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हुसैन का ज़िक्र ज़िक्र ए ख़ालिद है : मौलाना सैयद क़मर हैदर ज़ैदी

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लखनऊ : सआदत अली खान के मकबरा में मौलाना सैयद क़मर हैदर ज़ैदी ने 9 मोहर्रम की मजलिस को खिताब करते हुए कहा कि वाकये कर्बला में आशूरा के दो नजरिये या दो तसव्वुर हो सकते हैं और दो मनहज हो सकते हैं

हम एक मर्तबा आशूर को माददियात और मैटेरियलिज्म के ऐतबार से देखें और दूसरे सपरिचुअलिज़्म के एतबार से देखें अगर हम सिर्फ मैटेरियलिज्म और माददियात के ऐतबार से देखते हैं तो सन एकसठ हिजरी में यह वाकेया रूनुमा हुआ था कुछ लोग आए थे और शहीद हो गए बात खत्म हो जाती।

लेकिन अगर आज तक यह वाकेयात और यह चीजें जिंदा ओ जावेद हैं इसका मतलब यह है कि यह मावरायत तबीयत है इसमें ग़ैबी और मानवी और स्पिरिचुअल सिस्टम का काफी अमल दख़ल है इसलिए हमारे यहां हदीसों रवायतों की सैकड़ो की तादाद मौजूद है इस बात की तरफ इशारा है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जिक्र और उनके असहाब का जिक्र जिक्र ए खालिद है जो हमेशा बाकी रहेगा और इसकी मिसाल सबसे बड़ी मिसाल यह है

कि आज इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यहां तक के अपने आखिरी वक्त में मकातिल में लिखा है लिखा है कि आप वक्ते शहादत मुस्कुरा रहे थे तो यह मुस्कुराहट की वजह क्या थी इतनी सख्त हालत में कि जिस वक्त प्यास से आपके ऊपर गलबा है जख्मो से चूर है और आप ज़िक्र किए जा रहे हैं और उस वक्त मुस्कुरा रहे हैं  और कह रहे हैं कि मैं कामयाबी देख रहा हूं और मौत एक शहादत है।

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