Hindustan today news जीतनी है गर बाजी, तो मन को करो राजी – मन में न पालें कोई भय, कोरोना का ख़त्म होना है तय – आस-पास के माहौल को सब लोग मिलकर बनाएं स्वस्थ – संक्रमित की करें हौसलाअफजाई न कि जगहंसाई – “हमें बीमारी से लड़ना है न की बीमार से” सन्देश को मानें
जीतनी है गर बाजी, तो मन को करो राजी
– मन में न पालें कोई भय, कोरोना का ख़त्म होना है तय
– आस-पास के माहौल को सब लोग मिलकर बनाएं स्वस्थ
– संक्रमित की करें हौसलाअफजाई न कि जगहंसाई
– “हमें बीमारी से लड़ना है न की बीमार से” सन्देश को मानें
गोंडा, 23 मई-2020 ।।
कोविड-19 यानि कोरोना वायरस को हराना है तो अपने मन को समझाना होगा, न कि घबराना होगा । संक्रमण को दूर भगाने का एक ही मूलमंत्र है- जरूरी सावधानी बरतना । इसके बावजूद यदि कोई संक्रमण का शिकार हो जाता है तो वह कोई आत्मग्लानि न पाले, क्योंकि कोरोना पर विजय पाने वालों की दर बहुत अधिक है । इतना जरूर है कि घर-परिवार और आस-पड़ोस से इस दौरान नजदीक से मिल नहीं सकते पर फोन और संदेशों के जरिये उनसे मिलने वाला प्यार व स्नेह संक्रमित के जल्दी स्वस्थ होने में एक तरह के टॉनिक का काम करता है । सरकार व स्वास्थ्य विभाग द्वारा भी इस बारे में लगातार विभिन्न माध्यमों के जरिये लोगों को जागरूक किया जा रहा है । यही नहीं किसी को फोन मिलाने पर भी सबसे पहले यही सन्देश सुनाई देता है –“ हमें बीमारी से लड़ना है न कि बीमार से” ।
एसीएमओ / जनपदीय सर्विलांस अधिकारी डॉ देवराज चौधरी का कहना है कि कोरोना की श्रृंखला (चेन) को तोड़ने के लिए पूरे समाज को कुछ जरूरी बिन्दुओं पर अपनी सोंच और व्यवहार में बदलाव लाना बहुत ही जरूरी है, वह जरूरी बिंदु हैं- इलाज के प्रति समर्पित चिकित्सकों व अन्य स्टाफ के साथ किसी भी तरह का बुरा बर्ताव न करना, मरीजों के प्रति कोई भेदभाव न करना, चुप्पी तोड़कर सेवा में लगे लोगों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करना, मरीजों की हौसलाअफजाई करना और मरीज के उपचार में किसी तरह की देरी न करना । इन्हीं बिन्दुओं के पालन से हम शीघ्रता के साथ कोरोना को हरा सकेंगे ।
तिरस्कार नहीं तिलक करें :
डॉ चौधरी का कहना है कि कोरोना वायरस की रिपोर्ट पाजिटिव आते ही घर-परिवार या आस-पड़ोस के लोग संक्रमित का किसी भी प्रकार का तिरस्कार न करके, उसे जल्दी से जल्दी ख़ुशी-ख़ुशी इलाज के लिए अस्पताल भेजें और भरोसा दिलाएं कि वह जल्दी ही पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौटेगा । उनका यही व्यवहार संक्रमित को मजबूती देगा और वह कोरोना को मात देने में सफल रहेगा, क्योंकि मरीजों के प्रति भेदभाव उनके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है । संक्रमित को भी अपने मन में यह पूरी तरह से ठानना होगा कि वह अस्पताल के सभी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए जल्दी से जल्दी स्वस्थ हो जायेंगे । वापसी पर उसका तिलक कर उसकी हिम्मत के लिए सम्मान करें ।
मरीजों की कहानी नर्स की जुबानी :
कोविड लेवल 1 हॉस्पिटल में कोरोना पॉजिटिव मरीजों की देखभाल करने वाली स्टाफ नर्स निधि तिवारी (बदला हुआ नाम) का कहना है कि अस्पताल में आने पर मरीज शुरू-शुरू में बहुत परेशान रहते हैं, ठीक से बात तक नहीं करते । उनसे जब प्यार व संयम के साथ बैठकर बात की जाती है और समझाया जाता है कि वह जल्दी ही ठीक हो जायेंगे, उनके सामने उदहारण भी पेश किया जाता है कि इतने लोग कोरोना को हराकर स्वस्थ हो अपने घर जा चुके हैं तब उनके व्यवहार में बदलाव नजर आता है । पहले सिस्टर कहकर संबोधित करने वाले मरीज इसके बाद दीदी कहकर बुलाते हैं और कहते हैं कि मेरे लिए भी “प्रार्थना ” कीजिये कि जल्दी स्वस्थ हो जाऊं । उनसे बातचीत के दौरान यही समझ में आया कि – वह शुरू में इसी चिंता में रहते हैं कि लोग उनके बारे में क्या सोचते होंगे, लौटने पर उनके साथ कैसा व्यवहार करेंगे । उनकी इन्हीं चिंता और सोच को जब दूर कर दिया जाता है तो उनके चेहरे पर एक अलग चमक नजर आती है । चिकित्सकों और हम लोगों की देखभाल से उनकी रिपोर्ट भी जल्दी ही निगेटिव आने लगती है ।