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यूरोपीय देश अपनाना चाहते हैं भारत की सामुदायिक जल संरक्षण नीति

जल योद्धा ने दिया खेत में मेड़ और मेड़ पर पेड़ का मूलमंत्र

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बांदा। दुनिया के विकसित देश भारत के पुरखों की परंपरागत सामुदायिक जल संरक्षण विधि खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़ को सीखना और अपनाना चाहते हैं। जल योद्धा उमाशंकर पांडेय ने अहमदाबाद में आयोजित कार्यक्रम के दौरान जल संरक्षण के संदर्भ में जापान, आस्ट्रेलिया, यूएसए, फ्रांस, इटली तथा यूरोप के देशों के प्रतिनिधियों के साथ अपने विचार साझा किए।
उन्होंने कहा कि यूरोप सहित पूरी दुनिया में जल संकट हैं। इसके लिए सामूहिक प्रयास करना होगा। उनका कहना था कि पानी बनाया नहीं, बल्कि बचाया जा सकता है और वह भी भारत के पुरखों की परंपरागत सामुदायिक विधियों एवं तरीकों से। उन्होंने प्रतिनिधियों को बताया गया कि सबसे सरल उपाय है मेड़बंदी। वर्षा की बंूदें जहां गिरे वहां पर रोके। खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में, जंगल का पानी जंगल में और घर का पानी घर में। बताया कि हमारे देश में सामुदायिक जल संरक्षण का तरीका बहुत ही प्राचीन है। समाज में लाखों तालाबों और कुओं जैसे जल स्त्रोतों को स्थापित कर गांव को पानीदार बनाया। उन्होंने यह भी कहा कि नवीन ज्ञान और तकनीकि ने पानी का सत्यानाश किया है। जिसकी वजह से दिन प्रतिदिन जल स्त्रोत कम हो रहे हैं। जहां ठंड पड़ रही थी वहां जल संकट है और गर्मी पड़ने लगी। इन सभी देशों के लिए समाधान केवल भारत के पास है। उन्होंने कहा कि इजराइल के लोग जल संरक्षण विधि को सीखने के लिए यहां आए। उन्होंने स्थिति को समझा जानकारी ली। इसी तरह से देश के सूखा प्रभावित राज्यों के अलावा दुनिया के धनी देश भी इस विधि को अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं। जल संरक्षण के लिए आयोजित कार्यक्रम में आस्ट्रेलिया के मोयेज पूनावाला, थाम हन्ना,वेन मेयर, ओलिवियर गिलोटो, तोशियो मुरामात्सु, ब्रूनो बेनाग्लिया, जेम्स वैलियरे, यूसुफ उत्तरवाला, डा.आरसी जैन, क्रेक्स विल्सर, विवेक सिंह समेत बड़ी संख्या में देश विदेश के प्रतिनिधि शामिल रहे।

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