लखनऊ : विधानमंडल का मानसून सत्र 17 अगस्त से आहूत हो चुका है। इसमें भी कई विधेयक पारित कर नए कानून बनाने की तैयारी है। पर, बड़े तामझाम और कल्याणकारी उद्देश्यों के साथ राज्य विधानमंडल से पारित एक दर्जन से अधिक विधेयक कानून का शक्ल लेने का इंतजार कर रहे हैं। इनमें कई का इंतजार कई-कई साल लंबा होता जा रहा है। राष्ट्रपति इन विधेयकों को मंजूरी दें तो प्रदेश में नई व्यवस्था पर अमल शुरू हो सके और लोग उसका लाभ पा सकें। प्रदेश सरकार ने श्रम सुधार, संस्थागत अपराध व कानून-व्यवस्था में सुधार, औद्योगिक सेक्टर को गति देने, सोसाइटी रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था में बदलाव, शिक्षा से जुड़े कार्मिकों के सेवा विवाद के तेज समाधान सहित विभिन्न क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन के संकल्पों के साथ नई विधि व्यवस्था व प्रक्रिया के लिए नए कानून बनाने की कार्यवाही समय-समय पर शुरू की। जो विधेयक केंद्रीय विषयों से जुड़े थे, उसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिया गया। कई ऐसे विधेयक जिसे राज्य सरकार राष्ट्रपति को भेजना जरूरी नहीं समझती थी, लेकिन राज्यपाल ने औचित्य पाते हुए भेज दिया।
बताया जा रहा है कि राष्ट्रपति के समक्ष मंजूरी के लिए लंबित विधेयकों व अध्यादेश की संख्या 14 पहुंच गई है। इनमें 13 विधेयक राज्य विधानमंडल से पारित कर भेजे गए हैं जबकि एक अध्यादेश शामिल है। इनमें चार विधेयक सपा शासनकाल से जुड़े हैं, जिनका तत्कालीन विपक्ष में रही भाजपा ने विभिन्न तर्कों के साथ विरोध किया था और राज्यपाल ने राष्ट्रपति को भेज दिया था। इनमें तीन विधेयक 2015 से व एक 2016 से राष्ट्रपति के समक्ष मंजूरी के लिए लंबित है। अन्य 9 विधेयक व एक अध्यादेश इसी सरकार के समय के हैं। बताया जा रहा है कि मंजूरी के लिए प्रतीक्षित अध्यादेश की समयावधि बीत चुकी है। ऐसे में अब उसकी मंजूरी की संभावना नहीं है। लेकिन, अन्य विधेयकों पर जब तक राष्ट्रपति की अनुमति नहीं मिल जाती, इनमें प्रस्तावित किसी भी सुधार पर आगे नहीं बढ़ा जा सकता है।