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कानपुर के घाटों पर 424 की अंत्येष्टि, कब्रिस्तानों में 21 सुपुर्द ए-खाक

कानपुर :  में कोरोना की सुस्ती के संकेतों के बीच मुक्तिधामों पर अंतिम संस्कार की भी संख्या घट गई है। रविवार को श्मशान घाटों पर 424 शवों का अंतिम संस्कार किया गया, जबकि प्रमुख मुस्लिम कब्रिस्तानों में 21 जनाजे सुपुर्द-ए-खाक किए गए। घाटों पर दिन ढलने के बाद भी शव पहुंचते रहे। भैरव घाट विद्युत शवदाह गृह में देररात तक शवों का अंतिम संस्कार चलता रहा। नगर निगम की रिपोर्ट के अनुसार शनिवार को रात 9 बजे तक भैरव घाट विद्युत शवदाह गृह में कोरोना संक्रमित मरीजों समेत 68 शव पहुंचे। इनमें से 16 का बिजली और 49 का लकड़ियों से अंतिम संस्कार हुआ। तीन का अंतिम संस्कार देररात तक चलता रहा। भगवत दास घाट विद्युत शवदाह गृह में नौ शवों का अंतिम संस्कार बिजली और 28 का लकड़ियों से अंतिम संस्कार हुआ।

मजदूर की पत्नी लड़ी चुनाव, बनीं बीडीसी

कानपुर : इंसान अगर मन में कुछ करने की ठान ले और सच्ची लगन से लग जाए तो कुछ भी असंभव नहीं। बिधनू ब्लॉक के हरबसपुर क्षेत्र पंचायत से बीडीसी का चुनाव लड़ने वाली एक मजदूर की पत्नी इसकी ताजा नजीर बन गई है। एक बीडीसी प्रत्याशी की चुनौती को स्वीकार करते हुए महिला के पति ने कामकाज छोड़कर चुनाव की तैयारी में दिनरात एक कर दिया। रविवार को जब परिणाम आया तो चुनौती देने वाले चित नजर आए। हरबसपुर गांव में रहने वाले मूलचंद्र पासी ने बताया कि वह मजदूरी कर परिवार चलाते हैं। घर के नाम पर गांव में एक झोपड़ी है, जिसमें पत्नी सरोजनी के साथ रहते हैं।

दो वक्त की रोटी के लिए रोज सुबह निकल जाते हैं और रात को राशन लेकर लौटने पर पूरे परिवार के साथ पेट भरते हैं। बताया कि उन्हें चुनाव के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और न ही कभी पत्नी को चुनाव लड़ाने के बारे में सोचा था। एक दिन बीडीसी का चुनाव लड़ रहे सोनू पासी ने उन्हें चुनौती देते हुए कहा कि अगर चुनाव लड़ जाओ तो दो वोट भी नहीं मिलेंगे। उनकी इस चुनौती को उस वक्त स्वीकार तो कर लिया, लेकिन कोई जानकारी न होने से मन व्यथित भी था। इस बीच, गांव के कुछ लोगों ने उनका समर्थन कर हौसला बढ़ाया। इस पर कामकाज छोड़कर चुनाव की तैयारी में जुट गए। महिला सीट होने पर पत्नी को बीडीसी पद का प्रत्याशी बनाया। रविवार को परिणाम घोषित हुए तो पता चला कि उनकी मेहनत रंग लाई और सरोजनी ने 452 वोट पाकर प्रतिद्वंद्वियों का मुंह बंद कर दिया। वहीं, चुनौती देने वाले सोनू को 297 वोट ही मिले।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. मनोज मिश्रा का कोरोना से निधन

कानपुर : यूपी में कोरोना का कहर जारी है। संक्रमितों के साथ-साथ कोरोना से मौतों का आंकड़ा भी तेजी से बढ़ रहा है। इस बीच भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. मनोज मिश्रा का कोरोना से निधन हो गया है। डॉ. मनोज मिश्रा को कोरोना संक्रमण के बाद निजी अस्पताल में भर्ती किया गया था।  वे पिछले कई दिनों से जीवन और मृत्यु से संघर्ष कर रहे थे। अस्पताल में स्थिति बिगड़ने के बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। डॉक्टरों के अथक प्रयास के बाद भी भाजपा के वरिष्ठ प्रवक्ता को बचाया नहीं जा सका। डॉ मिश्रा बीते 14 वर्षों से पार्टी के प्रवक्ता थे। आपको बता दें कि यूपी में पिछले कुछ दिनों में बीजेपी के कई नेताओं की कोरोना से मौत हो चुकी है।

विकास दुबे की मौत के बाद बिकरू में मधु बनीं प्रधान

कानपुर : लंबे समय तक आतंक का पर्याय बने रहे विकास दुबे के खात्मे के उपरांत बिकरू ग्राम पंचायत में लगभग ढाई दशक बाद एक बार पुन: लोकतंत्र का उदय हुआ। 25 साल बाद बिना किसी दबाव के चुनाव हुए। मतदान में गणना के बाद मधु ने जीत दर्ज करके इतिहास रच दिया है। यहां मधु और प्रतिद्वंद्वी बिंदु कुमार के बीच कांटे की टक्कर रही। कड़े मुकाबले के बाद मधु ने जीत दर्ज की है। उनकी जीत के बाद गांव में जश्न का माहौल है। यहां दस प्रत्याशी चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे थे, जबकि मधु और बिंद कुमार के बीच टक्कर मानी जा रही थी। कड़े मुकाबले के बीच मधु ने 381 वोट हासिल किए हैं, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी बिंद कुमार को 327 वोट मिले हैं। पंचायत चुनाव में मतदान के बाद से बिकरू और पड़ोस के गांव भीटी गांव में चुनाव परिणाम आने से पहले ही आजादी जैसा माहौल है।

जबकि कुख्यात विकास दुबे के रहते यह नामुमकिन था। थाना क्षेत्र का बिकरू गांव कुख्यात विकास दुबे के कारण चर्चा में बना हुआ है। हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ने 2 जुलाई 2020 की रात अपने साथियों के साथ मिलकर सीओ बिल्हौर समेत 8 पुलिसकर्मियों की तब निर्मम हत्या कर दी थी, जब पुलिस टीम एक मामले में उसके घर पर दबिश देने आतंक का एक ऐसा नाम जिसके रहते वर्षों तक गांव में किसी ने उसके खिलाफ अपनी जुबान खोलने की कभी हिमाकत नहीं की। मालूम रहे कि विकास दुबे वर्ष 1995 में बिकरू ग्राम पंचायत का प्रधान बना था। उसकी दहशतगर्दी का ही नतीजा था कि एक बार ग्राम प्रधान बनने के पश्चात दोबारा उसकी मर्जी बगैर कोई प्रधान नहीं बन पाया।

वर्ष 2000 में अनुसूचित जाति के लिए सीट आरक्षित हुई तो दुर्दांत विकास दुबे ने गांव की गायत्री देवी को प्रधान बनवाया, लेकिन सत्ता चलाने के सारे अधिकार अपने पास ही सुरक्षित रखे। वर्ष 2005 में सामान्य महिला सीट होने पर छोटे भाई दीपू दुबे की पत्नी अंजली दुबे को निर्विरोध प्रधान बनाया। वर्ष 2010 में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीट पर गांव के रजनीकांत कुशवाहा को प्रधान बनाया, लेकिन बागडोर अपने हाथों में ही र तमाम दखलंदाजी व हिटलरशाही से आजिज आकर आखिर तत्कालीन प्रधान रजनीकांत गांव छोड़कर ही चले गए। वर्ष 2015 में एक बार पुन: मौका मिलने पर विकास ने अपनी बहू अंजली को निर्विरोध प्रधान बनवाया। ग्रामीणों की मानें तो दुर्दांत विकास दुबे के आगे जुबान खोलने का मतलब मौत को दावत देना जैसा था। विकास की मौत के बाद मानो यहां आतंक व दहशतगर्दी का पूरी तरह से अंत हो चुका है।

एक लाख आबादी पर एक चेस्ट फिजीशियन कोरोना रोगियों के फेफड़े क्षतिग्रस्त करके जान ले रहा

कानपुर :  में एक लाख आबादी पर एक चेस्ट फिजीशियन कोरोना रोगियों के फेफड़े क्षतिग्रस्त करके जान ले रहा है। 90 फीसदी रोगियों की मौत सांस तंत्र फेल होने से हो रही है, इसके बाद भी फेफड़ों को ठीक करने वाले विशेषज्ञों का टोटा है। ज्यादातर रोगियों का इलाज सामान्य फिजीशियन कर रहे हैं, जो जटिलताएं होने पर स्थिति नहीं संभाल पा रहे हैं। कोरोना से खराब फेफड़ों का इलाज करने वाले विशेषज्ञ चेस्ट फिजीशियन होते हैं, उनकी संख्या बहुत कम है। हालात ये हैं कि नगर में एक लाख आबादी पर एक चेस्ट फिजीशियन है। कोरोना से फेफड़ों को जो नुकसान हो रहा है, वह सामान्य किस्म की जटिलता नहीं है।

फेफड़ों की जटिलताओं का बारीकी से प्रोटोकॉल जो नहीं समझता, वह इसे नहीं संभाल पाएगा। सामान्य फिजीशियन ने इन जटिलताओं के बारे में पढ़ा ही नहीं है। इस स्थिति में कोरोना रोगी की जान अस्पताल में भर्ती होने के बाद भी खतरे में रहती है।कोरोना से इस वक्त फेफड़ों की नसों में खून के थक्के जमने के अलावा फाइब्रोसिस हो रही है। इससे एयर चैंबर का लचीलापन खत्म हो रहा है, जिससे कार्बन डाई आक्साइड बाहर नहीं निकल पाती है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के डॉ. मुरारीलाल अस्पताल में इस वक्त कुल मिलाकर पांच चेस्ट फिजीशियन हैं।

इनमें दो संविदा पर हैं। इस तरह हैलट में ही पर्याप्त चेस्ट फिजीशियन नहीं है। कोरोना रोगियों के इलाज की जिम्मेदारी मेडिसिन विभाग के डॉक्टरों पर है। रोटेशन में चेस्ट फिजीशियन की ड्यूटी लगाई जाती है। इसके अलावा कानपुर में जो अन्य कोविड अस्पताल हैं, उनमें दो-चार छोड़कर किसी में स्थायी चेस्ट फिजीशियन नहीं है। शहर में जनरल प्रैक्टिस करने वाले चेस्ट फिजीशियन ऑन कॉल रोगी देखा करते हैं। इसके अलावा रोगी को निश्चित दवाएं देकर, उनके प्रभाव का इंतजार करते हैं।

शहर में चेस्ट फिजीशियन की संख्या  40

नेशनल कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजीशियन सदस्य 1600

देश में चेस्ट फिजीशियन की संख्या  2500

कोरोना फेफड़ों को क्षतिग्रस्त करता है। क्षतिग्रस्त फेफड़ों का इलाज करने की अपनी विशेषज्ञता है। इलाज के तरीके और प्रोटोकॉल हैं। कोरोना में मुख्य प्रभावित अंग फेफड़े होते हैं इसके अलावा दूसरे अंगों पर भी प्रभाव हो सकता है। जो अंग प्रभावित हो उसके विशेषज्ञ की सलाह भी जरूरी होती है। डॉ. एसके कटियार, चेयरमैन नेशनल कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजीशियन (सेंट्रल जोन)

कोरोना से मौत का प्रमुख कारण निमोनिया और फाइब्रोसिस

कोरोना से अब तक जो मौतें हुई हैं, उनमें 90 से 95 फीसदी में निमोनिया मुख्य कारण है। फेफड़ों के क्षतिग्रस्त होने के बाद एआरडीएस होता है और मौत हो जाती है। इसके अलावा कैंसर, ब्रेन अटैक, हार्ट अटैक भी मौत का मुख्य कारण बन जाते हैं लेकिन ये रोगी पांच से 10 फीसदी ही होते हैं।

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