर दिल्ली स्थित बीएलके-मैक्स अस्पताल में न्यूरोसर्जरी एंड न्यूरो स्पाइन के सीनियर डायरेक्टर और एचओडी डॉ.अनिल कुमार कंसल ने विस्तार से जानकारी दी और ग्लाइडल वेफर्स से इलाज के बारे में बताया.शुरुआती स्टेज के ब्रेन ट्यूमर में लोगों को सबसे ज्यादा ग्लियोमा ट्यूमर होता है. इसमें सबसे अधिक रोगी ग्रेड-4 के जीबीएम (ग्लियोब्लास्टोमा मल्टीफोर्म) से पीड़ित होते हैं. एक अनुमान है कि दुनियाभर में जीबीएम के 75000 मरीजों में से 60 फीसदी केस प्राइमरी ब्रेन ट्यूमर के पाए गए.
घातक ग्लियोमा के इलाज के लिए जो सर्जरी, रेडियोथेरेपी या कीमियोथेरेपी की जाती है वो पिछले 30 साल से एक जैसे ही मेथड से की जा रही है. जबकि नए बायोड्रिगेडेबल वेफर्स ने उपचार को और अधिक सुरक्षित बना दिया है. खासकर, जिन नए मरीजों में जीबीएम के लक्षण पाए जाते हैं उनके लिए वेफर्स की तकनीक काफी कारगर है. ग्लाइडल वेफर, जीबीएम के इलाज का एक नया तरीका है जिसमें सर्जरी और रेडिएशन थेरेपी के साथ दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है. ग्लाइडल वेफर, एक बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर होता है, जिसमें 3.85 प्रतिशत कार्मुस्टीन होती है, बीसीएनयू होती है. सर्जरी के दौरान ये वेफर्स सीमित तरीके से 7.7 मिली ग्राम बीसीएनयू करीब 5 दिन तक रिलीज करते हैं. बीसीएनयू न्यूक्लियोप्रोटीन को एल्केलेट करता है और डीएनए सिंथेसिस और मरम्मत में हस्तक्षेप करता है. न्यूक्लियोप्रोटीन लाइसिन अवशेषों का कार्बोनिलेशन भी आरएनए और प्रोटीन संश्लेषण को कम कर सकता है.
डॉ. अनिल कुमार कंसल ने 46 साल के एक मरीज का उदाहरण भी दिया जिसे जीबीएम था और 2020 में उसका ऑपरेशन हुआ था. रेडियोथेरेपी और कीमियोथेरेपी के बाद मरीज को लगातार सिरदर्द की समस्या हो रही थी जिसके बाद उन्हें बीएलके-मैक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया. मरीज को हेमिपेरेसिस (रक्तिपित्त) की समस्या थी, वो होश में थे और सहयोग कर रहे थे. मरीज के एमआरआई समेत तमाम अन्य टेस्ट कराए गए जिसमें पता चला कि उनके मस्तिष्क की लेफ्ट साइड में गहरा दबाव है. इसके बाद मरीज की सर्जरी की गई जिसमें बाईं पार्शि्वका क्रैनियोटॉमी से गुजरना पड़ा. इसमें डॉक्टर्स ग्लाइडल वेफर्स को एक्साइज रिकरंस लेसियन कैविटी में रखते हैं. ऑपरेशन के बाद एमआरआई किया गया.
जीबीएम एक घातक श्रेणी का ब्रेन ट्यूमर होता है. इसके इलाज में सर्जरी की जाती है और फिर उसके बाद कुछ सालों तक रेडियोथेरेपी और टेमोजोलोमाइड की जाती है. इन तमाम प्रयासों के बावजूद मरीज का जीवन नहीं बढ़ पाता है. जबकि बीसीएनयू वेफर्स के जरिए ऑपरेशन न्यूरोसर्जन्स द्वारा पिछले कुछ सालों में ही इस्तेमाल में लाया गया है. ग्लाइडल वेफर्स ग्लियोब्लास्टमा के इलाज का एक नया तरीका है. इसमें जहां ट्यूमर होता है वहां कार्मुस्टीन को बहुत ही नियंत्रित तरीके से बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर के जरिए पहुंचाया जाता है. जीबीएम, हाई ग्रेड ग्लियोमा जैसे ट्यूमर के मरीजों के इलाज का ये मेथड अमेरिका के एफडीए द्वारा अप्रूव है.
फरवरी, 2003 में अमेरिकी एफडीए ने हाई ग्रेड घातक ग्लियोमा मरीजों की सर्जरी और थेरेपी के लिए ग्लाइडल वेफर को मंजूरी दी. इसके लॉन्च होने के बाद से अकेले अमेरिका में ही 20 हजार से ज्यादा सर्जरी को ग्लाइडल वेफर्स की सहायता से पूरा किया गया. हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि हाई ग्रेड ग्लियोमा के जिन नए मरीजों का इलाज कार्मुस्टीन वेफर्स के जरिए किया गया उनके जीवन में वृद्धि हुई. 67 प्रतिशत केस में जीवन एक साल और 26 प्रतिशत केस में दो साल तक बढ़ा. जबकि औसत सर्वाइवल 16 महीना था. ये बात स्पष्ट है कि जीबीएम और नए मरीजों का ट्रीटमेंट वेफर्स के जरिए होने से जीवन की संभावनाएं ज्यादा बढ़ रही हैं.

Leave A Reply

Your email address will not be published.