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बंगाल जीत के बाद भारत की बेटी बनने की राह पर ममता बनर्जी

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बंगाल : की बेटी अब भारत की बेटी बनने की राह पर है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने नारा दिया था बंगाल को चाहिए बंगाल की बेटी और इस नारे ने मोदी, शाह, नड्डा और योगी के तूफानी हमलों के खिलाफ ममता बनर्जी को न सिर्फ रक्षा कवच दिया बल्कि उन्हें विजय की माला भी पहनाई। अब इसी नारे को विस्तार देकर बंगाल की बेटी ममता बनर्जी भारत की बेटी बनकर 2024 में नरेंद्र मोदी की अगुआई वाले भाजपा गठबंधन को टक्कर देने की व्यूह रचना में जुट गई हैं। अपनी रणनीति के पहले चरण में ममता ने पश्चिम बंगाल के बाहर अपनी राजनीतिक स्वीकार्यता बनाने की कवायद शुरु कर दी है।

ममता बनर्जी का दिल्ली दौरा इस लिहाज से बेहद कामयाब माना जा सकता है कि एक तरफ उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री पश्चिम बंगाल के मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात करके अपने सरकारी दायित्व का निर्वाह किया। साथ ही, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, कमलनाथ, आनंद शर्मा, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात करके देश की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। ममता ने मीडिया के साथ संवाद करके उन तमाम मुद्दों पर अपनी बात रखी, जो उनकी भावी भूमिका को लेकर लगातार उठते रहे हैं।

इस बातचीत में उन्होंने बार-बार यह बात दोहराई कि वह खुद को नरेंद्र मोदी के मुकाबले संयुक्त विपक्ष के नेता के रूप में पेश नहीं कर रही हैं, बल्कि वह एक सामान्य राजनीतिक कार्यकर्ता की भूमिका में पूरे विपक्ष को सरकार के खिलाफ लड़ाई के लिए एकजुट करना चाहती हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में नेता के सवाल पर उन्होंने साफ किया कि इसका फैसला सारे राजनीतिक दल उचित समय पर करेंगे और यह भी मुमकिन है कि चुनाव के बाद इसका फैसला हो। उन्होंने यह भी कहा कि वह भाजपा विरोधी सभी दलों के नेताओं से तो मिल ही रही हैं, साथ ही वह गैर-भाजपा दलों के उन नेताओं और मुख्यमंत्रियों से भी मिलेंगी जो तटस्थ हैं और समय-समय पर संसद में भाजपा की मदद भी करते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें नवीन पटनायक, जगन रेड्डी, चंद्रशेखर राव जैसे नेताओं से भी मिलने में उन्हें कोई गुरेज नहीं है।

दरअसल ममता बनर्जी बेहद सधे कदमों से अपने कदम राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ा रही हैं। भले ही प्रशांत किशोर बतौर राजनीतिक रणनीतिकार अधिकारिक रूप से तृणमूल कांग्रेस के लिए काम अब नहीं कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह से ममता बनर्जी में बदलाव आया है, उससे साफ लगता है कि कहीं न कहीं पीके उन्हें सलाह और सुझाव दे रहे हैं। कभी बात-बात पर नाराज होने वाली तुनक मिजाज ममता इस बार बहुत संतुलित और सहज नजर आईं। पत्रकारों के असहज सवालों के भी जवाब उन्होंने हंसते हुए दिए। उन्होंने ज्यादातर सवालों के जवाब हिंदी और अंग्रेजी में दिए। यहां तक कि बांग्ला अखबारों के पत्रकारों के बांग्ला में पूछे गए सवालों का भी जवाब ममता बनर्जी ने हिंदी में दिया। मीडिया से मुलाकात के बाद सामूहिक रूप से राष्ट्रगान का गायन और जय हिंद व वंदे मातरम का उद्घोष भाजपा से राष्ट्रवाद की ठेकेदारी लेने का भी प्रयास माना जा सकता है। भले ही कांग्रेसी प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी की छवि देखते हों लेकिन ममता बनर्जी की कार्यशैली में साफ झलकता है कि उन पर इंदिरा गांधी का प्रभाव है।

ममता के करीबी सूत्रों का कहना है कि दीदी फिलहाल विपक्ष के सभी नेताओं से मिलकर उनके साथ अपने सीधे निजी रिश्ते बना रही हैं। वह भाजपा विरोधी दलों के बीच आपसी झगड़े में न पड़कर सबके बीच अपनी स्वीकार्यता बना रही हैं। इसीलिए वह कांग्रेस नेताओं से भी मिलती हैं तो अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात करती हैं। भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में वह उन राज्यों में प्रचार के लिए जाएंगी जहां भाजपा के मुकाबले सबसे मजबूत विपक्षी दल उन्हें बुलायेगा। जैसे एक सवाल के जवाब में ममता बनर्जी ने कहा कि अगर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी उन्हें चुनाव प्रचार के लिए बुलाती है तो वह जरूर जाएंगी।

लेकिन जहां दो गैर-भाजपा दलों के बीच लड़ाई होगी वहां चुनाव प्रचार में जाने से परहेज कर सकती हैं, जैसे पंजाब और उत्तराखंड जहां कांग्रेस के मुकाबले में आम आदमी पार्टी भी खम ठोक रही है। अपनी रणनीति के अगले दौर में ममता बनर्जी देश के विभिन्न राज्यों में सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक संगठनों के कार्यक्रमों, छात्रों, युवाओं और महिलाओं के गैर-राजनीतिक कार्यक्रमों में शिरकत कर सकती हैं और लोगों से सीधे संवाद करके जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता बनाने की कोशिश करेंगी। इस दौरान जितने भी विधानसभा चुनाव होंगे उनमें जहां भी भाजपा के सीधे मुकाबले में जो भी गैर-भाजपाई दल होगा, उसके लिए चुनाव प्रचार कर सकती हैं।

तृणमूल के एक पूर्व सांसद के मुताबिक दीदी धीरे-धीरे सभी विपक्षी दलों के बीच एक ऐसी कड़ी बनेंगी, जो 2024 के लिए विपक्षी दलों को उसी तरह एकजुट करेंगी जैसे कभी हरियाणा का चुनाव जीतने के बाद चौधरी देवीलाल और बुजुर्ग माकपा नेता हरिकिशन सिंह सुरजीत ने किया था। लेकिन इस कवायद के दौरान भी ममता बनर्जी खुद को नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रधानमंत्री पद का चेहरा तब तक घोषित नहीं करेंगी जब तक कि उन पर सबकी सहमति न बन जाए और अगर चुनाव तक सहमति नहीं बनती है तो वह चुनाव के बाद इस दौड़ में खुद को आगे करेंगी।

ममता से जब पूछा गया कि क्या वह राष्ट्रीय राजनीति और दिल्ली में आना पसंद करेंगी तो उन्होंने हंसते हुए कहा कि बंगाल (कोलकाता) में उनका बड़ा प्यारा सा घर है और वह उसी में रहना चाहेंगी। उन्होंने दोहराया कि वह एक सामान्य राजनीतिक कार्यकर्ता हैं और उसी भूमिका में रहेंगी। जब उनसे पूछा गया कि क्या वह प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देने वाराणसी जाएंगी तो उन्होंने कहा कि वह वाराणसी भी जाएंगी। मथुरा, अयोध्या, वृंदावन, बद्रीनाथ, देहरादून सब जगह जाएंगी। क्योंकि देश में वह कभी भी जाने के लिए स्वतंत्र हैं।

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल चुनावों के दौरान ही ममता बनर्जी ने राष्ट्रीय राजनीति में आने के अपने इरादे साफ कर दिए थे। उन्होंने अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बनारस आकर चुनौती देने की बात भी कही थी। चुनावों में मिली तूफानी जीत के बाद उन्होंने लगातार अपने मोदी और भाजपा विरोधी तेवर बरकरार रखे। उनके चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर की शरद पवार, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी समेत कई विपक्षी नेताओं से मुलाकातें भी लगातार चर्चा में रही हैं। फिर प्रमुख विपक्षी नेताओं के साथ वर्चुअल मीटिंग करके ममता ने राष्ट्रीय राजनीति में अपने कदम और आगे बढ़ा दिए। पश्चिम बंगाल में भले ही पूरी ताकत लगाने के बावजूद भाजपा 100 सीटों का आंकड़ा नहीं छू सकी, लेकिन 2016 में उसकी तीन सीटों की तादाद 2021 में बढ़कर 77 हो जाने और 37 फीसदी वोट प्रतिशत पाने से भी ममता बनर्जी को कोई चिंता या परेशानी नहीं है। इसे लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि भाजपा सिर्फ इसलिए इतनी सीटें और वोट प्रतिशत पा सकी है क्योंकि माकपा और कांग्रेस का सफाया हो गया है।

जैसे ही माकपा और कांग्रेस फिर मजबूत होंगे भाजपा का सफाया हो जाएगा। वाम मोर्चे के साथ अपने संबंधों को लेकर भी ममता किसी दुविधा में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वाम मोर्चो को तय करना है कि उनकी लड़ाई भाजपा से है या तृणमूल कांग्रेस से। अगर वह भाजपा से लड़ने के लिए सबके साथ आते हैं तो उन्हें कोई एतराज नहीं होगा। ममता से जब पूछा गया कि पश्चिम बंगाल के बाहर क्या लोग उन्हें स्वीकार कर लेंगे तो उनका जवाब था अगर गुजरात से निकल कर नरेंद्र मोदी देश में स्वीकार्य हो सकते हैं तो बंगाल से निकलकर वह या कोई और स्वीकार क्यों नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि यह एकाधिकार सिर्फ गुजरात का ही नहीं है बल्कि देश के हर राज्य का है कि वहां से निकलने वाले लोग भारत के पुत्र या पुत्री के रूप में अपनी पहचान बनाएं। इस जवाब से साफ संकेत है कि बंगाल की बेटी भारत की बेटी बनने के लिए निकल पड़ी है।

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