नगर निगम ने कब्जे में लिया आजम खान की बहन को आवंटित बंगला 13 साल पहले हुआ था बंगले का आवंटन
नगर निगम ने 15 दिन में खाली करने का दिया था निर्देश
गलत आधार पर हुआ था आवंटन, इसीलिए निरस्त हुआ
लखनऊ : समाजवादी पार्टी के सांसद और पूर्व नगर विकास मंत्री आजम खान की बहन के बंगले का आवंटन निरस्त करने के बाद नगर निगम ने सोमवार की सुबह ही बंगले को अपने अधिकार में ले लिया और अपना ताला लगा दिया। बीते माह 15 अक्टूबर को आवंटन निरस्त करने के बाद कब्जा आजम खान की बहन को 15 दिन में बंगला खाली करने का निर्देश दिया गया था। उसके बाद भी आजम की बहन द्वारा बंगले का कब्जा नगर निगम को नहीं दिया गया था। जिसके बाद नगर निगम की टीम ने सोमवार खुद ही कब्जा प्राप्त कर लिया। आजम खान की बहन निखत अफलाक को नगर निगम की रिवर बैंक कालोनी में करीब 13 साल पहले किराए पर आलीशान बंगला आवंटित किया गया था। एक शिकायत के बाद शासन से आए एक पत्र के आधार पर नगर निगम ने अगस्त माह में बंगला आवंटन निरस्त करने का नोटिस जारी किया था। आजम की बहन के जवाब से सन्तुष्ट न होने के बाद बीती 15 अक्टूबर को नगर निगम ने बंगले के आवंटन निरस्त कर दिया था और 15 दिन मोहलत नगर निगम को बंगले का कब्जा लौटाने के लिए दिया था
नगर निगम की पॉश रिवर बैंक कालोनी में आजम खान की बहन निखत अफलाक को साल 2007 में नगर निगम ने रिवर बैंक कालोनी में एक आलीशान बंगला नंबर ए-२/१ आवंटित किया था। करीब छह हजार वर्ग फिट के उस बंगले का किराया महज एक हजार रुपए महीना था। इसी बंगले को लेकर शासन में एक शिकायत हुई है। कहा जा रहा है कि शिकायत भी सपा सांसद की धुर विरोधी एक नेता के निजी सचिव ने की थी। उसी का संज्ञान लेते हुए शासन से नगर निगम को आदेश जारी हुआ था। जिसमें कहा गया है कि गलत तरीके से आवंटित किए गए बंगले का आवंटन जांच कर निरस्त किया जाए। जिसके बाद नगर निगम की ओर से मौके की जांच कराए जाने के बाद आवंटन निरस्तीकरण की नोटिस बीती 24 अगस्त को जारी की गई थी जिसमें यह कहा गया था कि जांच के दौरान बंगला बंद मिला। उसमें कोई नहीं रहता है साथ ही यह भी कहा गया था कि निखहत अफलाक रामपुर के सरकारी स्कूल में शिक्षिका थीं और रिटायर होने के बाद वहीं पर रहती हैं। वहीं, निखहत अफलाक की तरफ से भी दिए गए जवाब पर नगर निगम संतुष्ट नहीं हुआ था
गलत आधार पर हुआ था आवंटन, अब निरस्त हुआ
नगर निगम की ओर से यह आधार बनाते हुए आवंटन निरस्त कर गया था कि जब निखहत अफलाक को बंगला आवंटित हुआ था तब वह किसी सरकारी सेवा में नहीं थीं और न ही लखनऊ में कार्यरत थीं। ऐसे में जो आवंटन हुआ था वह गलत था।