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नगर निकाय चुनाव जनता की ज़रूरतें और ज़िम्मेदारी

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लखनऊ : उत्तर प्रदेश में नगर निकायों के आम चुनाव आजकल चर्चा में हैं | नगर निकाय यानी नगर पंचायत, नगर पालिका और नगर निगमों में स्थानीय नागरिकों द्वारा अपने बीच के लोगों को सीधे चुनकर अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी दी जाती है | सामान्य नागरिकों के जीवन की अधिकतर ज़रूरतों और समस्याओं के समाधान का सीधा सम्बन्ध इन स्थानीय निकायों से ही होता है |
                            बच्चों के जन्म पंजीकरण से लेकर नागरिकों के मृत्यु पंजीकरण तक का अधिकार इन्हीं संस्थाओं में निहित है | आंतरिक सड़कों, नालियों, पुलियों के निर्माण से लेकर साफ सफाई, रात को सड़कों पर रोशनी, जनता और पशुओं के लिए पीने का साफ पानी और आवारा पशुओं से निपटने की ज़िम्मेदारी भी नगर निकायों की होती है | इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, बाल एवं महिला संरक्षण, बाज़ार व्यवस्था
और राशन वितरण का नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण भी इन्हीं स्थानीय सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आता है |
इन सब कामों के लिए बजट की व्यवस्था जहाँ एक ओर केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार के वित्त आयोगों की सिफारिशों से मिलने वाली धनराशि से होती है वहीं दूसरी ओर नगर निकाय भी अपने स्त्रोतों से आय अर्जित करने के लिए मकानों, बाज़ारों, दुकानों और अपने क्षेत्र में स्थापित उद्योगों पर टैक्स लगाते हैं
वास्तव में लोकतंत्र की असली ताक़त इन्हीं संस्थाओं में देखने को मिलती है क्योंकि राजनैतिक दलों के लिए विधानसभा और लोकसभा की तरह यहाँ बाहरी उम्मीदवारों को थोपना संभव नहीं है | इन चुनावों में राजनैतिक दलों को स्थानीय जनता के बीच का व्यक्ति ही उम्मीदवार बनाना पड़ता है | लोकतंत्र की ऐसी आदर्श परिस्थितियों में जहाँ जनता को अपनी पसंद का नुमाइंदा चुनकर अपनी उम्मीदों और ज़रूरतों को पूरा करने का भरपूर अधिकार होता है वहीं जनता की ज़िम्मेदारी भी बढ़ जाती हैं कि वो अपने बीच से अपना जांचा परखा, समझदार और ज़िम्मेदार नेता चुने |
ये ऐसा मौक़ा होता है कि मतदाता किसी दल, धर्म, जाति और क्षेत्र से ऊपर उठकर अपने बीच लगातार रहने वाले हमदर्द इंसान को अपनी जरुरतों को बेहतर तरीक़े से समझने और सुलझाने की सीधी ज़िम्मेदारी दे सकता है और चुने जाने के बाद भी उनसे सीधे सवाल जवाब कर सकता है |
पांच साल बाद एक बार फिर नगर निकायों में रहने वाले नागरिकों को अपनी स्थानीय सरकार चुननी है इसलिए गली मुहल्लों में उम्मीदवारों के बारे में चर्चाओं के बाज़ार गर्म है | उम्मीदवार और उनके समर्थक, मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए सीधे जनसम्पर्क के साथ साथ सोशल मीडिया एकाउंट्स का ज़ोरदार इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे मतदाताओं में भ्रम की स्थिति भी बन रही है क्योंकि अपनी ख़ूबियों के साथ साथ विपक्षियों की बुराईयों की ख़बरें और अफ़वाहें भी फैलाई जा रही हैं | क्षेत्र, जाति, धर्म और राजनैतिक दलों की दुहाई के साथ साथ धन शक्ति के इस्तेमाल की ख़बरें भी हवा में तैर रही हैं | इन सब हालात के बीच सही उम्मीदवार का चुनाव जनता के लिए भी एक बड़ी मुश्किल ज़िम्मेदारी है |
अपनी उम्मीदों और ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आम नागरिकों को इस चुनाव में परम्परागत चुनावी हथकंडों से बचकर समझदार होने का सुबूत देना होगा | हर जागरूक नागरिक से अपील है कि अपने बीच लगातार रहने वाले किसी संयुक्त परिवार के सदस्यों में से किसी एक को अपना प्रतिनिधि चुनने की कोशिश करें क्योंकि संयुक्त परिवार में रहने वाले लोग अधिक ज़िम्मेदार, सहनशील, हमदर्द, अहसान ना जताने वाले, झगड़ों को आसानी से सुलझाने वाले और बुरे हालात में भी दिमाग़ ठंडा रखने वाले होतें है | किसी उम्मीदवार की जाति, धर्म, दौलत, ऊंचा स्टेट्स और बड़े सम्बन्ध जनता से ज़्यादा उसके निजी हित में काम आते हैं |
 उम्मीदवार, जनता के ही बीच के होते हैं इसलिए उनकी शिक्षा के साथ साथ छोटों और बड़ों से उनकी बातचीत का लहजा और शब्दों के चयन से भी सब लोग ख़ूब वाकिफ़ होते हैं जो राजनैतिक दलों और कपड़ों की तरह बदले नहीं जा सकते हैं |
 इसलिए अपने नुमाइंदे को चुनते वक़्त उसकी समझदारी, ख़ुशमिजाज़ी, हमदर्दी, अख़लाक़ और मुहब्बत को पैमाना बनाईये ना कि उसके क्षेत्र, जाति, धर्म,‌ दल या दौलत को |
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