डॉ राहुल भार्गव ने कहा, मरीज को फुल मैच बोन मैरो ट्रांस्प्लांट की सख़्त जरूरत थी. सौभाग्य से मरीज के बड़े भाई का बोन मैरो पूरी तरह मैच हो गया और वो अपनी बहन की जिंदगी बचाने के लिए स्टैक सैल्स डोनेट करने को तैयार हो गया. हेमेटोलॉजी के कंसल्टेंट डॉ.अनुपम शर्मा ने कहा कि ऐसे हाई रिस्क केस में बोन मैरो ट्रांस्प्लांट मरीज के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. बोन मौरो ट्रांस्प्लांट के दौरान, लाल रक्त कोशिकाओं, सफेद रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स को पूरी तरह नष्ट कर दिया जाता है. इस समय कम प्रतिरोधक क्षमता के चलते मरीज एक नवजात शिशु की तरह होता है, जो संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील होता है. कई तरह की परेशानियों और संक्रमणों के प्रबंधन के संबंध में बीएमटी के दौरान मरीज को स्थिर करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. एक अलग व्यक्ति से स्टेम सेल को मरीज के शरीर में ट्रांसफर करना और फिर एक सफल प्रत्यारोपण के लिए उसकी स्वीकृति महत्वपूर्ण है.
ये मरीज बहुत भाग्यशाली थीं क्योंकि मरीज और उसके भाई बीएमटी के लिए 100 प्रतिशत मैच थे, हालांकि, भाई-बहनों में 100 प्रतिशत एमबीटी मैच की संभावना केवल 25-30 प्रतिशत होती है. वहीं, वर्तमान परिदृश्य में, भारत में जिन परिवारों में एक या दो बच्चे हैं, वहां पूरी तरह से मेल खाने वाले भाई-बहनों को खोजने के चांस और कम हो जाते हैं. हालांकि, आजकल मेडिकल फील्ड में तरक्की के साथ ही आधे मिलान वाले भाई-बहन वाले केसों में भी अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं.