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हाथीपांव की देखभाल और मरीज के लिए भी साल में एक बार दवा का सेवन जरूरी

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महराजी फाइलेरिया सपोर्ट ग्रुप को स्वास्थ्य विभाग ने दिया एमएमडीपी प्रशिक्षण

ग्रुप के बीच किट वितरित कर व्यायाम करने का तरीका भी सिखाया गया

गोरखपुर । शरीर के लटकने वाले अंगों में फाइलेरिया के कारण होने वाले सूजन और घाव की देखभाल और नियमित प्रबंधन अति आवश्यक है । ऐसे मरीजों को नियमित व्यायाम के साथ ही साल में सिर्फ एक बार दवा का सेवन भी जरूरी है । इसी वजह से हाथीपांव के मरीजों को मोर्बिडिटी मैनेजमेंट एंड डिसेबिलिटी प्रिवेंशन (एमएमडीपी) किट दिये जाते हैं ताकि उन्हें हाथीपांव की स्थिति में अपेक्षाकृत आराम मिल सके। उक्त बातें सहायक जिला मलेरिया अधिकारी राजेश चौबे ने पिपराईच ब्लॉक के महराजी फाइलेरिया सपोर्ट ग्रुप के एमएमडीपी प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान शुक्रवार को कहीं । इस दौरान ग्रुप के बीच एमएमडीपी किट बांटा गया और व्यायाम करने का तरीका भी सिखाया गया ।

सहायक मलेरिया अधिकारी ने बताया कि हाथीपांव प्रबंधन से इसके फर्स्ट व सेकेंड स्टेज में सूजन को अत्यंत कम किया जा सकता है । ऐसा करने से तीसरे, चौथे और पांचवे स्टेज में भी सूजन थोड़ा सा कम हो जाता है और आराम मिलता है। फाइलेरिया प्रभावित अंगों की देखभाल से चोट व घाव से भी बचाव होता है । हाथीपांव के मरीज को एमएमडीपी किट में मिले टब में अपना प्रभावित अंग रखना होता है और फिर मग से धीरे धीरे पानी डालकर अंग को भिगोना है। पानी न तो ठंडा हो और न ही गरम हो। साबुन को प्रभावित अंग पर सीधे नहीं लगाना है । साबुन को हाथों में लेकर झाग बना लेना है और फिर उसी झाग को प्रभावित अंग पर लगाना है और फिर अंग को धुलना है । इसके बाद साफ कॉटन के तौलिये से बिना रगड़े हल्के हाथ से अंग को साफ करना है। अगर प्रभावित अंग कहीं कटा है या इंफेक्टेड है तो वहां पर क्रीम भी लगाना है । यह कार्य रोजाना करने से हाथीपांव प्रभावित अंग सुरक्षित रहते हैं।

श्री चौबे ने बताया कि जिला मलेरिया अधिकारी अंगद सिंह के पर्यवेक्षण में मरीजों को व्यायाम के बारे में भी बताया जाता है । इसी क्रम में महराजी फाइलेरिया सपोर्ट ग्रुप के लोगों को व्यायाम और इसकी महत्ता की जानकारी दी गयी । बताया गया कि फाइलेरिया प्रभावित अंग को लटका कर नहीं बैठना है बल्कि उसे सहारा देकर रखना है । पैर की एड़ियों के सहारे शरीर को धीरे धीरे उठा कर व्यायाम करना है ।

वरिष्ठ मलेरिया निरीक्षक प्रभात ने बताया कि फाइलेरिया क्यूलेक्स नामक मच्छर के काटने से होता है । जब संक्रमित व्यक्ति को काटने के बाद मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो स्वस्थ व्यक्ति भी संक्रमित हो जाता है लेकिन संक्रमण का लक्षण आने में पंद्रह से बीस साल तक का समय लग सकता है । इसके संक्रमण से अगर हाथीपांव हो जाए तो जीवन बोझ बन जाता है। मच्छरों से बचाव और साल में एक बार पांच साल तक मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) अभियान के दौरान दवा के सेवन से इस बीमारी से बचाव संभव है ।

इस मौके पर पिपराईच सीएचसी की मलेरिया इंस्पेक्टर पूजा ने बताया कि फाइलेरिया के कारण होने वाला हाथीपांव तो ठीक नहीं हो पाता लेकिन हाइड्रोसील को सर्जरी के जरिये ठीक किया जा सकता है। सीएचसी पर हाइड्रोसील के सर्जरी की सुविधा उपलब्ध है । समय समय पर कैम्प लगा कर भी सर्जरी की सुविधा प्रदान की जाती है ।

हेल्थ इंस्पेक्टर रमेश ने बताया कि पिपराईच ब्लॉक के उसका और महराजी गांव में फाइलेरिया मरीज नेटवर्क बना कर काम कर रहे हैं। उन्हें पूरा सहयोग दिया जा रहा है। महराजी सपोर्ट ग्रुप के कार्यक्रम में 14 मरीजों को एमएमडीपी किट दी गयी है । इस मौके पर सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) के प्रतिनिधि समेत सभी नेटवर्क सदस्य मौजूद रहे ।

महराजी फाइलेरिया सपोर्ट ग्रुप के वरिष्ठ सदस्य 65 वर्षीय अकलू ने बताया कि गांव में ग्रुप बना कर फाइलेरिया के बारे में लोगों को जागरूक किया जा रहा है । स्वास्थ्य विभाग के लोगों ने गांव में आकर घाव के देखभाल का तरीका सिखाया है और बाल्टी, मग, तौलिया, टब, साबुन और क्रीम भी दिया है । वह 30 साल से फाइलेरिया से ग्रसित हैं। नेटवर्क के कारण पहली बार गांव में इस प्रकार का कार्यक्रम हुआ है और मरीजों को हाथीपांव के साथ जीने का तरीका सिखाया गया है।

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