विश्व प्रसिद्ध दरगाह आलिया नजफ ए हिन्द जोगीरमपुरी जनपद बिजनौर
नजीबाबाद रेलवे स्टेशन से 11 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत अहमदपुर सादात यहां के लोग इस स्थान
से जुड़े मोअज्ज़े के बारे में कुछ इस तरह बताते हैं
मु्गल बादशाह शाहजहां के दौर में सय्यद अलाउदीन बुखारी शाहजहां के दरबार दीवान हुआ करते थे सय्यद अलाउदीन बुखारी शाहजहां के देहांत के बाद अपने ज्ञान के दम पर बादशाह शाहजहां के खासम खास और भरोसेंसन्द सय्यद राजू दीवान बनाए गये थे
सन 1656 सितम्बर के महीने में मुग़ल बादशाह शाहजहां जब शदीद बीमार पड़ए तो यह अफवाहें उड़ गयी की बादशाह का इन्तेकाल हो गया है उस अफवाह के बाद मुगल बादशाहत कमज़ोर होने लगी लेकिन उनका बेटा औरंगजेब जो सियासत में बहुत तेज़ था उसने अपने बड़े भाई जिस का नाम वारिस था उसे गद्दी सम्भालने कि दौड़ से अलग कर दिया था और उसने शाहजहां को किले कि काल कोठरी में क़ैद करके खुद बादशाह बन बैठा था औरंगजेब द्वारा
तख़्त पर बैठते ही औरंगजेब ने शाहजहां बादशाह के वफादार कमांडर और दीवान राजू दादा को जान से मार दिए जाने का हुक्म सुना दिया
यू तो शाहजहां के बगैर राजू दादा द्वारा औरंगजेब को पसंद नहीं किया था औरंगजेब से बचने के लिए
राजू दादा अपने वतन जोगिरम्पुरी दिल्ली से आ गये थे जोगिरम्पुरी पहुच कर राजू दादा ने अपने गांव वालो को यह बता दिया था की औरंगजेब के फ़ौज से उनकी जान को खतरा है राजू दादा की इमानदारी और गरीब परवर मिज़ाज ने उन्हें गाँव में अच्छी खासी इज्ज़त मिलती थी
जोगिरम्पुरी गांव वाले हमेशा राजू दादा की हिफाज़त के लिए हमेशा तैयार रहते थे गांव रातो को इस लिए पहरा दिया करते थे कि कहीं औरंगजेब कि फौज दिल्ली से यहां आकर राजू दादा का कोई नुकसान ना
पहुंचा दे राजू दादा हजरत अली (अ.स ) के बड़े चाहने वाले थे राजू दादा जब भी कभी मुसीबत मे फँस जाते थे तो वह उस समय वह मौला अली (अ.स) से मदद के लिए नाद ऐ अली और या अली अद्रिकनी पढ़ के मदद के लिए पुकारना शुरू कर देते थे
उस दौरान एक दिन एक बूढ़े हिन्दू ब्राह्मण जो घास काट रहे थे वह इतने बूढ़े थे की ठीक से देख भी नहीं सकते थे उन्होंने एक आवाज़ सुनी और जब नज़र डाली तो उसे महसूस हुआ की कोई शख्स घोड़े
पर सवार घुड़सवार है जो उन से कह रहा है कि कहा है राजू दादा जिन्होंने मुझे पुकारा है जाओ उस से कह दो मैंने मिलने को बुलाया है उस बूढ़े बुजुर्ग ने कहा मैं ठीक से देख भी नहीं सकता और कमज़ोर भी हूँ जंगल तो बताए में कैसे जाऊं राजू दादा को गांव से बुलाने ?
तभी यकायक उस बूढ़े बुजुर्ग को महसूस हुआ की उसे सब कुछ दिखाई देने लगा है और उसके जिस्म में ताक़त भी महसूस होने लगी है फिर हजरत अली (अ.स ) ने कहा अब जाओ और राजू दादा से कहो मैं आया हूँ जब वह बुजुर्ग गांव मे पहुंचे और सारा माजरा जब राजू दादा को सुनाया तो राजू दादा को समझते देर नही लगी की हजरतअली (अ.स)आये हैं और राजूदादा दौड़ कर उस मुकाम की तरफ पहुचे तो
गांव वालों ने राजू दादा को दौड़ते देखा तो वह समझे कि शायद औरंगजेब कि फौज आचुकी हैं और राजू दादा कि मदद करने के लिए उनके पीछे भागने लगे
लेकिन जब राजू दादा बुजुर्ग के बताए मुकाम पर पहुचे तो वहां कोई नही मिला राजू दादा बहुत दुखी हुए लेकिन फिर से राजू दादा मौला अली से दुआ कर के मदद मागने लगे तब सातवें दिन मौला अली ने
राजू दादा को ख्वाब में बशारत दी और कहा राजू तुम मत घबराओ औरंगजेब तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता तुम्हे उस से डरने की कोई ज़रुरत नहीं है राजू दादा ने मौला अली से ख्वाब में कहा की वो चाहते हैं की आप ऐसी कोई चीज़ दे जायें जिस से कौम महफूज रहे तब मौला मौला अली (अ.स ) के मुअज्ज़े से वहाँ एक पानी का चश्मा फूटा जो आज भी कुंवे की शक्ल में उस जगह अवशेष मौजूद है
आज जिस जगह रौज़ा बना हुआ है उस जगह मौला अली (अ.स) घोड़े पर खड़े थे उस जगह की मिटटी में आज भी शिफा मौजूद है दुनिया के कोने कोने से जोगिरम्पुरी मे मुरीद अपनी अपनी मुरादे ले कर आते हैं और उनकी मुरादे पूरी भी होती हैं अकसर जोगिरम्पुरी आने वालों जायरीनो के लिए मुफ्त रहने के कमरे के साथ साथ मुफ्त खाने पीने का इंतेज़ाम भी रहता है मौला अली के रौज़े के निर्माण से पहले इस जगह पर इमाम हुसैन का रौज़ा और फिर सय्यद राजू दादा का मकबरा बना हुआ था
जोगीरम्पुरी में हर साल चार दिनी मातमी मजलिसें मुनक्किद होती हैं मजलिसों में हजरत इमाम हुसैन और करबला के शहीदों को नम आंखों से याद किया जाता है मजलिसो के दौरान पूरा दरगाह क्षेत्र रंजोगम और मातम के आगोश में समा जाता हैं वाकयाते करबला सुनकर शिया जायरीन सीनाजनी के साथ फफककर रोते हैं अंगारों और छुरियों के मातम के साथ हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद किया जाता हैं
द्वारा : मीज़ान हैदर रिज़वी