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जनाबे अब्बास की शहादत का मंज़र सुनकर गमगीन हुए अज़ादार

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लखनऊ  : आठवीं मोहर्रम दिन हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) के भाई व लश्करे हुसैनी के अलमदार हजरत अब्बास (अ.स.) से मंसूब है। सोमवार को उलमा ने मजलिसों में उनकी दर्दनाक शहादत को बयान किया, वही उनकी याद में जगह-जगह अलम की जियारत कराई गयी। दरगाह हजरत अब्बास सहित घरों में उनकी की नज्र दी गयी। तो विक्टोरिया स्ट्रीट पर सजे विशाल दस्तरखान। हजरत अब्बास (अ.स.) वह शख्सियत हैं जिन्होंने इमाम हुसैन (अ.स.) की गोद में आंखे खोली। वह तमन्ना-ए-अली और वफाओं का समन्दर हैं। कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन (अ.स.) ने हजरत अब्बास (अ.स.) से कहा अब्बास तुमने हमेशा मुझे आका कहा है एक बार भय्या कहकर पुकारों, यह सुनकर अजादारों में कोहराम मच गया। आज विक्टोरिया स्टी्रट अजादारी स्ट्रीट लग रहा था जहां देर रात तक मातमदारों की भीड़ रही। आज मजलिसों के बाद जहां जबदस्त सीनाजनी की गयी।

इमामबाड़ा गुफरामाआब चौक में मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा कि पैगम्बरे इस्लाम (स.) की हदीस है कि अली (अ.स) हक के साथ और हक अली (अ.स) के साथ है, फिर आपने दुआ करते हुए खरमाया, परवरदिगार हक़ को उधर उधर मोड़ दे जिधर अली जाएं। इस हदीस से ये मालूम होता है जहां अली (अ.स) हैं हक वही हैं और जो अली (अ.स) से आगे बढ़ जाये वो बातिल है क्योकि हक अली (अ.स) के पीछे है। रसूल अल्लाह (स.) के जमाने में हम जिक्रे अली (अ.स) के जरिये मोमिन और मुनाफिक की पहचान करते थे, इसलिए आज भी मोमिन और मुनाफिक की पहचान के लिए अली (अ.स) का जिक्र कसौटी है।

इममाबाड़ा जन्नतमाब तकी साहब चौक में मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि अहलेबैत की मिसाल उस चिराग कि तरह है जो रास्ते मे रौशनी का काम करता है। अब अगर किसी को जन्नत में जाना है तो विलायत की रौशनी मे जाना होगा। कुरान को समझना है तो विलायते अली की रौशनी मे समझना होगा तभी किताबे खुदा समझ मे आएगी।

इमामबाड़ा आगा बाकर चौक में मौलाना मीसम जैदी ने मजलिस को खिताब करते हुए कहा कि मौला अली (अ.स.) की अदालतों का कोई जवाब नहीं था। उनकी अदालत में हर किस्म के फैसले आते थे। उन्होंने रसूल (स.) की जिंदगी में उनके हुक्म से तमाम फैसले किये। जब उनकी हुकूमत नहीं रही तब भी लोग उन्ही के पास फैसला कराने आते थे।

मकबरा सआदत अली खां हजरतगंज में मौलाना कमर हैदर ने कहा कि कर्बला में हजरत इमाम हुसैन के चाहने वालों ने उनकी एक आवाज पर लब्बैक कहते हुए हाजिर हुए और शहादत दी। जिन लोगों ने कर्बला में इमाम हुसैन (अ.स.) की मोहब्बत में इंसानियत और मानवता के लिए शहादत दी उनका नाम रहती दुनिया तक बाकी रहेगा। बाकी जो सच्चाई और मानवता  के खिलाफ थे वह कर्बला के मैदान में ही मिट गए थे और उन्हें कभी याद नहीं किया जाएगा।

इमामबाड़ा कसरे हुसैनी बिल्लौचपुरा में मौलाना मोहम्मद मियां आब्दी ने कहा कि हजरत अली अलैहिस्सलाम ने अपने दौरे हुकूमत में ऐसी मिसाली हुकूमत कायम की जिसमें अदल आैर इंसाफ कायम था। कर्बला की घटना समस्त मानवता के लिए सीख है। अगर कर्बला की एतिहासिक घटना से मिलने वाले पाठों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतिरत की जाये तो पूरी मानवता को उससे लाभ मिलेगा।
कर्बला अजमतुद्दौला बहादर मेंहदीगंज में मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना फिरोज अब्बास ने कहा कि जमाना सदियों से इमाम की अजादारी को मिटाने की कोशिक करता आ रहा है लेकिन इसे खत्म करने की कोशिक करने वाले खत्म हो गये लेकिन इमाम की अजादरी बढ़ती ही जा रही है।

रौजाए जैनबिया टिकैत राय तालाब में मौलाना तकी रजा ने कहा कि कर्बला जो है हमारे लिए हक आैर इंसाफ की आवाज बुलन्द करने वाली है। हजरत इमाम हुसैन की शिक्षा ये सिखाती है कि जुल्म के आगे न झुको भले ही सर कट जाए।

हुसैनी इमाम बारगाह अलीगंज में मौलाना इब्रााहीम कुम्मी ने कहा कि इस्लाम गदीर में मुकम्मल हुआ आैर कर्बला में महफूज हुआ। अगर हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कर्बला के मैदान में अपनी व अपने साथियों की कुर्बानी नहीं देते तो आज इस्लाम न होता।
इमामबाड़ा नाजिम साहब में हुई मर्सिये की मजलिस
इमामबाड़ा नाजिम साहब में मर्सिये की मजलिस में फैज बाकर ने हजरत अब्बास (अ.स.) के हाल का मर्सिया अपने मख़सूस अंदाज में पढ़ा: ख़ेमे की सिम्त रुख़ को फिराए था वह बसीर,मकसद ये था कि देख ले आका को ये हकीर,फौजे हटा के आ गए शब्बीर ने नजीर,भाई का हाल देख के होते थे अश्क गीर,ऐसा कभी किसी को न भाई मिला हुसैन,आंखों में तीर दिल में सिनांलब पे या हुसैन।

हुई नज्रें सजे विशाल दस्तरखांन

हजरत अब्बास (अ.स.) की याद में घरों-घरों शीरमाल-कवाब आैर कवाब-पराठों पर नज्र की जाती है। महिलाओं ने मौला अब्बास की नज्र के लिए  घरों में कवाब-पराठा बनाया वहीं बाजार से शीलमालों की खरीदारी की गयी। आैर  नज्रों का आयोजन किया गया। इसके अलावा विक्टोरिया स्ट्रीट पर विशाल दस्तरखांन भी किये गये जहां लोगों ने नज्र चखी।
नंगे पैर मजलिसों में हुए शामिल
कर्बला के गम में डूबे अजादार कल से नंगे पैर मजलिसों में शिरकत कर रहे हैं यह सिलसिला दसवीं मोहर्रम तक जारी रहेगा। आठवीं मोहर्रम पर आज विक्टोरिया स्टी्रट अजादारी स्ट्रीट लग रहा था जहां देर रात तक मातमदारों की भीड़ रही। अजादार जमीन पर बैठकर मजलिसें सुन रहे हैं।

जुलूस ए अलमे फातेह फुरात

लखनऊ । हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) के भाई व लश्करे हुसैनी  के अलमदार हजरत अब्बास (अ.स.) की दर्दनाक शहादत की याद में सोमवार को गोमती नदी किनारे स्थित दरियावाली मस्जिद से ‘जुलूस अलम-ए-फातेह फुरात” निकाला गया। जुलूस इमामबाड़ा गुफरांमाब चौक पहुंच कर समाप्त हुआ। जुलूस के दौरान सुरक्षा के कड़े प्रबन्ध किये गये थे। जुलूस से पूर्व मौलाना कल्बे जव्वाद ने मजलिस को खिताब करते हुए कहा कि जब भतीजी शहजादी जनाबे सकीना (स.अ.) प्यास से बेहाल हो गयीं, तो चचा हजरत अब्बास (अ.स.) से यह बर्दाश्त न हुआ। वह अलम व मशक लेकर घोड़े पर सवार होकर पानी लाने नहरे फुरात गये। जहां उन पर यजीदी फौज ने तीरों की बारिश कर दी और उनको शहीद कर दिया। यह सुनकर मजलिस में कोहराम मच गया। मजलिस के बाद मस्जिद से जैसे अलम बाहर आया तो पूरा माहौल या सकीना… या अब्बास… की सदाओं  से गूंज उठा। जुलूस बड़ा इमामबाड़ा, नीबू पार्क होता हुआ चौक स्थित इमामबाड़ा गुफरांमआब पहुंचा। हजरत अब्बास (अ.स.) के अलम की जियारत करने वालों की जुलूस मार्ग पर जबरदस्त भीड़ थी। हजारों पर्दानशीन महिलाएं अलम की जियारत करने के लिए अपने बच्चों के साथ जुलूस का इंतजार कर रहीं थी। जुलूस के दौरान रास्ते में जगह-जगह लोग अलम पर फूलों के सेहरे व हार चढ़ाकर अपनी नजराने अकीदत पेशकर रहे थे। जुलूस के आगे अलम-ए-फातेह फुरात का बैनर था। बैनर के पीछे लोग जलती मशाले लिए थे। अजादार या सकीना, या अब्बास के नारों के बीच जोरदार सीनाजनी करते हुए चल रहे थे। इससे पूर्व मस्जिद में अलम सजने के बाद लोग अपनी मन्नते बढ़ाने वहां पहुंचे और नज्र दी।

जुलूस-ए-शबे आशूर आज

कर्बला के शहीदों की याद में मंगलवार को इमामबाड़ा नाजिम साहब विक्टोरिया स्ट्रीट से नौवीं मोहर्रम पर ‘जुलूस-ए-शबे आशूर” अलम का जुलूस निकाला जाएगा। इससे पूर्व मौलाना कल्बे जव्वाद नकवी रात 9  बजे मजलिस को खिताब करेंगे। जुलूस यहां से निकल कर विभिन्न रास्तों होता हुआ दरगाह हजरत अब्बास (अ.स.) जायेगा।आज

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