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ब्राह्मणों के लिए सपा-बसपा में खिंची तलवारें, क्या वाकई भाजपा से नाराज हैं सवर्ण

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लखनऊ : कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर के बाद ब्राह्मण समाज में उपजे कथित आक्रोश में भाजपा विरोधी दलों को अपने लिए अवसर दिख रहा है। विकास दुबे एनकाउंटर के साथ हाल-फिलहाल हुईं कुछ अन्य ब्राह्मण हत्या व उत्पीड़न को जोड़कर सपा, कांग्रेस और बसपा में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को ब्राह्मण विरोधी करार देने की होड़ लग गयी। इससे पहले कि सोशल मीडिया पर उठी ब्राह्मण आक्रोश की इस चिंगारी को विपक्षी दल भुना पाते, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या में भूमि पूजन करके भाजपा विरोधियों के इस हथियार को कुंद कर दिया।

अब परिदृश्य अचानक बदल चुका है। भूमि पूजन के हवन में अपना समूचा हिन्दू वोट बैंक (खासकर ब्राह्मण वोटर) स्वाहा होते देख विपक्ष की बेचैनी बढ़ गयी है। सवर्ण समाज को अपने पाले में करने के लिए प्रदेश के दो प्रमुख राजनीतिक दलों में भगवान परशुराम की मूर्तियां लगवाने की प्रतियोगिता शुरू हो गयी है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी सहित प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व भी संदेश देने में पीछे नहीं है।

लखनऊ में भगवान परशुराम की 108 फुट ऊंची प्रतिमा लगवाएगी सपा

बिकरू कांड के बाद ब्राह्मण समाज को अपने पाले में करने के लिए शुरू हुई प्रतियोगिता अयोध्या में भूमि पूजन के बाद काफी दिलचस्प हो चुकी है। हाल ही में सपा ने लखनऊ में भगवान परशुराम की 108 फुट ऊंची मूर्ति स्थापित करवाने का ऐलान किया। सपा प्रबुद्ध प्रकोष्ठ के अध्यक्ष मनोज पांडेय ने प्रदेश के हर जिले में परशुराम प्रतिमा और कुछ जनपदों में स्वाधीनता संग्राम के नायक मंगल पांडे की मूर्ति लगवाने का ऐलान किया।

बसपा ने कहा, हम सपा से भी ऊंची प्रतिमा लगवाएंगे

सपा के इस ऐलान के बाद मायावती को भी अपना ब्राह्मण प्रेम जाहिर करने के लिए सामने आना पड़ा। रविवार को बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर बसपा सुप्रीमो ने सपा को ब्राह्मण विरोधी बताते हुए उनसे बड़ी भगवान परशुराम की मूर्ति लगवाने का ऐलान किया। इतना ही नहीं मायातवी ने कहा कि यदि उनकी सरकार बनती तो वह परशुराम के नाम पर अस्पताल भी बनवाएंगी। इससे पहले मायावती वर्तमान सरकार पर ब्राह्मणों को प्रताड़ित करने का भी आरोप लगा चुकी हैं।

कांग्रेस भी सवर्ण समाज को संदेश देने में जुटी

सवर्ण वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए कांग्रेस भी वर्तमान सरकार में ब्राह्मण समाज का उत्पीड़न और उपेक्षा का आरोप लगाते हुए सियासी बिसात बिछाने में जुट गयी है। कांग्रेस ने ब्राह्मण वोट बैंक को रिझाने के लिए जितिन प्रसाद को काम पर लगा दिया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और प्रदेश नेतृत्व भी संदेश देने में जुट गया है। पिछले दिनों गाजीपुर में एक फौजी ब्राह्मण परिवार की पुलिस पिटाई के बाद कांग्रेस का प्रतिनिधि मंडल वहां पहुंचा था। 5 जुलाई को अयोध्या में भूमि पूजन पर भी प्रियंका गांधी ने हिन्दू समाज को बधाई देते हुए सभी को चैंका दिया था।

एकमत नहीं ब्राह्मण समाज

वर्तमान सियासी हालात देखकर कहा जा सकता है कि 2022 में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ विपक्ष के प्रमुख हथियारों में बदहाल कानून व्यवस्था और ब्राह्मण हत्या व उत्पीड़न प्रमुख हथियार होंगे। हालांकि यह कितने कारगर सिद्ध होंगे, यह भविष्य के गर्भ में है। भाजपा के ब्राह्मण विरोधी होने की वर्तमान अवधारणा पर भी खुद ब्राह्मण समाज एकमत नहीं है।

अधिकतर ब्राह्मणों का मानना है कि गैंगस्टर विकास दुबे जैसे खूंखार अपराधी के लिए पक्ष में खड़ा होना सही नहीं है। लेकिन सही ही यह भी कहते हैं कि बिकरू कांड के बाद यूपी पुलिस ने बदले की भावना से प्रेरित होकर उसके साथियों का एनकाउंटर किया, वह गलत है। यूपी पुलिस की नाकामी और मनमानी का सीधा असर वर्तमान सरकार पर पड़ रहा है। वहीं रायबरेली और प्रयागराज में ब्राह्मण परिवारों के सामूजिक नरसंहार को सामने रखकर कुछ लोग भाजपा को ब्राह्मण विरोधी करार दे रहे हैं।

2007 के विधानसभा चुनाव जैसे बन रहे हालात

इतना तो तय है कि राम मंदिर का फायदा भाजपा को अवश्य मिलेगा। लेकिन राम मंदिर के नीचे वर्तमान भाजपा सरकार के खिलाफ धधक रहा ब्राह्मण आक्रोश दब जाएगा, इस बारे में अभी कुछ स्पष्ट कह पाना मुश्किल है। प्रदेश की सियासत में हालात कुछ वैसे ही बन रहे हैं, जैसे 2007 में थे। तब बसपा सुप्रीमो मायावती एससी, एसटी के साथ सवर्ण समाज को साधकर ही मुख्यमंत्री बनी थीं। प्रदेश में चौथे नंबर पर पहुंच चुकी बसपा में ब्राह्मण आक्रोश ने नई जान फूंक दी है। सवर्ण समाज की भाजपा से नाराजगी भुनाने के लिए मायावती पूरी तरह सक्रिय हो चुकी हैं।

सत्ता के लिए ब्राह्मण समाज का आर्शीवाद जरूरी

उत्तर प्रदेश की सियासत में ब्राह्मण समाज हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाता आ रहा है। सवर्ण समाज ने संगठित होकर जिस भी सियासी दल को सहारा दे दिया, समझो उसकी नैया पार। देश के सबसे बड़े सूबे के सिंहासन पर आजादी के बाद करीब 4 दशक तक ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा। बीच-बीच में वैश्य और ठाकुर मुख्यमंत्री भी बने।

समाजवादियों, अम्बेडकरवादियों के उभार के बाद ब्राह्मण सत्ता से तो बाहर हो गए लेकिन सिंहासन उन्हें ही मिलता रहा है, जिन्हें ब्राह्मण समाज ने आर्शीवाद दिया। 2012 में अखिलेश यादव सरकार, 2014 में बसपा सरकार और फिर 2017 में वर्तमान योगी सरकार ब्राह्मण आर्शीवाद का ही नतीजा है।

भाजपा नहीं योगी सरकार से नाराज हैं ब्राह्मण!

यह भी देखने वाली बात है कि वर्तमान समय में ब्राह्मण समाज नाराजगी भाजपा से नहीं बल्कि योगी सरकार से है। कहा जा रहा है कि प्रदेश में ठाकुरवाद हावी है। ब्राह्मणों की सुनवाई नहीं हो रही है। यूपी की राजनीति में ठाकुरों और ब्राह्मणों के बीच वर्जस्व कोई नई बात नहीं है। बिकरू कांड के बाद यूपी पुलिस ने विकास दुबे के जिन आधा दर्जन साथियों को एनकाउंटर में मारा, वह सभी ब्राह्मण थे। इनमें कथित नाबालिग प्रभात भी शामिल है।

लखनऊ में विकास दुबे की पत्नी ऋचा और उसके नाबालिग बेटे के घुटनों के बल बैठे हुए वायरल तस्वीरों ने भी सरकार के खिलाफ गुस्सा भड़काया। गाजियाबाद में ब्राह्मण पत्रकार की सरेआम बदमाशों द्वारा हत्या और पुलिस की सुस्ती से भी लोगों में आक्रोश बढ़ाया। 2 जुलाई की रात को ही प्रयागराज में एक ब्राह्मण परिवार के 4 सदस्यों की निर्मम हत्या के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने योगी सरकार के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली

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