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जिलाउद्यान अधिकारी ने फसलों के रोगों के बचाव के बारे में दी जानकारी

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उन्नाव। जिला उद्यान अधिकारी  महेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि जनपद में आलू, आम, केला एवं शाकभाजी फसलों की गुणवत्तायुक्त उत्पादन हेतु सम-सामयिक महत्व के रोगों / व्याधियों को समय से नियंत्रण किया जाना नितांत आवश्यक है।

 

मौसम विभाग द्वारा तापमान में गिरावट, कोहरा की संभावना व्यक्त की गई है।ऐसी स्थिति में  औद्यानिक फसलो की प्रतिकूल मौसम में रोगों / व्याधियों से बचाए जाने हेतु जनपद के किसानो को सलाह दी।

 

उन्होंने बताया कि वातावरण में तापमान में गिरावट एवं बूंदाबांदी की स्थिति में आलू की फसल पिछेती – झुलसा रोग के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। प्रतिकूल मौसम विशेषकर बदलीयुक्त  बूंदाबांदी एवं नम वातावरण में झुलसा रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है तथा फसल को भारी क्षति पहुंचाती है ।

 

पिछेती झुलसा रोग के प्रकोप से  पत्तियां सिरे से झुलसना प्रारंभ होती हैं, जो तीव्रगति से फैलती है। पत्तियों पर भूरे काले रंग के  जलीय धब्बे  बनते हैं तथा पत्तियों के निचली सतह पर रुई की तरह फफूंदी दिखाई देती है।

 

बदली युक्त 80 प्रतिशत से अधिक आर्द्र वातावरण एवं 10-20 डिग्री सेंटीगेड तापक्रम इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से होता है और 2 से 4 दिनों के अंदर ही संपूर्ण फसल नष्ट हो जाती है । आलू की फसल को अगेती एवं पिछेती झुलसा रोग से बचाने के लिए जिंक मैगजीन कार्बोनेट 2.0 से 2.5 किग्रा0 अथवा मैकोज़ेब 02 से 2.5 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 ली0पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाए तथा माहू कीट के प्रकोप की स्थिति में नियंत्रण के लिए दूसरे छिड़काव में फफूंदीनाशक के साथ कीटनाशक जैसे डायमेथोएट 1.0 ली0प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

 

जिन खेतों में पिछेती झुलसा रोग का प्रकोप हो गया हो तो ऐसी स्थिति में रोकथाम के लिए अंत: ग्राही  फफूंदी नाशक मेटाजेकिजल युक्त रसायन 2.5 किग्रा0 अथवा साईमोकजेनिल फफूंदी नाशक युक्त रसायन 3.0 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।

 

जनपद में आम की अच्छी उत्पादकता सुनिश्चित करने हेतु गुजिया कीट से बचाया जाना अत्यंत आवश्यक है। इस कीट से आम की फसल को काफी क्षति पहुंचती है। इसके शिशु कीट को पेड़ों पर चढ़ने से रोकने के लिए माह दिसंबर में आम के पेड़ के मुख्य तने पर भूमि से 30-50 से0मी0 ऊंचाई पर 400 गेज की पालीथीनशीट की 25 सेमी0चौड़ी पट्टी को तने के चारो ओर लपेट कर ऊपर व नीचे सुतली से बांधकर पालीथीनशीट के ऊपरी व निचले हिस्से पर ग्रीस लगा देना चाहिए।

 

कीट के नियंत्रण हेतु जनवरी के प्रथम सप्ताह में 15-15 दिन के अंतर पर दो बाद क्लोरोपाइरीफास (1.5 प्रतिशत)  चूर्ण 250 ग्राम  प्रति पेड़ के हिसाब से तने के चारों ओर  बुरकाव करना चाहिए। अधिक प्रकोप की दशा में यदि  कीट पेड़ों पर चढ़ जाते हैं तो ऐसी स्थिति में कारबोसल्फान अथवा डायमेथोएट 2.0 मिली0 दवा को प्रति ली0पानी में घोलकर बनाकर   आवश्यकतानुसार छिड़काव करें ।

 

जनपद में केला की खेती व्यवसायिक  स्तर पर तेजी से की जा रही है। वातावरण में पाला पड़ने के कारण केले की फसल को काफी नुकसान पहुंचता है। इसी प्रकार अन्य सब्जियां तथा मिर्च, टमाटर, मटर आदि फसलो पर भी तापमान एवं कोहरा, पाला एवं बूंदाबांदी से भारी नुकसान पहुंचता है । ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि अपने खेतो के आसपास धुआ आदि   कैसे फसल को पाले से बचाएं अथवा आवश्यकतानुसार फसलों में नमी बनाए रखने हेतु समय-समय पर सिंचाई की जाए । पौधशाला के छोटे पौधों को पाले,कोहरे से बचाये जाने हेतु उद्यानों को पालीथीन अथवा टाट से  ढकना चाहिए।

 

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