ऐ ख़ुदा इस क़ौम को दे कल्बे सादिक़ का मिज़ाज
ख़िदमते इनसानियत के वास्ते जागे समाज
वक्त की जो अहमियत समझे वही दींदार है
यूँ तो दुनिया मे सभी करते हैं अपने काम काज
मजलिसों में इल्मो हिकमत का हमेशा तज़किरा
था इमामे वक़्त की ख़िदमत मे ये उनका ख़िराज
क़ौम को जो कर दे ग़ाफ़िल इसकी हाजत कुछ नही
तोड़ देना चाहिए बे फ़ायदा रस्मो रवाज
इल्म ही उढ़ना बिछौना बन चुका था आपका
जेहेल से करते रहे सादिक़ हमेशा एहतिजाज
क़ौम को वो नेमतें दे कर गये हैं दोस्तों
अपनी ख़ातिर माले दुनिया की नहीं थी एहतियाज
बाप दादा का मिला तरका सम्भाला शान से
वसअतें हैं देखिए बहरे फ़रोग़े इल्म आज
किस क़द्र थी जाँ फ़िशानी ज़िन्दगी में आपकी
सर पे अपने कौन रखेगा ये अब काँटों का ताज
नौ रबीउस्सानिया को बहरे जश्ने असकरी
कल्बे सादिक़ को बुलाया रब ने आ मिसले सिराज
साफ़ ज़ाहिर साफ़ बातिन साफ़ गोयाई रही
क़ुर्बे सादिक़ कल्बे सादिक़ को मिला “मक़बूल” राज
अज़ नतीजा-ए-फ़िक्र:- मक़बूल जायसी साहब