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रतन टाटा जी के महत्वपूर्ण योगदान जिनको कभी भुलाया नहीं जा सकता हैं

The unforgattable Rare Diamond

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RATAN TATA JI रतन टाटा। भारत के अनमोल रतन। उनके निधन पर आज पूरा देश रो रहा है। ऐसा देश जहां उद्योगपतियों को कुछ खास अच्छी नजर से नहीं देखा जाता, वहां रतन टाटा हरदिल अजीज थे। उनकी सादगी। उनकी ईमानदारी। उनका विजन। उनका नेतृत्व…सब कुछ शानदार रहा। धड़कनों में देश और दिल में मानवता।

कर्मचारियों को हमेशा परिवार का हिस्सा माना। प्रेम, दया, करुणा…जिनके व्यक्तित्व में ये शब्द साकार हो जाते थे। अर्थ पा जाते थे। यूं ही कोई रतन टाटा नहीं हो जाता है। ये क्यों कह रहे, समझना है तो सिर्फ 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के वक्त उन्होंने जो कुछ किया, उसे देख-समझ लीजिए। पता चल जाएगा कि रतन टाटा एक अलग ही मिट्टी के बने थे। होटल ताज में आतंकियों की गोलियां तड़तड़ा रही थीं और उसी तड़तड़ाहट के बीच न सिर्फ टाटा वहां पहुंच गए बल्कि डटे रहे। आतंकी हमले के पीड़ितों की मदद के लिए जो किया, उसकी सदियों तक मिसालें दी जाएंगी।

26 नवंबर 2008 की मनहूस शाम। देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाली मुंबई पर पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने हमला कर दिया। हमला क्या किया, एक तरह से पूरे शहर को बंधक बना लिया। 60 घंटों तक। 3 दिनों तक आतंकियों ने जहां-जहां तांडव किया, उनमें से एक था मशहूर ताज होटल। वही जिसे 1903 में रतन टाटा के दादा जमशेद जी टाटा ने इसलिए बनवाया था कि नस्लभेद की वजह से उन्हें मुंबई के वाटसंस नाम के एक होटल में जाने से रोक दिया गया था। मुंबई हमले के दौरान सबसे आखिर में जिस जगह पर आतंकियों का सफाया हुआ, वह था ताज होटल। मुंबई आतंकी हमले में 166 लोगों की मौत हुई थी। 10 आतंकियों में से 9 ढेर कर दिए गए। अजमल कसाब नाम के आतंकी को जिंदा पकड़ा गया जिसे बाद में फांसी दी गई।

रतन टाटा को जैसे ही ताज होटल पर हमले की जानकारी मिली, वह आतंकियों की गोलीबारी की परवाह किए बिना तुरंत वहां पहुंच गए। होटल गोलियों की तड़तड़ाहट से थर्रा रहा था और उसी बीच वह वहां पहुंच गए। सिर्फ पहुंचे ही नहीं, 3 दिन और 3 रात तक वहां डटे रहे। उस वक्त होटल में स्टाफ के अलावा करीब 300 गेस्ट थे। उन्होंने ये सुनिश्चित करने की भरपूर कोशिश की कि सभी सुरक्षित रहे

 


मुंबई आतंकी हमले के बाद ताज होटल के पीड़ितों के लिए टाटा ने जो किया, वह सिर्फ वही कर सकते थे। सिर्फ ताज होटल पर हमले में मारे या घायल हुए पीड़ित ही नहीं, बल्कि कई दूसरे पीड़ितों और उनके परिजनों की मदद सुनिश्चित की। रतन टाटा होटल के 80 कर्मचारियों के परिवारों से व्यक्तिगत रूप से मिले जो या तो मारे गए थे या जख्मी हुए थे। ऐसे कर्मचारी जिनके परिजन मुंबई से बाहर रहते थे, उन्हें टाटा ने मुंबई बुलवाया और ध्यान रखा कि उनका मेंटल हेल्थ प्रभावित न हो। उन सभी को होटल प्रेसिडेंट में 3 हफ्तों तक ठहराया गया।
सिर्फ 20 दिनों के भीतर टाटा की तरफ से एक नया ट्रस्ट बनाया गया जिसका मकसद कर्मचारियों को राहत पहुंचाना था। रतन टाटा ने आतंकी हमले के पीड़ितों के 46 बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की पूरी जिम्मेदारी ली। मारे गए हर कर्मचारी के परिवार को 36 लाख से लेकर 85 लाख रुपये तक का मुआवजा सुनिश्चित किया।
सिर्फ ताज होटल के कर्मचारियों की नहीं बल्कि आतंकी हमले के पीड़ित रेलवे कर्मचारियों, पुलिस स्टाफ, वहां से गुजर रहे राहगीरों जैसे दूसरे लोगों को भी मुआवजा दिया। इनमें से सभी को 6 महीने तक 10 हजार रुपये महीने की मदद दी गई।

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