
लखनऊ : शिया वक़्फ़ बोर्ड के चुनाव को खत्म हुए एक महीना हो गया है। जैसे ही चुनाव वसीम और उसका साथी फ़ैज़ी जीतता है वैसे ही क़ौम के अफ़राद ने गुस्से का इज़हार करना शुरू कर दिया। पर हैरत की बात तब रही जब वो लोग जिनसे खुद एक पैग़ामी वीडियो में अपील की गई कि दानिश्वर,खतीब,ज़ाकिर और उलमाए हक़ आगे आये और इस चुनाव में मदद करे और मुत्तावलियान को रोके की वो वसीम मुर्तद को वोट ना दे। इस अपील पर ज़्यादातर लोगो ने खामोशी का रोज़ा रख लिया और मैदाने अमल से सब गयाब थे। अचानक वसीम के चुनाव जीतने के बाद वो अफ़राद जो खामोशी का रोज़ा रखे थे उन्होंने अपना रोज़ा तोड़ा और वीडियो पर तमाम इशू पर बोलने लगे। कभी किसी कैंडिडेट को लेकर कभी किसी और इशू पर तामाम लोगो ने बोला।
हालांकि ज़्यादातर लोग चुनाव की प्रक्रिया और तमाम मामलात से आशना ना थे। बहुत ज़्यादा हैरत की बात तब हुई जब वो लोग वसीम के साथ शामिल थे और फ़र्ज़ी दीनी लिबास पहनकर उसकी पसे पुश्त उसकी मदद करने में शामिल थे और उसके लिए रणनीति बनाने में बराबर से शामिल थे। श्याद अगर आप मुझ से आशना हो या उस दौरान मेरे लेख को सोशल साइट्स पर आपलोग पढ़ रहे हो तो आपलोगो को ये पता होगा कि मुसलसल ऐसे लोगो को मैं बेनिक़ाब कर रहा था। मैंने पहले ही लिखा था कि असीम(मुताव्वाली अफ़ज़ल महल नाख्खास) और मुजाहिद(सदर जोगीपुरा दरगाह) ये दोनों यासूब मियां की तरफ से चुनाव में खड़ा किये गए है ताकि वसीम की मदद हो सके क्योंकि वसीम खुलेतौर पर किसी क़ौमी आदमी या मुत्तावलियान से मिल नही सकता था ना तो अपनी पैरवी कर सकता है क्योंकि क़ुरान पर उसने टिप्पणी की थी। ये दोनों डमी कैंडिडेट के तौर पर थे ये दोनों वसीम का संदेश मुताव्वालियान तक ले जाते थे और नतीजा ये हुआ कि वसीम जीत गया। असीम को (1) वोट मिले और मुजाहिद को(0) वोट मिले इस तरह के रिजल्ट से ये साबित होता है कि इन दोनों ने अपने वोट भी वसीम को दे दिए। अगर ये दोनों कुछ बल से लड़ते तो नतायज कुछ और होते पर यासूब ने दोनों को खड़ा करके इनके जरिए से वसीम को मदद पहुँचाई।
इस साजिश के वसीम रचियता थे और यासूब और ये दोनों बराबर से शामिल थे। इन चीज़ों को लेकर मुसलसल मैं सवाल पुछने लगा तो एक वीडियो यासूब ने बनाई जिसमे यासूब ने कहा कि मेरे कभी भी वसीम से तालुकात नही थे और खुदा की लानत हो वसीम को वोट देने वालो पर। मेरा कोई रब्त नही है वक़्फ़ बोर्ड से ना कभी रहेगा। पर कुछ दिन के बाद 2015 कि एक फोटो वसीम के साथ उनके घर की वयराल हुई जिसमें वो मिटाई खाकर उस मालून की जीत का जश्न बना रहे है। ये इनका पहला झूठ लोगो ने पकड़ा,फीर वसीम का जिगरी यार असीम जो शिया कॉलेज में डेली वेजेज़ पर लेक्चरर है उससे इनके और इनके छोटे भाई के इतने मधुर समंध है कि वो अभीतक शिया कॉलेज में नौकर कर रहा है और सैलरी ले रहा है बल्कि पूरी मिल्लत जानती है कि उसने वसीम को चुनाव जिताया तो ऐसी क्या मजबूरी है कि वो अभीतक यासूब के साथ है। मुजाहिद से यसूब से कारोबारी समंध है और अभीतक जारी है।
अन्नू जो शहीदे सलीस के मुताव्वाली है जिन्होंने कई करप्शन किए है मज़ार पर और वो खुलेतौर पर वसीम के साथी और वोटर है। अन्नू यासूब के खास है और वो शिया कॉलेज में मेम्बर भी है। और हैरत की बात तो ये की यासूब ने अपने वीडियो में कहा था कि उन मुत्तावलियान पर लानत है और उनसे मेरा कोई भी रब्त नही है। इन बातों को अपने ज़ेहन में रखे और दूसरे गोशे पर गौर करें। अभी शहज़ादी के मज़ार के मिस्मार को लेकर हर साल की तरह इस साल भी सऊदी हुकूमत पर आल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड का ज़ूम एप्प पर इतेजाज किया गया उसमे अन्नू मिया शिरकत करते हुए नज़र आए। अगर ये इतेजाज किसी खुले मैदान में होता तो आप कह सकते थे की कोई भी आ सकता है पर ज़ूम एप पर लिंक और इनविटेशन बैगर भेजे कोई शामिल नही हो सकता है। क्या मुर्तद या उसके साथियों से राब्ता कोई रख सकता है कि नही। मैंने कई उलमा से पुछा तो मुझे जवाब मिला कि हराम है।
अब अक़ीदे के दूसरे रुख पर आप आजाए तो अभी एक दिन पहले एक दूसरे मसलक के मौलवी ने एक आर्टिकल लिखा सहाफत में जिसमे हज़रते अली(आ.स.) की हैयनत की गई तो यासूब मिया ने शुरुगुल मचा दिया। इस जिसरत से पूरी उम्मते मुसलमा नाराज़ थी इज़हारे बारात से मुझे कोई इनकार नही है पर बनावटी अक़ीदे से मुझे परहेज़ है। हज़रते रसूले अकरम से वाज़े हदीस है कि अली क़ुरान है और क़ुरान ही अली है। एक तरह आप हज़रते अली के मसले पर शुरूगुल मचाते हो तो दूसरी तरफ क़ुरान(जो खुद अली है) के दुश्मन का साथ देते हो और उसको चुनाव जिताने में अहम भूमिका निभाते हो तो ये दोहरा अक़ीदा कैसा कोई जवाब देगा। मैं यासूब और उन क़ौमी लूटरों से कहूंगा कि आप इस दुनिया में आपने बहरूपिये अक़ीदे से मिल्लत को तो बेवाकूफ बना सकते हो पर अल्लाह,रसूल और उनकी आल को बेवाकूफ नही बना सकते हो क्योंकि वो दिलो का हाल जानते है। यासूब मियां मरके अल्लाह के पास जाना है क्या मुँह लेकर जाओगे।
रज़ा अब्बास
पत्रकार
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