बांदा। बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के आधीन संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा संचालित गौ आधारित प्राकृतिक खेती परियोजनान्तर्गत दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलन के साथ मुख्य अतिथि प्रो0 (डा0) एन0पी0सिंह कुलपति, बीयूएटीके द्वारा किया गया। उद्घाटन सत्र के दौरान कुलपति ने कहा कि खेती में प्रयुक्त रसायनों की बढ़ती कीमतों एवं घटती उत्पादकता तथा मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण प्रदूषण जैसी चुनौतियों का समाधान प्राकृतिक खेती में ही सम्भव है। हमारी सरकार एवं वैज्ञानिक इस दिशा में प्रयासरत हैं कि कृषकों की खेती की लागत को कम कर टिकाऊ उत्पादन कैसे प्राप्त किया जाये। बुन्देलखण्ड की भूमि में ऊर्वरकों का प्रयोगअपेक्षाकृत कम हुआ है इसलिए उ0प्र0 सरकार द्वारा बुन्देलखण्ड को प्राकृतिक खेती परियोजना आरम्भ करने के लिए उपयुक्त पाया इसी क्रम में विश्वविद्यालय द्वारा भी प्राकृतिक खेती पर शोध का कार्य प्रारम्भ किया गया है जिससे इसके वैज्ञानिक पहलुओं पर प्रकाश डाला जा सके।मा0 कुलपति ने बताया कि फसल चक्र अपनाकर खेती में विविधिकरण होता है जिससे पैदावार 20-25ः तक बिना लागत बढ़ाये ही बढ़ जाती है। प्राकृतिक खेती करने पर पारिस्थितिकी में विभिन्न वनस्पतियों, जीवों व जन्तुओं की विविधता अधिक होने से इनका सन्तुलन बना रहता है और फसलों के स्वस्थ्य होने पर उनमें रोग व्याधि भी नहीं लगते तथा पैदावार अधिक प्राप्त होती है। मा0 कुलपति ने कृषकों का आवाह्न किया कि वे गौ आधारित प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए आगे कदम बढ़ायें जिसमें विश्वविद्यालय उनके साथ खड़ा हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार एक व्यवस्था करने जा रही है जिससे प्राकृतिक खेती के उत्पाद की कीमत अधिक मिलेगी। इसके लिए प्रमाणीकरण की व्यवस्था की जायेगी। उन्होंने केवीके के वैज्ञानिकों को निर्देशित किया कि कृषकों की समस्याओं को सुना जाए और उसको नोट किया जाए तथा वैज्ञानिकों के साथ चर्चा करके उसका समाधान दिया जाए। वैज्ञनिकों को कृषकों के खेत पर जाकर चर्चा को सार्थक करने की आवश्यकता है।
निदेशक प्रसार डा0 (प्रो0) एन0 के0 बाजपेयी ने बताया कि हरित क्रान्ति से उत्पादन तो बढ़ा परन्तु कई प्रकार की गम्भीर समस्यायें भी उत्पन्न हुयीं है। रसायनों के अत्यअधिक उपयोग के कारण कीटों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से उनकी जनसंख्या का नियन्त्रण नहीं हो पा रहा है साथ ही जैव विविधता में कमी आ रही है। प्राकृतिक खेती से मृदा स्वास्थ्य होगी और उत्पादन भी स्वस्थ्य होगा। सह निदेशक प्रसार डा0 (प्रो0) आनन्द सिंह ने बताया कि प्राकृतिक खेती में जीवाणु और केचुए की संख्या बढाने के लिये कुछ सस्य क्रियायें जैसे खेत की कम से कम जुताई, जीवाणुओं के फूड सोर्स के तौर पर फसल अवषेष व हरी खाद का प्रयोग, मल्चिंग, वापसा, जैव विविधता और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से जीवामृत के प्रयोग खेत में जीवाणुओं की वृद्धि करने में सहायक होते हैं। इसे अपनाकर कृषक कृषि निवेशों की बाजार से निर्भरता को कम कर सकते हैं इस प्रकार लागत में भी कमी आयेगी। इससे उत्पादित खाद्य पदार्थों से मानव स्वास्थ्य को सुरक्षित बनाया जा सकता है साथ ही मृदा स्वास्थ्य को सुधारा जा सकता है। उन्होंने प्रशिक्षण मे उपस्थित प्रगतिशील कृषकों से आवाह्न किया कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दें व अन्य कृषकों को प्ररित करें कि थोड़ी सी भूमि पर इसका परीक्षण अवश्य करें। सह निदेशक प्रसार डा0 (प्रो0) नरेन्द्र सिंह ने प्राकृतिक खेती का मूल, सन्तुलित व पौष्टिक भोजन को बताया। उन्होंने कहा कि आधुनिक रासायनिक खेती से उत्पादन बढ़ा है साथ ही कृषकों की आमदनी भी बढ़ी है किन्तु आमदनी का ज्यादा हिस्सा बीमारी में व्यय होता है और पर्यावरण का क्षरण हो रहा है साथ ही उत्पादकता भी घट रही है।प्राकृतिक खेती एक अच्छा विकल्प हो सकती है। प्रशिक्षण शुभारम्भ के अवसर पर केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने परियोजना के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और कृषकों का आवाह्न किया कि वे प्राकृतिक खेती की ओर रूचि लें तथा आने वाली समस्याओं से केन्द्र अवगत कराएं वैज्ञानिकों द्वारा उनका समाधान किया जायेगा। अन्त में केन्द्राध्यक्ष ने सभी अतिथिओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में 3 विकासखण्डों के 5 ग्रामों से 40 कृषकों ने प्रतिभाग किया। मंच का संचालन डा0 मानवेन्द्र सिंह ने किया।