फतेहपुर चैरासी,उन्नाव : उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट गरीबों के लिए कांशीराम आवासीय योजना बीजेपी शासन काल में बनी धड़ाम हो गई।माया सरकार में गरीबों के लिए कांशीराम आवासीय कॉलोनियों को तैयार कर लाभार्थियों को दी जानी थी। वही सरकार बदलने के पश्चात पूरी तरह बनकर तैयार पड़े कांशीराम आवासीय कॉलोनी का दरवाजा गरीबों के लिए नहीं खुल पाया जिसको करोङों की लागत से उन्नाव के डूडा परियोजना द्वारा बनवाया गया था।लगभग 100 गरीबों से ज्यादा के लिए आशियाना बनकर तैयार कालोनियां शराबियों व बदमाशों कर लिए आशियाना साबित हो रही हैं।
नगर पंचायत ऊगू में यह निर्माणाधीन कांशीराम कालोनी पूर्णतःजर्जर है नगर पंचायत ऊगू में पुलिस चैकी से महज 500 मीटर दूरी पर काशीराम कालोनियों की स्थापना की गती थी,लेकिन तबसे लेकर अब तक इनकी सुध लेने वाला अब कोई नहीं है यह बिल्डिंग न सिर्फ रात्रि के वक्त नशेड़ी व बदमाशों का अड्डा साबित होरही है बल्कि जानकार बताते हैं कि दिन में भी इसमें नाजायज काम भी होते हैं।
क्या कहते लाभार्थी
ऊगू नगर पंचायत से दूर एवं सन्नाटा एरिया एवं लोगों के कृषि क्षेत्र में जुड़े होने के चलते लोगों ने मकान लेना उचित नहीं समझा।इसके साथ ही देहात क्षेत्र में लोगों के पास जानवर अनाज भूसा आदि दूसरे तीसरे मंजिल की बिल्डिंग पर आवास एलाट होने के चलते लाभार्थियों नें ऊगू नगर पंचायत में बनी काशीराम कॉलोनी में अपना आवास लेना उचित नहीं समझा।और इनहीं सारी दिक्कतों के चलते नगर पंचायत में बनी काशीराम कॉलोनी अपना अस्तित्व खोती चली गई।
वहीं लोग अब इसे भुतहा हवेली के नाम से भी पुकारते हैं,लोगों की माने तो गरीब जनता का पैसा तत्कालीन शासन द्वारा किस प्रकार बर्बाद किया गया।तत्कालीन बनी काशीराम कालोनी प्रत्यक्ष उदाहरण है,लोगों की माने तो इन कालोनियों के आवंटन में पात्र लोगों से ₹10000 से लेकर 13000रुपये तक लिए गये थे। जिनमें से कुछ ग्रामीणों के पैसे वापस भी हो गए तथा कुछ के अभी तक वापस नहीं हुए, लोगों में भ्रम था कि उन्हें नीचे की कॉलोनियां एलाट होंगी। जिसमें लाभार्थी अपने जानवर तथा अन्य आवश्यक सामान अपने कालोनियों में रख लेंगे,लेकिन ऐसा ना होने के लाभार्थियों के सपनें साकार नहीं हो पाये।
सूत्रों की माने तो बसपा सरकार में नगर पंचायतों से काशीराम कालोनियों हेतु सरकारी भूमि मांगी गई थी जिन जिन नगर पंचायतों ने सरकारी भूमि उपलब्ध करा दी वहां काशीराम कालोनियों की स्थापना हुई थी,लेकिन शहरी काशीराम कॉलोनी सफल हो गयीं,जबकि ग्रामीण क्षेत्र में बनी ये काशीराम कॉलोनियां नाकाम साबित हो गई,काश ऐसा होता कि जिन लोगों के पास स्वयं की जमीन थी यदि उनको सरकार एक एक लाख रुपये की मदद कर देती तो लोग अपने अपने घरों में एक एक दो दो कमरे बनाकर आराम से रह सकते थे,ग्रामीण क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति के कृषि क्षेत्र से जुड़े होने की वजह से उनके पास जानवरों के साथ अन्य वस्तुएं होने के चलते कालोनियों में गरीब जनता को रहना संभव नहीं हो पा रहा था जिसके चलते कालोनियां बनने के बाद निष्प्रयोज्य साबित होकर रह गई।वहीं सूत्रों की माने तो नगर पंचायत ऊगू में बनी इन काशीराम कालोनियों को अभी तक कंडम घोषित नहीं किया गया है।