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दुनियावी इच्छाओं को काबू में रखने का नाम है रोज़ा

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लखनऊ : रमजान-उल-मुबारक का महीना एक ऐसा महीना है, जिसके बारे में अल्लाह ने फरमाया कि ये मेरा महीना है, और रोजेदार को रोजों का बदला मैं खुद दूंगा। यही वजह है, कि तमाम रोजेदार इस माहे मुबारक में यह कोशिश करते हैं, कि रोजे की हालत में उनसे कोई भी गुनाह न हो।

हदीस शरीफ में आता है, कि अल्लाह के रसूल ने फरमाया कि जो शख्स रोजा रखें,लेकिन बुरे कामों और गलत बातों से परहेज न करें तो उसको भूखे-प्यासे रहने की अल्लाह को कोई जरूरत नहीं। इससे यह बात साबित होती है, कि अल्लाह के दरबार में एक रोजेदार का रोजा कुबूल होने के लिए यह लाजमी है, कि इंसान खाना-पीना छोड़ने के अलावा तमाम गैर इस्लामी, गैर इंसानी और गैर शरई कामों को छोड़ दे तभी उसे रोजे का पूरा फायदा और सवाब हासिल होगा।

रोजे की हालत में किसी से भी लड़ाई-झगड़ा करने और गुस्से को भी सख्ती से मना किया गया है। रोजे की हालत में हर हाल में इन तमाम मजहबी बातों का ख्याल रखना और उन पर अमल करना हर रोजेदार के लिए बेहद जरूरी है। रोजा सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं है, बल्कि अपनी तमाम दुनियावी इच्छाओं को अपने काबू में रखने का नाम ही रोजा है।

इसका बड़ा सवाब है, जैसा कि अल्लाह ने फरमाया जो शख्स अल्लाह से डरे और अपनी खुवाहिशात-ए-नफ्स से रूके उसका ठिकाना जन्नत है। रोजा रखने का मकसद ही यही है, कि अल्लाह हमको जन्नत में जगह दे दें।

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