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ग़ाज़ा और लेबनान के शहीदों की याद में बड़े इमामबाड़े में “यादे शोहदा” कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ

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लखनऊ: लेबनान और ग़ाज़ा के शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करने और उनकी याद में अंजुमनों, संस्थानों, उलेमा और मोमनीन की ओर से लखनऊ के ऐतिहासिक बड़े इमामबाड़े में ‘यादे शोहदा’ के नाम से एक कॉन्फ्रेंस और मजलिसे चेहलम का आयोजन किया गया। इस कॉन्फ्रेंस में सभी धर्मों के उलेमा और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया। कॉन्फ्रेंस में सभी वक्ताओं ने अमेरिकी समर्थन में जारी इज़राइली आतंकवाद के खिलाफ और ग़ाज़ा तथा लेबनान के मज़लूमों के समर्थन में आवाज़ उठाई। कॉन्फ्रेंस में उपस्थित सभी उलेमा और बुद्धिजीवियों ने भारत सरकार से फिलिस्तीन के मुद्दे पर पर अपना पुराना रुख दोहराने की अपील की और लेबनान के मज़लूमों के लिए भारत द्वारा भेजी गई सहायता को एक सराहनीय कदम बताया। कॉन्फ्रेंस में इजराइल, अमेरिका और उनकी सहयोगी शक्तियों के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे भी लगे। वहीँ हिज़्बुल्लाह और अन्य मुक़ावमती संगठनों को मानवता का रक्षक क़रार दिया गया। कॉन्फ्रेंस में शहीद सैय्यद हसन नसरुल्लाह, शहीद इस्माइल हानिया, शहीद याहया सिनवार, शहीद हाशिम सफीउद्दीन समेत ग़ाज़ा व लेबनान के अन्य शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करते हुए उनके जीवन व उपलब्धियों पर प्रकाश डाला गया।

कॉन्फ्रेंस की शुरुआत क़ारी बद्रुद दुजा ने कुरान की तिलावत से की। इसके बाद हौज़ा-ए-इल्मिया हज़रत दिलदार अली ग़ुफ़रानमॉब के छात्रों ने ग़ाज़ा और लेबनान के शहीदों की शान में मन्ज़ूम नज़राना-ए-अक़ीदत पेश किया। मन्ज़ूम नज़राना-ए-अक़ीदत के बाद तक़रीरों का सिलसिला शुरू हुआ। इंजीनियर मौलाना फैज़ान वारसी ने अपनी तक़रीर में कहा कि इस्लामी मुक़ावमत अन्याय और अत्याचार के खिलाफ एक जाएज़ और न्यायपूर्ण संघर्ष है, जिसका उद्देश्य मानवाधिकारों, न्याय और शांति की बहाली है। यह लड़ाई मानवता की सुरक्षा के लिए लड़ी जा रही है। इस्लाम न्याय और शांति का पाठ पढ़ाता है, और इस्लामी उसूलों के अनुसार ही मुक़ावमत की जा सकती है। उन्होंने कहा कि इस्लामी और इंसानी मुक़ावमत को आतंकवाद का लिबादा मत पहनाइए, क्योंकि आतंकवाद का उद्देश्य निर्दोष लोगों पर भय, अशांति और आक्रामकता को बढ़ावा देना है, ये ताक़त को हासिल करने के लिए मासूम और बेगुनाह लोगों को निशाना बनाता है और सामाजिक ढांचे को नुकसान पहुँचाता है। इसलिए आतंकवादियों को पहचानें और उन्हें बेनकाब करें, जिन्होंने ग़ाज़ा और लेबनान में मासूमों और बेगुनाहों का नरसंहार किया है।

 

प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. संदीप पांडे ने कहा कि “फिलिस्तीन में मारे गए 42,000 लोगों में 18000 से अधिक बच्चे मारे गए हैं, जो कि 40% से अधिक है, ये बच्चे केवल बम विस्फोटों से बल्कि भुखमरी से भी मरे हैं। इज़राइल युद्ध अपराध कर रहा है, युद्ध के सभी मानदंडों का उल्लंघन कर रहा है। इसने अस्पतालों, शरणार्थी शिविरों पर बमबारी की है और फिलिस्तीनियों को भोजन सहित जीवन रक्षक आपूर्ति रोक दी है। अब इजराइल फिलिस्तीन शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश कर रहा है। इजराइल के बजाय यदि कोई अन्य देश होता तो उस पर युद्ध अपराधों का मुकदमा चलाया जाता। इजराइल से ज्यादा दोषी अमेरिका और पश्चिमी देश हैं क्योंकि वे गाजा में हो रहे नरसंहार के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं.”

नूर फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना डॉ. मुस्तफा मदनी ने कहा कि 7 अक्टूबर के बाद इस्लामिक मुक़ावमत मोर्चा मजबूत होकर उभरा है और क्षेत्र में शक्ति संतुलन बदल गया है। उन्होंने कहा कि यह जंग फिलिस्तीन, इजराइल और लेबनान के बीच नहीं है बल्कि हक़ और बातिल की जंग है। मौलाना ने कहा कि इस जंग में सभी हक़ पसंद और शांतिप्रिय लोगों को गाजा और लेबनान के मज़लूमों के साथ खड़ा होना होगा, तभी आतंकवाद को रोका जा सकता है।

 

भारत-फिलिस्तीनी एकता मंच के संस्थापक सचिव फिरोज मेथी बोरेवाला ने कहा कि फ़िलिस्तीनियों की आज़ादी की तलाश फिर से अंतरराष्ट्रीय एजेंडे पर आ गई है। 7 अक्टूबर का हमला गाजा की घेराबंदी को समाप्त करने, मस्जिदे अक़्सा पर हमलों को समाप्त करने, इज़रायली जेलों में बंद 20,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी स्वतंत्रता सेनानियों को रिहा करने और तथाकथित अब्राहम समझौते को समाप्त करने का आह्वान था। इन सभी मामलों में, फ़िलिस्तीन, लेबनान के हिज़्बुल्लाह, सीरिया, इराक, ईरान और यमन से मिलकर बनी प्रतिरोध की धुरी अपने प्रयासों में सफल रही है। इज़रायल आज अलग-थलग पड़ गया है और उसे 2 लाख से 3 लाख गाजा वासियों के नरसंहार के लिए युद्ध अपराधी के रूप में देखा जा रहा है। इज़रायल गाजा और लेबनान में पराजित हो गया है, नेतन्याहू लाखों निर्दोष नागरिकों की हत्या के अलावा एक भी रणनीतिक उद्देश्य हासिल करने में विफल रहे हैं। मध्य पूर्व के लोग और राष्ट्र इज़रायल-अमेरिकी ज़ायोनी साम्राज्यवाद के खिलाफ़ अपनी आज़ादी की आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं और भारत सरकार और लोगों को आज़ादी की इस लड़ाई में मज़लूमों के साथ खड़ा होना चाहिए।

जाने-माने पत्रकार अमरीश मिश्र ने कहा फिलीस्तीन, लेबनान, यमन, ईराक, सीरिया और ईरान मे मानवता और सभ्यता को बचाने की जंग अपने चरम पर है। इजराइल और अमेरिकी साम्राज्यवादी नरसंहार पर उतारू हैं। वहीं मानवता के रक्षक बड़ी से बड़ी कुर्बानी दे रहे हैं। भारत मे भी ऐसी जंग 1857 मे ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ हुई थी। आज दुनिया को अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी।

अंत में मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना सैय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने मजलिस को ख़िताब करते हुए गाजा और लेबनान में जारी इज़राइली आतंकवाद की निंदा की उन्होंने कहा कि इजराइल के आतंकवाद का जीता जागता उदाहरण गाजा की तबाही और लेबनान में रिहायशी इलाकों पर बमबारी है, मगर मीडिया को यह आतंकवाद नज़र नहीं आता। ईरान, हिज़्बुल्लाह और अन्य मुक़ावमती संगठनों ने युद्ध के नियमों का पालन किया है और इज़राइल में आवासीय क्षेत्रों पर हमला नहीं किया है, लेकिन इज़राइल लगातार आवासीय क्षेत्रों पर बमबारी करके बेगुनाह लोगों को क़त्ल कर रहा है। मौलाना ने कहा कि इजराइल ने अपने युद्ध अपराधों को छुपाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के इजराइल में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। उसका एक बड़ा अपराध यह है कि गाजा में बच्चे भूख से मर रहे हैं, लेकिन इजरायली सेना राफा क्रॉसिंग तक मदद नहीं पहुंचने दे रही है। मौलाना ने कहा कि दुश्मन को गलतफहमी है कि सैय्यद हसन नसरुल्लाह और इस्माइल हानिया को शहीद करके वे इस्लामी मुक़ावमत को कमजोर कर सकते हैं। हम शहादतों से कमज़ोर नहीं होते बल्कि और मजबूत होकर उभरते हैं। मौलाना ने अंत में कर्बला के शहीदों के मसाएब बयान किये।

कॉन्फ्रेंस में डॉ. अनीस अशफाक ने गाजा के मज़लूमों और सैय्यद हसन नसरुल्लाह को मन्ज़ूम नज़राना-ए-अक़ीदत पेश किया। उनके अलावा तंजीमुल मकातिब के सचिव मौलाना सफी हैदर, सूफी मोईन चिश्ती कानपुर, मौलाना गुलाम कादिर कानपुर, मौलाना फ़ज़्ले मन्नान वाएज़ी, मौलाना यूनुस अली जाफरी मकनपुर और अन्य उलेमा और बुद्धिजीवियों ने भी सभा को संबोधित किया। मौलाना रज़ा हैदर ज़ैदी ने सभी मेहमानो विशेषकर उलेमा, छात्रों और मोमनीन का शुक्रिया अदा किया। मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने जलसे में उपस्थित सभी विशिष्ट अतिथियों का शुक्रिया अदा किया और धर्म-मजहब से परे बुद्धिजीवियों की उपस्थिति को इजराइल की हार और गाजा और लेबनान के मज़लूमों की जीत क़रार दिया। निज़ामत के फ़राएज़ आदिल फ़राज़ ने अंजाम दिए।

 

कॉन्फ्रेंस में मौलाना सै मुमताज़ जाफर, मौलाना निसार अहमद ज़ैनपुरी, मौलाना इस्तेफ़ा रज़ा, मौलाना हसनैन बाक़री, मौलाना मंज़र सादिक, मौलाना तस्नीम मेहदी, मौलाना सईदुल हसन नक़वी, मौलाना हैदर अब्बास रिज़वी, मौलाना फरीदउल हसन तक़वी, मौलाना शाहनवाज़ हैदर, मौलाना अक़ील अब्बास, मौलाना नज़र अब्बास, मौलाना मुशाहिद आलम रिज़वी, मौलाना मुहम्मद सक़लैन बाक़री, मौलाना फ़िरोज़ अली, मौलाना हैदर अली, मौलाना तज़ीब-उल-हसन, मौलाना एहतिशाम-उल-हसन, मौलाना शम्स-उल-हसन, मौलाना डॉ. अली सलमान रिज़वी, मौलाना शबाहत हुसैन, मौलाना ज़व्वार हुसैन, मौलाना क़मरुल हसन, मौलाना फ़िरोज़ हुसैन और अन्य उलेमा उपस्थित रहे। जैसे में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।

 

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