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उम्रकैद की सजा काट रहे बंदियों की रिहाई का सरकार को अधिकार

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार को आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों की समय पूर्व रिहाई का पूरा अधिकार है। सरकार ने ऐसे कैदियों को रिहा करने की नीति बनाई है, जिसके मुताबिक समय पूर्व रिहाई की अर्जी पर विचार करना सरकार का दायित्व है। कोर्ट ने कहा कि एक अगस्त 2018 की नीति में कैदियों को कुंठा से बचाने और जेलों मे कैदियों की भीड़ कम करने तथा कैदियों के सुधार व पुनर्वास के लिए मानवाधिकार आयोग की नीति के मद्देनजर आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों की समय पूर्व रिहाई की व्यवस्था की गई है। कोर्ट ने कहा कि याची 17 साल से जेल में है, उसे समय पूर्व रिहाई की मांग का अधिकार है। सरकार ने सजा के 12 साल 10 माह 29 दिन ही पूरे होने के आधार पर उसकी अर्जी खारिज कर थी। इसमें सीजेएम के वारंट से अभिरक्षा की अवधि नहीं जोड़ी गई। इसी के साथ कोर्ट ने रिहाई से इनकार करने के सरकार के आदेश को रद्द कर दिया और नीति के तहत याची की समय पूर्व रिहाई पर विचार करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज नकवी एवं न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने गोरखपुर के सत्यव्रत राय की अर्जी पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि याची के खिलाफ चार आपराधिक मुकदमे थे, जिनमें से दो में वह बरी हो चुका है। एक में चार्जशीट में गवाह बना लिया गया है और चौथे में  सजा मिली है। ऐसे में यह नहीं कह सकते की वह प्रोफेशनल किलर है।

कोर्ट ने इस तर्क को भी नामंजूर कर दिया कि वह पीड़ित को धमकाएगा। कोर्ट ने कहा जब वह जमानत पर छूटा था तो ऐसी कोई शिकायत नहीं हुई। याची को गोरखपुर के कैंट थानाक्षेत्र में दिनदहाड़े हुए दोहरे हत्याकांड को लेकर आजीवन कारावास की सजा मिली। उसकी अपील भी खारिज हो चुकी है। ट्रायल के दौरान वह जमानत पर रिहा हुआ था। वह 17 साल जेल में बिता चुका है। 16 साल की सजा पूरी होने के बाद उसकी मां ने समय पूर्व रिहाई की अर्जी दी। बाद में हाईकोर्ट ने निर्देश दिया तो सरकार ने अवधि कम होने के आधार पर उसकी अर्जी खारिज कर दी थी।

कोरोना बेकाबू होकर एक-एक कर लोगों को अपनी जद में लेता जा रहा

प्रयागराज :  कोरोना बेकाबू होकर एक-एक कर लोगों को अपनी जद में लेता जा रहा है। बुधवार को 12743 लोगों की हुई जांच में 2137 नए संक्रमित मिले, जबकि 10 कोविड मरीजों की जान चली गई।  उधर गंभीर मरीजों के सामने अस्पतालों में दाखिले के लिए दर-दर भटना पड़ रहा है। स्वास्थ्य विभाग को तकरीबन ढाई सौ नए बेड की रोजाना जरूरत है। लेकिन, बेड की संख्या सीमित होने से पहले की तरह बुधवार को भी बहुत से मरीजों के सामने संकट बना रहा। संक्रमित लोग अस्पतालों में भटकते रहे, लेकिन उन्हें बेड नहीं नसीब हुआ। कोरोना के नोडल ऑफिसर डॉ. ऋषि सहाय के मुताबिक बुधवार को कुल 2137 मरीज मिले। इसके अलावा 10 लोगों की कोरोना से मौत हो गई। हालांकि, राहत की बात यह भी रही कि बुधवार को 1843 लोग संक्रमण मुक्त हुए। रिपोर्ट निगेटिव आने पर 71 को एसआरएन चिकित्सालय, बेली हॉस्पिटल, रेलवे अस्पताल और निजी अस्पतालों से छुट्टी दी गई है, जबकि 1772 का होम आइसोलेशन पूरा हो गया।

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक बुधवार को कुल 12743 लोगों की कोरोना की जांच की गई, जिनमें 2137 संक्रमित पाए गए। संक्रमितों में 20 फीसदी मरीजों को बेड की जरूरत थी, लेकिन अस्पतालों में जगह न होने से बेड नहीं मिल सका। ज्यादातर लोग होम आइसोलेशन में हैं। कुछ लोग ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर किसी तरह अपनी जान बचाने का जतन कर रहे हैं। कोरोना मरीज बढ़ने के बीच रेमडेसिविर के साथ ऑक्सीजन की भी कालाबाजारी तेज हो गई है।  उधर कोरोना से होने वाली मौतों का ग्राफ बुधवार को नीचे आ गया। स्वास्थ्य विभाग द्वारा मंगलवार को 13 लोगों की मौत बताई गई थी, जबकि बुधवार को सिर्फ 10 लोगों की मौत बताई गई। हालांकि श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों के आंकड़े कुछ और ही गवाही दे रहे हैं। संक्रमण रोकने के लिए बुधवार को जिले के 93 स्थानों पर सात हजार से अधिक लोगों को कोरोना का टीका लगाया गया। इसमें अधिकतर लोगों को पहली डोज ही लगी।

 जहां सिखाई डॉक्टरी, वहीं बेबस होकर तोड़ा दम

प्रयागराज : शहर के वरिष्ठ चिकित्सक जेके मिश्रा ने एक सरकारी अस्पताल में तकरीबन पांच दशक तक पढ़ाया और लोगों का उपचार किया। उनके पढ़ाए हुए आज न केवल आज उसी अस्पताल में डॉक्टर हैं बल्कि दुनिया भर में मरीजों की सेवा कर रहे हैं। लेकिन, उन्हें जब कोविड ने अपनी चपेट में लिया तो उन्हें देखने वाला कोई नहीं मिला। उन्होंने अपनी डॉक्टर पत्नी के सामने ही दम तोड़ दिया। शहर की वरिष्ठ गॉयनोकोलॉजिस्ट व मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर रहीं डॉक्टर रमा मिश्रा(80) और उनके पति डॉ. जेके मिश्रा (सर्जन) दोनों कोरोना पॉजिटिव हुए। दोनों ही सरकारी चिकित्सालय में भर्ती रहे। डॉ. रमा तो संक्रमण की जद से बाहर आ गईं, लेकिन उनके पति डॉ. जेके मिश्रा कोरोना से जंग हार गए। पति की मौत के बाद डॉ. रमा मिश्रा द्वारा अस्पताल की सेवाओं को लेकर कहीं गईं बातें सोशल मीडिया वायरल हो रही हैं।

डॉ. रमा मिश्रा के मुताबिक कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद पहले दोनों लोग होम क्वारंटीन में ही रहे, लेकिन उनका ऑक्सीजन लेवल कम था। मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने ही सलाह दी कि सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दीजिए। हालांकि उस अस्पताल में बेड की बहुत क़िल्लत थी। 13 अप्रैल को अस्पताल के कोविड वॉर्ड में सिफ़ॱर एक ही बेड मिल सका। डॉक्टर रमा मिश्रा ने बताया कि उस रात वह फ़र्श पर ही पड़ी रहीं, क्योंकि बेड उपलब्ध नहीं था, अगले दिन उन्हें बेड मिला। डॉ. रमा का कहना है कि उस रात डॉक्टर साहब को कोई इंजेक्शन लगाया गया, लेकिन उन्हें नहीं बताया कि कौन सा इंजेक्शन है। दूसरे दिन सुबह फिर इंजेक्शन लगा दिया। वहां रात में हमने जो देखा, वो बेहद डरावना था। रात भर मरीज चिल्लाते रहते थे। कोई उन्हें देखने वाला नहीं था। बीच-बीच में जब नर्स आती थी या डॉक्टर आते थे, तो डांटकर चुप करा देते थे या कोई इंजेक्शन दे देते थे। उनमें से कई लोग सुबह सफ़ेद कपड़े में लपेटकर बाहर कर दिए जाते थे, यानी उनकी मौत हो चुकी होती थी।

रात में वार्ड ब्वाय तक नहीं रहता था। सिफ़ॱर एक जूनियर डॉक्टर आते थे। वो भी केवल ऑक्सीजन का लेवल देखकर चले जाते थे। तीन दिनों तक यही क्रम चलता रहा। 16 अप्रैल को डॉक्टर जेके मिश्रा की तबीयत ज्यादा ख़राब हो गई, ऑक्सीजन लेवल लगातार कम हो रहा था। एक इंस्ट्रूमेंट और लगाया गया तो उससे उनकी सांस रुकने लगी। हमने वहां मौजूद एक व्यक्ति से इस बारे में कहा तो उसने लापरवाही से जवाब दिया कि ये सब तो इस बीमारी में होना ही है। अस्पताल में वेंटिलेटर नहीं था। एक महिला डॉक्टर दूसरी मंजिल से वेंटिलेटर लाने की व्यवस्था, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उनके पति की मौत हो चुकी थी। उधर अस्पताल में मरीजों के उपचार में लगे डॉक्टरों का कहना है कि डॉ. जेके मिश्रा की मौत कार्डियक अरेस्ट से हुई है। उनके इलाज में कोई कमी नहीं की गई। डॉक्टर रमा मिश्रा की दूसरी कोविड रिपोर्ट 17 अप्रैल को निगेटिव आई और रात में वो अपने घर आ गईं। उनका कहना है कि कोविड वॉर्डों में कम से कम एक ओर शीशा होना चाहिए ताकि अंदर क्या हो रहा है, ये मरीज के परिजन भी जान सकें।

सीबीएसई ने स्कूलों से मांगी प्रोजेक्ट, असाइनमेंट रिपोर्ट

प्रयागराज : केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने 10वीं की बोर्ड परीक्षा निरस्त करने के बाद अब बच्चों के रिजल्ट की तैयारी शुरू कर दी है। सीबीएसई की ओर से स्कूलों को एक तय फार्मेट में बच्चों की पूरे वर्ष की परफार्मेंस रिपोर्ट देने को कहा गया है। इसमें प्रोजेक्ट वर्क, असाइनमेंट आदि की जानकारी मांगी गई है। स्कूल इसी के आधार पर रिजल्ट तैयार करेंगे। कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह से केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने 10वीं की बोर्ड परीक्षा निरस्त कर दी थी। इसके बाद सीबीएसई की ओर से इंटरनल असेसमेंट, प्रोजेक्ट असाइनमेंट के आधार पर मूल्यांकन की तैयारी शुरू कर दी गई थी। अब बोर्ड की ओर से स्कूलों को पत्र के साथ फार्मेट भेजकर बच्चों की वार्षिक रिपोर्ट मांगी गई है।

सीबीएसई ने स्कूलों से 15 बिंदुओं पर जानकारी मांगी है।  स्कूलों से साप्ताहिक टेस्ट के साथ टर्म परीक्षा में शामिल छात्रों की जानकारी के साथ उसमें मिले अंकों का विवरण मांगा गया है। शैक्षिक सत्र 2020-21 में पूरे वर्ष ऑनलाइन कक्षाओं के जरिये छात्रों की पढ़ाई हुई। सत्र के अंत में सरकार के आदेश पर दसवीं एवं बारहवीं के बच्चों को स्कूल बुलाया गया। इस अवधि में छात्रों के प्रोजेक्ट, असाइनमेंट आदि पूरे करने के साथ बच्चों के इंटरनल असेसमेंट भी किए गए। स्कूलों की ओर से बच्चों की प्री-बोर्ड परीक्षाएं भी पूरी कराई गईं। अब बच्चों के रिजल्ट तैयार करने में ये अंक महत्वपूर्ण साबित होंगे।

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