बस्ती – सरस्वती विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय रामबाग में आज शहीदी दिवस की पूर्व संध्या पर गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान दिवस को ‘शहीदी दिवस’ के रूप में मनाया गया। जिसमें वंदना सभा में विद्यालय के प्रधानाचार्य अरविंद सिंह की गरिमामयी उपस्थिति रही।
विद्यालय के आचार्य आशीष सिंह ने सिख धर्म के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर जी को श्रद्धांजलि दी। साथ ही उन्होंने कहा कि कल 24 नवम्बर को सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। गुरु तेग बहादुर 24 नवंबर 1675 को शहीद हुए थे। उन्होंने आगे कहा कि कुछ इतिहासकारों के अनुसार गुरु तेग बहादुर 11 नवंबर 1675 को शहीद हुए थे। मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को सिर कटवा दिया था। औरंगजेब चाहता था कि सिख गुरु इस्लाम स्वीकार कर लें लेकिन गुरु तेग बहादुर ने इससे इनकार कर दिया था। गुरु तेग बहादुर के त्याग और बलिदान के लिए उन्हें “हिंद दी चादर” कहा जाता है। मुगल बादशाह ने जिस जगह पर गुरु तेग बहादुर का सिर कटवाया था दिल्ली में उसी जगह पर आज शीशगंज गुरुद्वारा स्थित है। गुरु तेग बहादुर का जन्म 18 अप्रैल 1621 को अमृतसर में हुआ था। गुरु तेग बहादुर का असली नाम त्याग मल था। उन्हें “करतारपुर की जंग” में मुगल सेना के खिलाफ अतुलनीय पराक्रम दिखाने के बाद तेग बहादुर नाम मिला। 16 अप्रैल 1664 को वो सिखों को नौवें गुरु बने थे। माना जाता है कि चार नवंबर 1675 को गुरु तेग बहादुर को दिल्ली लाया गया था। मुगल बादशाह ने गुरु तेग बहादुर से मौत या इस्लाम स्वीकार करने में से एक चुनने के लिए कहा। उन्हें डराने के लिए उनके साथ गिरफ्तार किए गए उनके तीन ब्राह्मणों अनुयायियों का सिर कटवा दिया गया लेकिन गुरु तेग बहादुर नहीं डरे। उनके साथ गिरफ्तार हुए भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गये, भाई दयाल दास को तेल के खौलते कड़ाहे में फेंकवा दिया गया और भाई सति दास को जिंदा जलवा दिया गया। गुरु तेग बहादुर ने जब इस्लाम नहीं स्वीकार किया तो औरंगजेब ने उनकी भी हत्या करवा दी। अपनी शहादत से पहले गुरु तेग बहादुर ने आठ जुलाई 1975 को गुरु गोविंद सिंह को सिखों का दसवां गुरु नियक्त कर दिया था।
अंत में उन्होंने यह भी बताया कि हमें उनसे प्रेरणा लेना चाहिए कि 14 वर्ष की अल्पायु में मुगलों के दांत खट्टे कर देने वाले महान धुरंधर एवं अद्वितीय प्रतिभा के धनी गुरु तेग़ बहादुर साहब का नाम धर्म एवं मानवीय मूल्यों के खातिर अपने प्राणों की आहुति देने वाले विभूतियों कि अग्रिम श्रेणी में आता है। जिन्होंने धर्म की महत्ता को स्थापित करने के लिए औरंगजेब द्वारा क्रूरता से प्रताड़ित होने के बाद भी इस्लाम कबुल नहीं किया। उन्होंने अपना सिर कटा दिया पर अपना केश (बाल) नहीं कटने दिया।