![New Ad](https://citizenvoice.in/wp-content/uploads/2023/09/ad1.jpeg)
महाराष्ट्र ; चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही महाविकास अघाड़ी की राजनीति में जो बदलाव के संकेत मिल रहे थे, उसपर अब मुहर लगती दिख रही है. पांच साल पहले मातोश्री का जो दरवाजा सीएम देवेंद्र फडणवीस के लिए बंद हो गया था, वह खुद चलकर अब उनके दरवाजे तक पहुंच गया है. उद्धव ठाकरे को अब इस बात का मलाल हो रहा है कि उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी है. इस बीच उनकी नाक के नीचे से जमीन छीनकर शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे लेकर भाग गए. ऐसे में उद्धव एक बार फिर से उसी जमीन को हासिल करने की कवायद में लग गए हैं. उद्धव ने अपनी खिसकती जमीन को बचाये रखने का जरिया बनाया है वीर विनायक दामोदर सावरकर को. सावरकर को अपना प्रमुख हथियार बनाकर उद्धव एक साथ कई राजनीतिक समीकरण साधने में लग गए हैं. उद्धव ठाकरे वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग फडणवीस से मिले बिना भी कर सकते थे, लेकिन मिलकर क्यों किया?
बीजेपी जिस तरह की राजनीति करती आई है, वैसी राजनीति महाराष्ट्र में मौजूदा गठबंधन पार्टनर के साथ ज्यादा दिन तक नहीं चलने वाली है. बीजेपी को भी एक विश्वस्त पार्टनर की तलाश है और शिवसेना से सालों से संबंध रहे हैं. इधर, महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन में देरी और अभी तक पोर्टफोलियो का बंटवारा नहीं होना महायुति में खटपट के संकेत दे रहे हैं. क्योंकि, एनसीपी अजित पवार गुट बीजेपी का नेचुरल पार्टनर नहीं है
ऐसे में वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग कर उद्धव ने राहुल गांधी को साफ मैसेज दे दिया है और अपना लाइन भी साफ कर दिया है. अगर राहुल गांधी का वीर सावरकर पर अब कोई बयान आता है तो शिवसेना यूबीटी गुट उसको मुद्दा बनाकर महाविकास अघाड़ी को गुडबाय कर दे तो कई बड़ी बात नहीं होगी. क्योंकि, अब उद्धव ठाकरे हिंदुत्व विचारक वीर सावरकर पर राहुल गांधी के बयान को बर्दास्त नहीं करेंगे. शायद इसलिए भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की मांग उन्होंने एक बार फिर से की है.