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वकार रिजवी की बीसवें की मजलिस संपन्न।

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लखनऊ  : उर्दू सहाफत के मजबूत स्तंभ, एक बेहतरीन इंसान , उर्दू और हिंदी सहाफत को एक प्लेटफार्म पर लाने का कारनामा करने वाले, सामाजिक कार्यकर्ता, इंसानियत के मददगार सैयद वकार मेहंदी रिजवी की बीसवें की मजलिस आज संपन्न हुई है। बीसवें की मजलिस इमामबाड़ा बारगाहे मेहंदी कच्चा हाता अमीनाबाद में सम्पन्न हुई जिसको मौलाना सैयद फ़ैज़ अब्बास मशहदी साहब ने खिताब कियासबसे पहले कुरानखानी का सिलसिला शुरू हुआ। कुरान खानी के बाद जनाब आलम साहब और जनाब शमीम हैदर साहब ने पेशखानी के फराइज अंजाम दिए उसके बा मौलाना ने मजलिस को खिताब किया। मौलाना ने कुराने पाक की सूरह वाक़ेया की आयत 60-61 की तिलावत की अपने बयान में मौलाना ने कहा इस सूरह को पढ़ने का सवाब कब्र में भी है और कब्र के बाहर दुनिया में भी है इस सूरह को पढ़ने वाले को अल्लाह कब्र में तनहा नहीं छोड़ता और दुनिया में इतना मालामाल करता है कि वह किसी दूसरे के सामने हाथ नहीं फैलाता।

मौलाना ने कहा है कि अल्लाह ने मौत को इंसान के मुकद्दर में लिख दिया है जिस तरह से अल्लाह ने हर इंसान के मुकद्दर में रिज़्क इज्जत और इल्म लिख दिया है उसी तरह मौत भी है मौलाना ने कहा कि हमें सब्र करना चाहिए। अगर कर्बला हमारे सामने ना होती तो सब्र करना बहुत मुश्किल होता क्योंकि कर्बला ने ही हमको सब्र करना सिखाया है  आखिर में मौलाना ने हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मसायब बयान किए। मसाज में मौलाना ने कहा कि इंसान की शोहरत और मकबूलियत का अंदाजा उसके जनाजे की भीड़ को देखकर लगाया जाता है। लेकिन इस्लाम के मकबूल तरीन शख्सियत रसूल अल्लाह, हजरत अली अलैहिस्सलाम और इमाम हसन के जनाजे में कितने लोग थे। और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जनाजा बैज्रो कफन कर्बला की जमीन पर पड़ा रहा। मसाएब सुनकर मौजूद लोग गिरिया और ज़ारी करने लगे।

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