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शिया महाविद्यालय में भू जल संरक्षण के लिए पौधारोपण किया गया

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लखनऊ : शिया महाविद्यालय में भू जल संरक्षण कैसे करें के लिए पौधारोपण किया गया क्योंकि भूजल का मुख्य स्रोत वर्षा है। वर्षा का पानी और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों का पानी जमीन के माध्यम से रिसता है और पृथ्वी के नीचे मिट्टी और चट्टानों के बीच की खाली जगहों को भर देता है।

जो की पेड़ पौधों से प्राप्त किया जा सकता है जब वन अधिक होगे तो बर्षा भी अधिक होगी और जब बारिश अधिक होगी तो भूजल की बढोत्तरी दिन प्रतिदिन होगी इस लिए वन महोत्सव के अंतर्गत शिया पी जी कॉलेज सीतापुर रोड लखनऊ के राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक एवं स्वयं सेविकाओं ने महाविद्यालय परिसर वाले मलिन बस्ती डूडौली प्रिती नगर सीतापुर रोड गांव में शीशम, जामून, अमरूद, सहजन, इमली ,गुलमोहर, सागौन आदि अन्य पौधे रोपित किए
इस अवसर पर प्राचार्य प्रोफेसर सैय्यद शबिहे रजा बाकरी ने स्वयंसेवक को स्वयं सेविकाओं को आदेशित करते हुए कहा कि अगर आपको अमरत्व का प्रमाण पत्र देना है तो एक वृक्ष अवश्य लगाए l
वृक्ष लगाने के फायदे जुलाई के पूरे सप्ताह सभी स्कूल-कॉलेज ने सड़को के किनारे, घरों के बाहर पेड़-पौधे लगाने का कार्य शुरु किया है। पेड़ों की आवश्यकता हमें क्यों हैं इस बात का उदहारण देश के तटीय क्षेत्रों में लगाए गए घने पेड़ों से है जिसने 2004 में आए सुनामी के विनाशकारी प्रभाव को कम करने में मदद की। उन्होंने आगामी लहरों को अवशोषित कर लिया और बड़ी संख्या में मानव निवासों को संरक्षित किया। वन महोत्सव का उद्देश्य ही यही है कि हम सभी लोग कम से कम एक पेड़ या पौधा लगाए ताकि आने वाली पीड़ियों को भी हम शुद्ध हवा दे सकें।

वन महोत्सव के दौरान हर नागरिक से यही उम्मीद की जाती है कि वो कम से कम एक पौधा तो अवश्य लगाएं। इसके अलावा, पेड़ों के संरक्षण से लाभ और वृक्षों को काटने के कारण होने वाले नुकसान के बारे में जागरूकता अभियान आयोजित किए जाते हैं।

बच्चों द्वारा भी कई ऐसे कार्यक्रम किए जाते है जिनमें वृक्षों के संरक्षण की बात कही गई हो। आज हम सभी को पेड़ों के प्रति जागरुक होने की आवश्यकता है। यह पेड़ हमसे कुछ लेते नहीं है बल्कि हमें एक नया जीवन देते हैं। पूरे देश में वन महोत्सव के जरिए विलुप्त हुए वनों को फिर से बनाए रखने के लिए वनीकरण अभियान शुरू किए गए हैं। मनुष्य के लालच ने आज वनों का एक बड़ा हिस्सा समाप्त कर दिया है। वन महोत्सव का त्योहार पर्यावरण को बचाने के लिए एक सुंदर पहल है

जिसके लिए हमें बहुत कुछ करना चाहिए है। आमतौर पर, स्थानीय पेड़ लगाए जाते हैं क्योंकि वे आसानी से स्थानीय परिस्थितियों में अनुकूलित होते हैं, पर्यावरण प्रणालियों में एकीकृत होते हैं और ज्यादा समय तक जीवित रहने का दम रखते हैं। इसके अलावा, ऐसे पेड़ स्थानीय पक्षियों, कीड़ों और जानवरों को भी समर्थन देने में सहायक होते हैं। राज्य सरकारें और नागरिक निकाय स्कूलों, कॉलेजों और अकादमिक संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों के जरिए आज पेड़ों को एक बार फिर से बचाने की कोशिश की जा रही है। ऐसे में हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि हम भी वृक्षों को बचाने और लगाने के लिए अपनी-अपनी भूमिका अदा करे
चीफ प्राक्टर प्रोफेसर एस मेंहदी अब्बास जैदी ने कहा कि
क्यों मनाया जाता है वन महोत्सव
कई लोगों के मन में यह सवाल आता है कि वन महोत्सव क्यों मनाना चाहिए, आखिर इसकी क्या आवश्यकता है। आज हम आधुनिक बनने की होड़ में वनों की उपयोगिता को ही भूलते जा रहे हैं। बड़े-बड़े शहर, हाईवे, सड़क, यातायात, फैक्ट्रियां इत्यादि बनाने की चाहत में वनों को ही समाप्त करते जा रहे हैं। जिससे लाखों पशु-पक्षी विलुप्त होते जा रहे हैं।

एक समय था जब सुबह की शुरुआत पक्षियों की चहचाहट के साथ होती थी। घर के आंगन में गौरेया दाना चुगने आया करती आती । लेकिन आज उन आवाजों की जगह ट्रैफिक के शोर-शराबों ने ले ली है। पेड़ों की कटाई के कारण बड़ी संख्या में पशु-पक्षी, कीट-पतंगे बेघर हो गए हैं। कुछ पशु-पक्षियों का तो नामों निशान भी खत्म हो गया है। पेड़ की ठंडी हवाओं की जगह आज गाड़ियों से निकलते धुओं ने ले ली है। पेड़ों की छांव की जगह फैक्ट्रियों के कूड़े-करकट ने ले ली है। आज हम स्वच्छ हवा में सांस लेने तक को तरस गए हैं। हम पेड़ों की ताजा ठंडी हवा लेने के लिए शहरों से छुट्टी लेकर गांवों, पहाड़ों की ओर रुख करते हैं लेकिन हमारी बढ़ती लालसा के कारण शहर के बाद अब गांव-पहाड़ भी वृक्षों के अभाव में जीने को मजबूर होते जा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि सामाजिक कार्यकर्ता अमृता देवी बिश्नोई ने कहा था कि यदि किसी पेड़ को किसी के सिर की बली देकर भी बचाया जाता है, तो बचाना चाहिए है।  आज भारत में वृक्षों के संरक्षण के लिए कई त्यौहार, उत्सव मनाए जाते हैं। लेकिन इसके बावजूद पेड़ों के लगातार काटे जाने से हमें कई नुकसान भी हो रहे हैं। जैसे बरसात के दिनों की घटती संख्या और वर्षा की घटनाओं की तीव्रता के पीछे पेड़ों को अत्याधिक मात्रा में काटे जाना है। भारत में लंबे समय से बाढ़, सूखा, गर्मी की लहरें, चक्रवात, और अन्य प्राकृतिक आपदाओं ने अपने पैर पसारे हुए हैं। कभी तेज गर्मी से लोग तिलमिलाने लगते हैं तो कभी अंधाधुंध बारिश से, कहीं सूखा पड़ रहा है

तो कई ठंड का प्रकोप बढ़ रहा है। नदी, नाले सूखते जा रहें हैं। आए दिन प्राकृतिक आपदाएं अपनी जड़े जमा रही है। हाल ही में उतराखंड के केदारनाथ में आई बाढ़ हो जिसमें ना जाने कितने लोग बली चढ़ गए या फिर दिन पर दिन गर्मी की मार से तपते लोग हों इन सभी विपदाओं के पीछे पेड़ों की कटाई है। हम माने या ना माने लेकिन पेड़ों की कटाई से नुकसान हमें ही हो रहा है।

वन नीति, 1988 के अनुसार भूमि के कुल क्षेत्रफल का 33 प्रतिशत भाग वन-आच्छादित होना चाहिए। तभी प्राकृतिक संतुलन रह सकेगा, किंतु सन 2001 के रिमोट सेंसिंग द्वारा एकत्रित किए गए आकड़ों के अनुसार देश का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि.मी. है। इनमें वन भाग 6,75,538 वर्ग कि.मी. है, जिससे वन आवरण मात्र 20 में प्रतिशत ही होता है और ये आंकड़े भी पुराने हैं। अब तो इनकी संख्या और कम गई है।

परिक्षा केन्द्र अधिक्षक प्रोफेसर अंजूम अबरार, मिडिया प्रवक्ता डा० प्रदीप शर्मा डा ० राबिन वर्मा, डा० सीमा राना, डा० नाजीम खाॅं पांचो इकाई के कार्यक्रम अधिकार, जय कश्यप, अभिषेक श्रीवास्तव, राज सैनी, सचिन, मानसी द्विवेदी, धर्मेन्द्र, एस एस सहायक अजीत सिंह उपस्थित रहे

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