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जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए भाजपा व सपा में शह-मात की जंग जारी

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फतेहपुर : जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी के लिए 3 जुलाई को होने वाले मतदान में जो हालात बन रहे हैं उससे भाजपा व सपा के बीच कांटे के मुकाबले की उम्मीद क्षीण हो गई है।दावे अभी भी बड़े हैं लेकिन अंदर खाने जो खेल चल रहा है उसमें भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी का चुनाव जीतना तय माना जा रहा है।वहीं समाजवादी पार्टी ने सत्ताबल,धनबल,बाहुबल के आगे जिस तरह से तटस्थता दिखाई है उसके पार्टी की प्रत्याशी संगीता राज पासवान की छवि में सुधार लाजमी है। सपा खेमें में अभी मायूसी नहीं है।बड़े उलटफेर को लेकर कवायद जारी है और उसी की रणनीति बनाने में कद्दावर लगे हुए हैं।सफलता कितनी मिलेगी यह तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन फिलहाल भाजपा व सपा के बीच हालात फ्रेंडली फाइट जैसे बन गए हैं।

फतेहपुर जिले में जिला पंचायत बोर्ड 46 सदस्यों से गठित होगा।सदस्यों का चुनाव हो गया है और अब अध्यक्षी का बिगुल फुंका है।3 जुलाई को मतदान होना है भारतीय जनता पार्टी ने अभय प्रताप सिंह उर्फ पप्पू सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है तो समाजवादी पार्टी ने संगीता राज पासवान उर्फ संगीता देवी को अपना प्रत्याशी बनाया है। जब तक चुनाव परिणाम नहीं आ जाता तब तक कयास और उम्मीदों का सिलसिला जारी है।दोनों दलों कि अपनी गणित है और जीत के दावे किए जा रहे हैं।भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी ने 41सदस्यों के होने का दावा कर दिया है जबकि समाजवादी 27 सदस्यों के साथ चुनाव का परिणाम बदलने का दावा कर रहे हैं। नेता लगे भी हैं लेकिन उन्हें सफलता कितनी मिलेगी कुछ कहा नहीं जा सकता है।जो हालात हैं उससे समाजवादी पार्टी की अपेक्षा भारतीय जनता पार्टी का पलडा कुछ ज्यादा ही भारी है।

समाजवादी पार्टी ने जिस उम्मीद के साथ अपनी रणनीति को आगे बढ़ बढ़ाया था उसमें कहीं ना कहीं उन्हें असफलता हाथ लगी है।भारतीय जनता पार्टी खेमें में अंदर खाने चल रही उठापटक को समाप्त कर नेताओं को एकजुट करने में भाजपा प्रत्याशी को बड़ी सफलता मिली है।यह उनकी जीत का बड़ा मंत्र है।चुनाव परिणाम को अपने पाले में लाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने निर्विरोध चुनाव होने की जो रणनीति बनाई वह पूरी नहीं हो सकी। खबर है कि प्रस्तावकों एवं अनुमोदकों के साथ-साथ सपा प्रत्याशी तक का मोल लगाने की कोशिश की गई लेकिन दलित महिला प्रत्याशी ना तो किसी डर के आगे डिगी ना धनबल के आगे झुकी और ना ही सत्ताई दबाव को अपनी प्रत्याशिता के आगे आने दिया। शायद लोकतंत्र में यह किसी जीत से कम नहीं है।खबर तो यहां तक है कि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी,प्रस्तावकों एवं अनुमोदकों को खाकी का भी भय दिखाया गया लेकिन उनकी तटस्थता ने पार्टी के प्रति जो आस्था दिखाई वो काबिले तारीफ रही। चुनाव परिणाम आने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है।सदस्यों के जोड़-तोड़ की कहानी अभी भी शुरू है।किसको कितनी सफलता मिलेगी यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन सपा प्रत्याशी का बिना डरे अडिग रहना उन्हें प्रशंसा का पात्र बनाता है।

प्रसपा के प्रदेश सचिव पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जगनायक सिंह यादव ने दावा किया है कि सपा प्रत्याशी एवं उसके प्रस्तावकों, अनुमोदकों को डराने,धमकाने के अलावा बाहुबल और धनबल का भी प्रयोग किया गया लेकिन वे डिगे नहीं।संगीता एक दलित महिला होने के बावजूद सामंतवादी ताकतों के आगे मजबूती से खड़ी रहीं।सत्ताबल व बाहुबल का सामना किया। इतना ही नहीं उनके दाखिल नामांकन पत्रों के प्रस्तावकों व अनुमोदकों को भी खरीदने की जी-तोड़ कोशिश की गई।स्वयं संगीता राज पासवान को एक बड़ी रकम का आफर दिया गया था।उसे ठुकराते हुए अपनी दावेदारी को मजबूती से बनाए रखना सराहनीय रहा। यह तब हुआ जब सत्ता लोकतंत्र की हत्या करने के लिए आमादा थी।उस पर संगीता राज का अडिग रहना किसी जीत से कम नहीं है।

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