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21 साल के इतिहास मे पहली बार नही निकाला गया यौमे आशूर का जुलूस

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नही दफ्न किए गए ताज़िए घरो के अन्दर अज़ादारो ने मनाया शहीदो का ग़म

कर्बलाओ के गेट पर रहे ताले चप्पे चप्पे की निगरानी मे मुस्तैद रही पुलिस

लखनऊ : करीब 14 सौ साल पहले कर्बला मे दीने इस्लाम और इन्सानियत को बचाने के लिए अपने 71 सथियों के साथ यज़ीदी फौज के द्वारा शहीद किए गए हज़रत इमाम हुसैन अ0स0 की शहादत का गम आज पूरी दुनिया मे मनाया गया लेकिन इस साल कोरोना वायरस के खतरे से लोगो को बचाने के लिए कही भी न तो कोई जुलूस ही निकाला गया और न ही यौमे आशूर के दिन कर्बलाओ मे ताज़िए ही दफ्न किए गए । 1999 मे लखनऊ मे शिया सुन्नी और प्रशासन के बीच हुए मुहायदे मे श्यिा समुदाय को नौ और सुन्नी समुदाय को एक जुलूस सशर्त निकालने की अनुमति दी गई थी । 1999 से लगातार शिया सुन्नी अपने अपने जुलूसो को निकालते रहे लेकिन साल 2020 मे कोरोना वायरस ने पूरी दुनियां को अपनी चपेट मे लिया तो सभी धर्मो के धार्मिक कार्यक्रमो को प्रतिबन्धित कर दिया गया इस बार मोहर्रम के महीने मे कोई भी जुलूस शिया समुदाय द्वारा नही निकाला गया लखनऊ में कुछ खास इमाम बाड़ो मे ज़िला प्रशासन द्वारा सिर्फ 5 लोगो के साथ मजलिस पढ़ने की इजाज़त दी गई थी।

शिया समुदाय के लोगो को ये आशा थी कि भले ही उन्हे इस बार कोरोना वायरस के कारण जुलूस न निकालने की इजाज़त हो लेकिन कोरोना काल मे खुद को और दूसरो को कोरोना के खतरे से बचाने के लिए शिया फिरके ने भी ज़िला प्रशासन का परसपर सहयोग करते हुए इस बार मोहर्रम को पूरी तरह से सादगी के साथ अपने अपने घरो मे ही मनाया । अपको बता दे कि पुराने लखनऊ मे हज़रत इमाम हुसैन की याद मे यौमे आशूर का जुलूस गमज़दा माहौल मे कड़ी सुरक्षा के बीच निकाला जाता था। सुबह दस बजे नाज़िम साहब के इमाम बाड़े मे मौलाना कल्बे जव्वाद नक़वी जुलूस से पहले मजलिस पढ़ते थे जिसमे वो कर्बला का खौफनाक म़ंजर बयान करते थे तो गमज़दा अज़ादार अपने आपको रोने से रोक नही पाते थे।

मजलिस के बाद नाज़िम साहब के इमाम बाड़े से यौमे आशूर का जुलूस शुरू होता था जुलूस मे शामिल मातमी अन्जुमनो मे शामिल अज़ादार कमा और छुरिया का मातम कर इमाम हुसैन की याद मे अपने आपको लहुलुहान कर लिया करते थे। जुलूस मे शामिल मातमी अन्जुमनो के हज़ारो लोग मातम करते हुए या हुसैन के नारे लगाते हुए कर्बला तालकटोरा तक जाते थेे। यौमे आशूर का जुलूस बजाज़ा स्थित नाज़िम साहब के इमाम बाड़े से शुरू होकर अकबरी गेट, नख्खास बिल्लौचपुरा, विक्टोरिया स्ट्रीट , बाज़ार खाला, हैदरगंज, बुलाकी अडडा होता हुआ अपने निर्धारित समय पर कर्बला तालकटोरा मे सम्पन्न होता था।

शिया बाहुल्य इलाको मे लगातार होती रही खास निगरानी

नौ मोहर्रम की रात से ही पुराने लखनऊ के शिया बाहुल्य इलाको मे तैनात भारी पुलिस बल पूरी तरह से मुस्तैद रहा । पुलिस के आला अफसर लोगो को समझाते रहे कि सरकारी गाईड लाईन लोगो की भलाई के लिए है । यौमे आशूर के दिन कोई अज़ादार अपने घर से ताज़िया लेकर बाहर न निकले इस लिए पुलिस सुबह से ही चैकन्नी थी । शिया बाहुल्य इलाको मे पुलिस सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन कैमरो के अलावा बाडी वार्न कैमरो से भी निगरानी करती रही। पुराने लखनऊ के सआदतगंज ठाकुरगंज, चाौक , बाज़ार खाला, वज़ीरगंज आदि क्षेत्रो मे पुलिस के आला अफसर सुरक्षा व्यवस्था का लगातार जायज़ा लेते रहे। वैसे तो पूरा पुराना लखनऊ संवेदनशील क्षेत्रो की श्रेणी मे माना जाता है लेकिन खास कर सआदतगंज , ठाकुरगंज और चाौक क्षेत्र मे कुछ ज़्यादा ही सुरक्षा के इन्तिज़ाम किए गए थे सआदतगंज के संवेदनशील शिया बाहुल्य क्षेत्रो मे ऊॅचे मकानो की छतो पर भी पुलिस के जवानो की ड्यिूटी लगाई गई थी।

काम आई शिया धर्म गुरूओ की अपील

देश की सवोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट द्वारा जुलूसो की इजाज़त न दिए जाने के बाद शिया समुदाय को हाई कोर्ट से उम्मीद थी कि उन्हे हज़रत इमाम हुसैन का ग़म मनाने के लिए घरो मे रख्खे गए ताज़िए दफ्न करने की इजाज़त ज़रूर मिलेगी हाई लेकिन कोर्ट द्वारा कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए ताज़िए कर्बलाओ मे दफ्न करने की इजाज़त नही दी गई। अदालत द्वारा मंज़ूरी न मिलने के बाद शिया धर्म गुरू मौलाना कल्बे जव्वाद , मौलाना हमीदुल हसन द्वारा सोशल मीडिया पर वीडियो संदेश के माध्यम से शिया समुदाय से अपील की गई थी कि कोर्ट का सम्मान करते हुए इस बार घरो मे रख्खे ताज़ियो को कर्बलाओ मे दफ्न न करें। मौलाना ने अपनी अपील मे कहा था कि कोरोना वायरस का खतरा बड़ा है इस लिए कोरोना समाप्त होने के बाद ही घरो मे रख्खे ताज़ियो को एहतराम के साथ परम्परा के अनुसार दफ्न किया जाए। शिया समुदाय द्वारा कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए इस बार अपने मज़हबी जज़्बातो को दबाते हुए अपने दिलो पर पत्थर रख कर न तो जुलूस ही निकाले न ही ताज़िए दफ्न किए। शिया समुदाय के लोगो ने कर्बला के शहीदो की याद मे अपने अपने घरो मे उनका ग़म मनाया और मातम भी किया।

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