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केंद्र सरकार आखिर क्यों लाई ओबीसी आरक्षण पर नया विधेयक

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दिल्ली :  बीते सप्ताह मेडिकल शिक्षा में ओबीसी वर्ग के लिए केंद्रीय कोटे से आरक्षण की व्यवस्था की थी। अब सरकार इस वर्ग को फायदा देने के लिए नया विधेयक लाई है। इसका नाम है 127वां संविधान संशोधन विधेयक। इसके तहत राज्यों को ओबीसी की सूची बनाने की शक्ति देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 342 ए और 366(26) सी में संशोधन होना है। हाल में ही कैबिनेट ने इस विधेयक को मंजूरी दी थी। अब यह लोकसभा से पारित हो चुका है। राज्यसभा में भी इसके आसानी से पारित होने के आसार है क्योंकि सभी विपक्षी दल इस विधेयक पर एक साथ है। इस विधेयक के जरिए महाराष्ट्र में मराठा समुदाय से लेकर हरियाणा के जाट समुदाय को ओबीसी में शामिल करने और उन्हें आरक्षण देने का रास्ता साफ हो जाएगा।

ओबीसी की अलग अलग सूचियां केंद्र और राज्य सरकारें तैयार करती रही हैं। अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) ने राज्यों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान कर उनकी सूची बनाने और उन्हें घोषित करने के लिये स्पष्ट रूप से शक्ति प्रदान की है। हालांकि, यह सूची एक समान नहीं है। अभी राज्यों की ओबीसी सूची में कई ऐसी कई जातियां शामिल हैं, जो केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल नहीं हैं। राज्यों की सूची के आधार पर ही ओबीसी के दायरे में आने वाली जातियों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिलता रहता। आगे कई जातियां इसके दायरे में लाई जातीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से ऐसा करने पर रोक लग गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने पांच मई के अपने एक फैसले में राज्यों के ओबीसी सूची तैयार करने पर रोक लगा दी थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि केवल केंद्र सरकार को ही ओबीसी की सूची तैयार करने का अधिकार होगा।

जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने मराठा वर्ग को आरक्षण देने वाला कोटा सर्वसम्मति से रद्द कर दिया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मराठा आरक्षण से 50 फीसदी सीमा का साफ तौर पर उल्लंघन हो रहा है।

दरअसल, मराठा समुदाय को महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार ने आरक्षण दिया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर आपत्ति जताई थी। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट कर राज्यों को दोबारा यह अधिकार देने के ही लिए ही 127वां संविधान संशोधन विधेयक लाया गया। खतरा यह था कि यदि राज्यों की सूची खत्म कर दी जाती तो तकरीबन 671 ओबीसी समुदायों के लोग शैक्षणिक संस्थानों और नियुक्तियों में आरक्षण से महरुम रह जाते।

विधेयक में यह व्यवस्था की गई है कि राज्यों की ओर से बनाई गई ओबीसी श्रेणी की सूची उसी रूप में रहेगी जैसा यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले थी। राज्य सूची को पूरी तरह से राष्ट्रपति के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा। इस सूची को राज्य विधानसभा अधिसूचित कर सकेगी।

2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम में अनुच्छेद 342 के बाद भारतीय संविधान में दो नए अनुच्छेदों 338बी और 342ए को जोड़ा गया।

338बी राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के कर्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है। वहीं, 342ए राष्ट्रपति को विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को अधिसूचित करने का अधिकार प्रदान करता है। इन वर्गों को अधिसूचित करने के लिए वह संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श कर सकता है।

संसद में संविधान के अनुच्छेद 342-ए और 366(26) सी के संशोधन पर अगर मुहर लग जाती है तो इसके बाद राज्यों के पास ओबीसी सूची में अपनी मर्जी से जातियों को अधिसूचित करने का अधिकार होगा। इससे ओबोसी जातियों के आरक्षण का रास्ता साफ होगा।

इस विधेयक के पारित होने से महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात और कर्नाटक की राजनीति पर दूरगामी असर पड़ने की संभावना है। इससे लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहे जातियों को ओबीसी वर्ग में शामिल होने का मौका मिल सकता है। जैसे महाराष्ट्र में मराठा समुदाय, हरियाणा में जाट समुदाय, गुजरात में पटेल समुदाय और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय ओबीसी वर्ग में शामिल किया जा सकता है।

विपक्षी दलों ने केंद्र पर अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) की पहचान करने और उन्हें सूचीबद्ध करने की राज्यों की शक्ति को छीनकर संघीय ढांचे पर हमला करने का आरोप लगाया था। अब विपक्षी दल इस मुद्दे पर सरकार के साथ है।  इसलिए सरकार आसानी से इस विधेयक को पारित करा सकती है क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल आरक्षण संबंधी विधेयक का विरोध करने का जोखिम नहीं उठाएगा। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने साफ कर दिया है कि सभी विपक्षी दल 127वां संविधान संशोधन विधेयक 2021 का समर्थन करेंगे।

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