फतेहपुर बाराबंकी : कस्बे के जैन धर्मशाला में भावलिंगी सन्त श्रमणाचार्य विमर्श सागर जी गुरुदेव ने प्रवास के सातवें दिन जैन मुनियों व श्रावकों को आचार्य की चर्या व अपने कर्तव्यों का बोध कराया । उन्होंने कहा कि जैसे आप अपने घरो में बड़ो का सम्मान व उनके अनुरूप कार्य करते है। ठीक उसी तरह आपका दायित्व है कि सन्तो,आचार्यों के साथ उनकी चर्या के अनरूप व्यवहार करें। मनुष्य जीवन मे सब कुछ त्याग कर सन्त बनता है, उसे किसी चीज की कोई अभिलाषा नही होती। आप जो सन्त के साथ कर रहे है।
उसका फल आपको मिलेगा। उससे सन्त का कोई सरोकार नही है।क्योंकि जैन सन्त वीतरागी होते है । उन्हें किसी भी वस्तु या आहार की कोई भी इच्छा नही रहती। यह तो श्रावक पर निर्भर है कि उसे सन्त के साथ कैसा आचरण करना चाहिये। सुबह मंदिर जी मे भगवान जिनेन्द्र देव का अभिषेक, शांतिधारा,पूजन आरती आदि विधिविधान पूर्वक की गई।शाम को गुरुवंदना, प्रश्नमंच व आरती बड़ी ही भक्त प्रभावना पूर्वक की गई।बाराबंकी,बेलहरा, महमूदाबाद, पैतेपुर की जैन समाज सहित काफी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।